News - Science & Info

Padamshree Info Desk

06/03/2024, 06:20 pm

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सर्फेस कोटिंग

सर्फेस कोटिंग टेक्नॉलॉजी धातु फिनिश की एक ऐसी तकनीक है जो इलेक्ट्रोलाइटिक प्रक्रिया के माध्यम किसी धातु पर दूसरे धातु की या जंगरोधी कोटिंग की एक महीन परत का जमाव किया जाता है जो विभिन्न गुण और विशेषताएं जैसे जंग-संरक्षण, बढ़ी हुई सतह, कठोरता, चमक, रंग, ताप रोधी के आधार होता है। धातु कोटिंग्स को दो तरीकों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

1. कैथोडिक कोटिंग- इस तकनीकी में मूल धातु और पर्यावरण के बीच एक भौतिक अवरोध प्रदान किया जाता है। कैथोडिक कोटिंग धातु को वातावरण की विभिन्न परिस्थितियों से सुरक्षा प्रदान करती है। यदि किसी सामग्री में छिद्र, पिनहोल जैसी कोई भी दोष हो तो, कैथोडिक कोटिंग प्रदान की जाती है और ऐसे मामलों में कोटिंग के रूप में क्रोमियम, स्टील, चाँदी, गोल्ड आदि धातु का लेप लगाते हैं। कैथोडिक सुरक्षा, अक्सर सक्रिय धातु सतहों के क्षरण को रोकने के लिए किया जाता है, जल उपचार संयंत्र, पाइपलाइन, जलयान, नाव, कंक्रीट संरचनाओं और जल के उपर या नीचे भंडारण टैंक आदि पर कैथोडिक कोटिंग का उपयोग किया जाता है।   

2. एनोडिक कोटिंग- इस तकनीकी में मूल धातु की सतह पर स्थित प्राकृतिक ऑक्साइड के स्तर को और अधिक मोटा करके संरक्षक की एक परत निर्मित की जाती है जिससे मूल धातु की सतह का क्षरण कम हो सके। इस प्रक्रिया में धातुओं का इलेक्ट्रोलाइटिक उपचार शामिल होता है, जिसके दौरान धातुओं की सतह पर स्थिर फिल्में या कोटिंग्स बनाई जाती हैं। ऑटोमोटिव, एयरोस्पेस, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि विभिन्न उद्योगों में उपयोग किये जाने वाले धातुओं जैसे- एल्यूमिनियम, मैगनीश्यिम, टाइटेनियम आदि का उपयोग चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में होने के कारण ये धातुएं अपना गुण खो देती है। ऐसे मामलों में इन धातुओं को संरक्षित करने के लिए कोटिंग के लिए धातु पर जस्ता, एल्युमीनियम, निकल आदि का प्रयोग किया जाता हैं, जिससे इन धातुओं का लचीलापन बना रह सके। 

हमारे देश में सर्फेस कोटिंग प्रौद्योगिकी के विज्ञान पर विशष ध्यान देने के लिए कुछ तकनीकी कॉलेज द्वारा सर्फेस कोटिंग टेक्नॉलॉजी में डिग्री प्रदान की जा रही हैं। सर्फेस कोटिंग टेक्नॉलॉजी इलेक्ट्रॉनिक्स, कम्प्यूटर साइंस, धातु इंजीनियरिंग, पेंट टेक्नॉलॉजी और रासायनिक इंजीनियरिंग के साथ मिला हुआ बहुत ही रोचक इंजीनियरिंग क्षेत्र है। सर्फेस कोटिंग टेक्नॉलॉजी का विभिन्न उद्योगों जैसे पेट्रोकेमिकल, परमाणु, एयरोस्पेस, क्रायोजेनिक, चिकित्सा, समुद्री, रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रोकेमिकल, इस्पात, प्रिंटिंग उद्योग आदि में कई अनुप्रयोग है। सतह के उपचार, कोटिंग द्वारा डिवाइस का जीवनकाल का विस्तार, उपकरणों का अच्छा रख-रखाव, उत्पादकता, गुणवत्ता नियंत्रण, लागत नियंत्रण और कोटिंग पर्यवेक्षण के लिए तकनीकी कौशल प्रदान करना इस कोर्स का लक्ष्य है।

Padamshree Info Desk

03/02/2024, 07:33 pm

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भारत में कुशल श्रमिकों का अभाव - आमजन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण की कमी का सूचक

भारत में कुशल श्रमिकों की संख्या कुल जनसंख्या का लगभग 5 प्रतिशत है। दूसरे देशों से अगर तुलना करें तो चीन में यह संख्या 47 प्रतिशत, जापान में 80 प्रतिशत, ब्रिटेन में 68 प्रतिशत, अमेरिका में 52 प्रतिशत और दक्षिण कोरिया में 96 प्रतिशत हैं। इस स्थिती को सुधारने के लिए सरकारी व निजी संगठनों को ईमानदारीपूर्वक आमजन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने हेतु हरसंभव प्रयास करने होगें। लोगों को जरूरत पड़ने पर धन मिले या न मिले लेकिन सूचनाएं सहज रूप से उपलब्ध होनी ही चाहिए।

होमी भाभा विज्ञान केन्द्र, मुम्बई के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ कृष्ण कुमार मिश्र के अनुसार ज्ञान-आधारित समाज के लिए आवश्यक है कि समाज के पास सूचनाओं का भंडार हो। विदेशों में तो वैज्ञानिक समुदाय द्वारा अनुसंधान के साथ-साथ आमजन से संवाद स्थापित करने का दायित्व उनकी पंरपरा में निहित होता है। 

नोबेल विजेता अनिवासी भारतीय जीव वैज्ञानिक डॉ हरगोबिन्द खोराना के अनुसार उन्हें आश्चर्य होता है कि वैज्ञानिक समुदाय मानवता के लिए इतने उल्लेखनीय कार्य करते हैं लेकिन भारत में ये वैज्ञानिक सार्वजनिक पहचान वाले प्रसिद्ध व्यक्ति नहीं बन पाते। जबकि विदशों में वैज्ञानिकों को अपार यश और कृति मिलती है। जब तक वैज्ञानिकों का या उनके अनुसंधान का आम जनता के साथ आत्मसात नहीं होता है तब तक भारत के आमजन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण उचित प्रकार से विकसित नहीं हो पाएगा। 

धर्म आधारित भारत देश में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए देखें www.psnewsportal.com/ Subscribe - Science & Info/ Phase I

Padamshree Info Desk

08/01/2024, 05:42 pm

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सराहनीय उपलब्धि ! बेंगलुरुवासियों को बधाई

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने केम्पेगौड़ा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे, टर्मिनल 2 द्वारा हवाई अड्डों की श्रेणी में इंटीरियर 2023 के लिए वर्ल्ड स्पेशल पुरस्कार जीतने पर आज बेंगलुरुवासियों को बधाई दी और कहा कि -

केम्पेगौड़ा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का टर्मिनल 2 केवल ऊर्जावान बेंगलुरु शहर का प्रवेश द्वार ही नहीं है, बल्कि यह असाधारण वास्तुशिल्पीय प्रतिभा भी प्रदर्शित करता है। यह उपलब्धी विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचे को कलात्मक सुंदरता के साथ संयोजित करने के देश के बढ़ते कौशल को दर्शाती है।

बेंगलुरु में केम्पेगौड़ा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के टर्मिनल 2 को लगभग 5000 करोड़ रुपये में तैयार किया गया है। टर्मिनल 2 के उद्घाटन के बाद पैसेंजर को संभालने की क्षमता के साथ-साथ चेक-इन और इमिग्रेशन के लिए काउंटर दोगुने हो जाएंगे, जिससे लोगों को काफी मदद मिलेगी। यह एयरपोर्ट सालाना 2.5 करोड़ से बढ़कर 6 करोड़ यात्रियों को संभालने में सक्षम हो जाएगा। 

एअरपोर्ट या झूलता हुआ गार्डन : केम्पेगौड़ा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के टर्मिनल 2 को बेंगलुरु के गार्डन सिटी के तर्ज पर डिज़ाइन किया गया है. इसे एयरपोर्ट आने वाले पैसेंनजर को गार्डन में टहलने जैसा अनुभव मिलेगा। पैसेंजर 10,000 वर्ग मीटर से ज्यादा की हरी दीवारों, लटकते बगीचों और बाहरी गार्डन से होकर यात्रा करेंगे और इन गार्डन को स्वदेशी तकनीक का उपयोग करके भारत में बनाया गया है।

इस इंटरनेशनल एयरपोर्ट ने पहले से ही पूरे परिसर में 100 फीसदी के रिन्यूबल एनर्जी का उपयोग करके एक बेंचमार्क स्थापित किया है। टर्मिनल 2 को स्थिरता सिद्धांतों के साथ बनाया गया है। टर्मिनल के डिजाइन के लिए, अमेरिकी आर्किटेक्चर फर्म स्किडमोर, ओविंग्स एंड मेरिल (एसओएम) को चुना गया था। टर्मिनल के अंदर और बाहर दोनों ही तरफ हरी-भरी हरियाली देखने को भी मिलेगी।

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21/12/2023, 08:08 pm

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ग्रेफिन - सूचना तथा संचार जगत में क्रांति का माध्यम

सूचना तथा संचार की यह दुनिया ग्रेफिन के रथ पर सवार होकर तेजी से आगे बढ़ने के लिए तैयार है। दो रूसी वैज्ञानिकों ने नीदरलेंड में काम करते हुए ग्रेफिन की खोज की और इसके लिए साल 2010 में इन्हें नोबल पुरस्कार से नवाजा गया। प्रकृति में पाये जाने वाले कार्बन के 3 अपरूपक-हीरा, ग्रेफाइट तथा फुलरीन विशुद्ध माने जाते है। ग्रेफिन एक पतली परत है जो मोटाई में केवल एक परमाणु जितनी होती है लेकिन फौलाद को भी मात दे सकती है। यह स्टील से करीब 200 गुणा मजबूत, हीरे से ज्यादा कठोर एवं तांबें से बेहतर विद्युत सुचालक है। प्लास्टिक की पन्नी जितनी मोटी ग्रेफिन की झिल्ली एक सामान्य कार जितना वजन उठा सकती है।  

ग्रेफिन का नाम ेग्रेफाइट से निकला है। किसी 1 मिलीमीटर मोटी ग्रेफाइट की शीट में लगभग तीस लाख ग्रेफिन की परतें होती है। कंप्यूटर में इस्तेमाल होने वाली सिलिकॉन चिप्स का प्रयोग उसकी सामथर्य के उच्चम स्तर पर पहुॅंच चुका है। ग्रेफिन के इलेक्ट्रॉन सिलिकॉन की तुलना में 100 से 2000 गुना ज्यादा रफ्तार से गतिमान करते है। भविष्य में बनने वाले कंप्यूटर कई गुना अधिक क्षमता तथा स्पीड वाले होगें। इसके अतिरिक्त सौर बैटरियों, लाइट पैनलों, टच स्क्रीन, फोटोडिटेक्टर, अल्ट्राफास्ट, उपग्रहों, हवाई जहाजों, कारों तथा रक्षा क्षेत्रों में उन्नत किस्म के साजोसमान बनाने में ग्रेफिन ज्यादा मददगार साबित होगा। सबसे अच्छी बात यह होगी कि प्लेटिनम तथा इरीडियम जैसी महगीं धातअुं का एक अच्छा विकल्प ग्रेफीन के रूप में मिल जाएगा। इससे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की कीमतों में कमी आ सकेगी।

Padamshree Info Desk

23/11/2023, 04:54 pm

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गंगा नदी निकलती है या बनती है

बद्रीनाथ के संतोपंतहिमानी गलेशियर के एक ओर से विष्णुगंगा एवं दूसरी ओर से धौलीगंगा नदी निकलती है तथा जिस स्थान पर इन दोनों नदियों का संगम होता है उसे विष्णुप्रयाग के नाम से जाना जाता है। विष्णुप्रयाग उतराखंड के चमौली जिले में स्थित एक बस्ती है। जब किसी संगम स्थल पर दोनों नदियों की गहराई लगभग बराबर होती है तो नदी का नाम बदल दिया जाता है, अतः दोनों नदियां मिलकर अलकनंदा के नाम से आगे बढ़ती है, अन्यथा किसी भी संगम स्थल पर जिस नदी की गहराई अधिक होती है उसी के नाम से नदी आगे बहती है। 

अब अलकनंदा नदी आगे बहती है और नंदप्रयाग पर नंदाकिनी का संगम होता है। नंदाकिनी नदी का उदगम स्थल त्रिशूल पर्वत की तलहटी पर स्थित नन्दाधुंधटी माना जाता है। नंदप्रयाग चमौली जिले की एक तहसील है। चूकीं इस संगम स्थल पर नंदाकिनी की गहराई कम होती है, अतः यह नदी अलकनंदा के नाम से ही आगे बढ़ती है। 

कर्णप्रयाग संगम स्थल पर पिण्डार नदी अलकनंदा में मिलती है। पिण्डार नदी पिण्डारी हिमानी ग्लेशियर के पिघलाव से आंरभ होती है। कर्णप्रयाग संगम स्थल पर भी पिण्डार की गहराई कम होने के कारण अलकनंदा के नाम से ही नदी आगे बहती है। कर्णप्रयाग भी चमौली जिले का एक कस्वा है।

आगे जाकर रूद्रप्रयाग में मंदाकिनी नदी का संगम होता है जो केदारनाथ से आती है। रूद्रप्रयाग उतराख्ंड राज्य का एक जिला है।

मंदाकिनी नदी को लेकर अलकनंदा और आगे बढ़ती है जहॉं देवप्रयाग में भागीरथी नदी का संगम होता है। यह भागीरथी उतरकाशी जिले के गंगोत्री कस्बे में गोमूख प्वांइट से निकलती है। उतराखंड के लोग इसी भागीरथी को आज भी असली गंगा नदी मानते है और बंगाल के लोग गंगा को भागीरथी के नाम से मानते है। इस भागीरथी नदी के देवप्रयाग पहुॅंचने से पहले इसमें भिल्लागंना नदी भी मिलती है जो खतलिंग ग्लेशियर की तलहटी से निकलती है। भागरीरथी व भिल्लागंना नदी के संगम स्थल के पास ही टिहरी बांध व कोटेश्वर बांध बना हुआ है। देवप्रयाग संगम स्थल पर भागीरथी व अलकनंदा नदी की गहराई एक समान होने के कारण यहॉं से इस नदी का नाम गंगा हो जाता है। वास्तव में देखा जाए तो गंगा नदी कहीं से निकलती नहीं है, देवप्रयाग से बनती है। देवप्रयाग उतराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले का एक नगर है। गढ़वाल क्षेत्र में मान्यतानुसार भागीरथी नदी को सास व अलकनंदा को बहु कहा जाता है। 

इस पूरे क्षेत्र में मानव बस्ती कम होने के कारण प्रदूषण भी बहुत कम हाता है, इस कारण इन क्षेत्र में बैक्टिरियाफेज पाया जाता है जो नदियों में पाये जाने वाले हानिकारक जीवाणुओं व कीटाणुओं का सफाया कर देता है। यही कारण है कि गंगा जल में कीडे-मकौडें नहीं पाये जाते है और गंगा जल को शुद्ध समझा जाता है।

Sources : Khan Sir 

Padamshree Research Desk

07/11/2023, 11:28 am

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इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेब/ विद्युत चुंबकीय तरंग

जिन तरंगों के संचरण के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है, उन्हें विद्युत चुंबकीय तरंग कहते हैं। विद्युत चुंबकीय तरंग या इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेब का एक छोटा सा भाग है जिसे प्रकाश कहते है। ध्वनि एक यांत्रिक तरंग है, विद्युत चुंबकीय तरंग नहीं है इसलिए ध्वनि के संचरण के लिए किसी माध्यम का होना जरूरी है। प्रकृति में कुछ तरंगें विद्युत चुम्बकीय नहीं होती हैं- जैसे अल्ट्रासोनिक तरंग, ध्वनि तरंग, अल्फा किरणें, बीटा किरणें, कैथोड किरणें और कैनाल किरणें। चूंकी विद्युत चुंबकीय तरंग के संचरण के लिए किसी माध्यम का होना आवश्यक नहीं है, अतः शून्य में प्रकाश के वेग से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेब 299,800 कि.मी. प्रति सेकण्ड से गति कर सकती है। कोई भी वस्तु इससे अधिक वेग से गति नहीं कर सकती है।

इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेब फोटान से मिलकर बनी होती है। सूर्य की बाहरी सतह से निकलने वाली विद्युत चुंबकीय तरंग की श्रेणी को विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रा कहा जाता है। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेब 7 प्रकार की होती है-
1. रेडियों तरंग - यह मानवनिर्मित भी होती हैं और प्राकृतिक भी। मानव की कोई इंद्रिय इसे पहचान नहीं सकती। यह किसी अन्य तकनीकी उपकरण (जैसे, रेडियो संग्राही) द्वारा पकड़ी एवं अनुभव की जातीं हैं। इनका प्रयोग बिना तार के सूचना का आदान-प्रदान करने में होता है, जैसे मोबाइल, रेडियो, एफ. एम., टेलीविजन आदि में रेडियो तरंग मिलती है जो स्पीकर में लगे यांत्रिक प्रक्रिया से ध्वनि तरंग में बदल जाती है। इसके अतिरिक्त एम. आर. आई., दूर-दराज क्षेत्रों के तापमान मापने में भी इसका प्रयोग होता है। 

2. सूक्षम/ माइक्रोवेव तरंग - वायरलेस तकनीक सूचना संचारित करने में रेडियो तरंगों के साथ-साथ माइक्रोवेव तरंगों का भी उपयोग होता है। माइक्रोवेव का उपयोग उपग्रहों से संकेत को भेजने के लिए किया जाता है। ये सिग्नल टेलीविज़न कार्यक्रमों, टेलीफोन वार्तालाप, मौसम पूर्वानुमान या पृथ्वी की निगरानी के लिए सेटेलाइट का उपयोग आदि हो सकते हैं। खाना पकाने में भी इस तरंग का उपयोग होता है।

3. अवरक्त/ इन्फ्रारेड तरंग - यह तरंग वस्तुओं के गर्म होने पर उत्सर्जित होती है लेकिन विज़िबल लाइट को उत्सर्जित करने के लिए पर्याप्त गर्म नही होती है। उदाहरण के लिए गर्म लकड़ी का कोयला प्रकाश नही दे सकता है लेकिन यह इंफ्रारेड रेडिएशन उत्सर्जित करता है जिसे हम गर्मी के रूप में महसूस करते हैं। विद्युत हीटर, खाना पकाने, इन्फ्रारेड कैमरा, टीवी रिमोट कंट्रोल चैनल बदलने के लिए, अकाश को देखने के लिए दूरबीनों के उपयोग में इसका उपयोग होता है। इंफ्रारेड लाइट का अनुप्रयोग औद्योगिक, वैज्ञानिक, चिकित्सा में भी किया जाता है। इन्फ्रारेड तरंग से उन वस्तुओं का पता लगाया जा सकता है जो विजिबल लाइट से पता नहीं चल सकती।    

4. दृश्य प्रकाश तरंग - मानव की आँखें, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेब/ विद्युतचुंबकीय तरंग के जिस भाग को देख सकती है, उसे दृश्य प्रकाश कहते है। फाइबर ऑप्टिक संचार में इस तरंग का उपयोग होता है।

5. पराबेंगनी किरण - पराबेंगनी किरणों का प्राकृतिक स्त्रोत सूर्य है। टैनिंग बूथ, ब्लेक लाइट, क्युरिंग लेंप, हेलोजन लाइट, जरमिसाइडल लेंप आदि इस किरण के कृत्रिम स्त्रोत है। उर्जा कुशल लैंप व सन टैनिंग में इस तरंग का उपयोग होता है। हमारे शरीर में विटामिन डी एवं मूड को अच्छा बनाने में पराबेंगनी किरण का उपयोग है लेकिन ओजोन परत में छेद होने के कारण पराबेंगनी किरणों की सघनता बढ़ जाती है और इससे अनेक प्रकार की शारीरिक समस्याएं होने लगती है। इंसान इस किरण को नहीं देख सकता लेकिन मधुमक्खियां अल्ट्रावायलेट लाइट को देख सकती है।   

6. एक्स-रे तरंग - चिकित्सा इमेजिंग व उपचार में इस तरंग का उपयोग होता है। हमारे शरीर के किसी हिस्से का एक्स-रे लेने में सेकेंड के कुछ हिस्से तक का ही समय लगता है। उद्योगों में, विशेषतः निर्माण तथा निर्मित पदार्थो के गुणों के नियंत्रण में एक्स-रे का बहुत उपयोग होता है। निर्मित पदार्थो की अंतस्य त्रुटियाँ एक्स-रे फोटोग्राफों द्वारा सरलता से ज्ञात की जा सकती हैं। प्रकाश सूक्ष्मदर्शी से जिन बातों का पता नहीं चल पाता उनका ज्ञान सरलतापूर्वक एक्स-रे सूक्ष्मदर्शी से हो जाता है। 

7. गामा किरण- गामा किरणें ब्रह्माण्ड में होने वाली अति उच्च ऊर्जा वाली परिघटनाओं के बारे में जानकारी देता है क्योंकी यह किरण ब्रह्माण्ड के सबसे गर्म क्षेत्रों द्वारा उत्पादित होती है, अतः गामा किरणों को प्रकाश का सबसे उर्जावान रूप माना जाता है। यह शक्तिशाली किरण है जो लौह और सीसा में कई सेंटीमीटर तक गुजर जाती है तथा इमारतों को भी चीर सकती है। परमाणु बम के विकास में भी इस किरण का महत्वपूर्ण उपयोग है।            

Garvit Jain

13/10/2023, 12:20 pm

Student - Engineering,

Maharastra, India

garvitjain.gj19@gmail.com

Technical Associate

दुनिया का सबसे उंचा पेड़

दुनिया  के सबसे उंचे पेड का नाम हाइपेरियन है जो कैर्ल्फिनिया के रेडवुड नेशनल पार्क में है। यह पेड़ लगभग 600 साल पुराना है। इस पेड की उंचाई 115.85 मीटर है तथा यह स्टेच्यू ऑफ लिर्बटी से लगभग 23 मीटर उंचा है। यह पेड 3.9 से.मी. प्रति वर्ष उंचाई से आज भी बढ रहा है। इस पेड के जड़ की गहराई मात्र 4 मीटर है लेकिन ये जड़ें 30 मीटर क्षेत्र में फैलकर आस-पास के पेडो की जड़ों से संयुक्त हो जाती है। इसकी छाल 12 ईंच मोटी होती है जो वहां लगने वाली आग से इसे बचाती है। गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने इसे दुनिया के सबसे ऊंचे पेड़ के रूप में आधिकारिक तौर पर प्रमाणित किया है।

इस पेड़ के पास पहुॅंचकर इसके साथ सेल्फी लेना आसान नहीं है क्योंकी इसकी लोकेशन बिल्कुल सीक्रेट रखी गई है ताकि इस पेड़ को कोई नुकसान न पहुॅंचा सके। जुलाई 2022 में रेड वूड नेशनल पार्क ने यह बयान जारी किया है कि कोई इंसान यदि इस पेड़ के पास पकडा गया तो उसे छः महिने तक की जेल और 5000 डॉलर (लगभग 4 लाख रूपये) का जुर्माना हो सकता है। कारण यह बताया गया है कि लोगों के इस पेड़ के पास आने से इस पेड़ के आस-पास के आवास की तबाही हुई है। 

इसी पार्क में एक हिलीयस नाम का पेड भी है जो 114.1 मीटर उंचा है। 

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23/09/2023, 06:05 pm

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भारत में एयरपोर्ट का विस्तृत विवरण

भारत में चार प्रकार के एयरपोर्ट हैं- अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट, घरेलू एयरपोर्ट, कस्टम एयरपोर्ट और डिफेंस एयरपोर्ट। इसमें सिविल के लिए 91 घरेलू एयरपोर्ट, 23 घरेलू सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट, 29 अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट और 10 कस्टम एयरपोर्ट है। भारत के एयरपोर्टों का विस्तृत विवरण इस प्रकार है-

घरेलू एयरपोर्ट एवं घरेलू सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट

डोमेस्टिक एयरपोर्ट का इस्तेमाल अंतरराज्य उड़ानों के लिए किया जाता है। अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट की तुलना में यह छोटे और कम व्यस्त होते हैं। कुछ सैन्य हवाई अड्डों में नागरिकों के लिए भी हवाई यात्रा करने की सुविधा होती है, इनमें आम तौर पर नागरिक हवाई अड्डे और सैन्य एयरबेस दोनों की सुविधाएं होती हैं। वास्तव में सिविल एन्क्लेव सैन्य हवाई अड्डे पर नागरिक उड्डयन के उपयोग के लिए आवंटित एक क्षेत्र है। भारत में लगभग 91 घरेलू एयरपोर्ट तथा 23 डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट है- 
1. आदमपुर-जालंधर (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव)
2. आइजोल तुरियल (डोमेस्टिक-नॉन ऑपरेटिव)
3. आगरा (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट) 
4. अगरतला-(डोमेस्टिक एयरपोर्ट)  
5. अगाती-लक्ष्यद्वीप (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
6. अकोला (डोमेस्टिक एयरपोर्ट) 
7. आसानसोल (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव) 
8. बालूरघाट (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव) 
9. बेहाला (कोलकता- डोमेस्टिक एयरपोर्ट) 
10. बेलगावी-बेलगाम (डोमेस्टिक एयरपोर्ट) 
11. बैंगलोर एच.ए.एल-(डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
12. बैंगलोर सी.ई. (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव-नॉन ऑपरेटिव)
13. बरेली (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट) 
14. बिलासपुर-(डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
15. बीकानेर (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट)
16. भटिंडा (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट)
17. भुज (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट) 
18. भावनगर-(डोमेस्टिक एयरपोर्ट) 
19. भोपाल-(डोमेस्टिक एयरपोर्ट) 
20. चाकुलिया (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव) 
21. कूचबिहार (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
22. दरभंगा (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव-नॉन ऑपरेटिव)
23. देहरादून (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
24. दिउ (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
25. दपारीजो (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव)
26. दीसा (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव) 
27. देवघर (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव) 
28. दुर्गापुर (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
29. डिबू्रगढ़ (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
30. डिमापुर (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
31. डोनाकांडा (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव) 
32. धालभूमगढ़ (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव)
33. धूबड़ी-रूपसी (डोमेस्टिक एयरपोर्ट) 
34. फैजाबाद (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
35. गोंदिया (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
36. गोरखपुर (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट)
37. ग्वालियर (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट)
38. हिंडोन (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट)
39. हिसार (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
40. हुबली (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
41. हैदराबाद (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
42. जामनगर (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट)
43. जैसलमेर (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट)
44. जम्मू (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट)
45. जोधपुर (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट)
46. जोरहाट (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट)
47. जोगबनी (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव) 
48. जबलपुर (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
49. जलगांव (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
50. जगदलपुर (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
51. जूनागढ़-कैशाद (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
52. झारसुगूढ़ा-उड़ीसा (डोमेस्टिक एयरपोर्ट) 
53. जुहू (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
54. कडपा (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
55. कालाबुर्गी (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
56. कांदला (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
57. कांगडा (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
58. कानपुर सिविल (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
59. कानपुर चकरी (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव)
60. किशनगढ़ (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
61. कोल्हापुर (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
62. कोटा (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
63. कुल्लू (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
64. कैलाशहर-उनाकोटी (डोमेस्टिक नॉन ऑपरेटिव) 
65. कमालपुर (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव) 
66. खंडवा (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव), 
67. खावाई-त्रिपुरा (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव)
68. खजुराहो (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
69. लेह (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट)
70. ललितपुर (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
71. लीलबारी-लखीमपुर (डोमेस्टिक एयरपोर्ट) 
72. लुधियाना (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
73. लैंगुपई-आइजोल (डोमेस्टिक एयरपोर्ट) 
74. मुन्द्रा (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
75. मैसूर (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
76. मेरठ (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
77. मालदा (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव) 
78. मुरादाबाद (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
79. मुज्जफरपुर (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव) 
80. नादिरगुल (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव) 
81. नांदेर (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
82. नासिक (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
83. पठानकोट (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट)
84. पासिघाट-अरूणाचल प्रदेश (डोमेस्टिक एयरपोर्ट) 
85. पाक्योंग-सिक्किम (डोमेस्टिक एयरपोर्ट) 
86. पंतनगर (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
87. प्रयागराज (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट)
88. पोरबंदर (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
89. पुदुच्चेरी/पांडीचेरी (डोमेस्टिक एयरपोर्ट) 
90. पन्ना (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव) 
91. पिथोरागढ़ (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
92. रक्सोल (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव) 
93. रायपुर (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
94. राजामुंदरी (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
95. राजकोट (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
96. रॉंची (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
97. सफदरगंज (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
98. सतना (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव) 
99. शेला-मेघालय (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
100. सलेम (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
101. सिल्चर (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट)
102. शिलांग (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
103. शिमला (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
104. शोलापुर (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
105. तेजपुर (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव एयरपोर्ट)
106. तेजू-लोहित (डोमेस्टिक एयरपोर्ट) 
107. टूटीकोरिन (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
108. थंजावुर (डोमेस्टिक सिविल एन्कलेव-नॉन ऑपरेटिव) 
109. उदयपुर (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
110. वेल्लोर (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव) 
111. वडोदरा (डोमेस्टिक एयरपोर्ट) 
112. वांरगल (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव) 
113. विजयानगर (डोमेस्टिक एयरपोर्ट)
114. जेरा (डोमेस्टिक एयरपोर्ट-नॉन ऑपरेटिव) 

अन्तर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट 

इन एयरपोर्ट के माध्यम से देश से बाहर जाने के लिए उड़ानें शुरू होती हैं। वहीं, दूसरे देशों से आने वाले हवाई जहाज भी इन्हीं हवाई अड्डों पर उतरते हैं। यही वजह है कि फ्लाइट की अधिक संख्या होने के कारण यह घरेलू एयरपोर्ट की तुलना में अधिक व्यस्त होते हैं। हालांकि, इन एयरपोर्ट के माध्यम घरेलू उड़ानें भी भरी जा सकती हैं। वर्तमान में भारत में लगभग 29 अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट हैं-
1. अहमदाबाद  2. अमृतसर  3. बेंगलोर बी.आई.ए.एल.  4. भुवनेश्वर  5. कालीकट  6. चेन्नई  7. कोयबंटूर  8. कोचीन  9. दिल्ली  10. गुवाहटी  11. गोवा  12. हैदराबाद जी.एच.आई.ए.एल.  13. इम्फाल  14. जयपुर  15. कोलकता  16. कुशीनगर  17. कन्नूर के.आई.ए.एल.  18. लखनउ  19. मेंगलोर  20. मुम्बई  21. नागपुर  22. पोर्ट ब्लेयर  23. श्रीनगर  24. शिरड़ी  25. त्रिवेन्द्रम  26. तिरूचिरापल्ली  27. तिरूपति  28. वाराणसी  29. विजयवाड़ा  

कस्टम एयरपोर्ट 

भारत में सीमा शुल्क एयरपोर्ट भी हैं, जहां पर आम नागरिकों की संख्या कम रहती है। इन जगहों पर दूसरे देशों से आने वाले सामान की जांच करने के साथ शुल्क भी लागू होता है। यहां तैनात अधिकारी अवैध रूप से होने वाली तस्करी पर भी नजर रखते हैं। वर्तमान में ऐसे एयरपोर्ट की संख्या लगभग 10 है -
1. ओरंगाबाद  2. गया  3. इन्दौर  4. मदुरै  5. पटना  6. सूरत  7. बागडोगरा  8. चंडीगढ़  9. पुणे  10. विशाखापटनम

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10/09/2023, 02:09 pm

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जी 20 (अब जी 21) का 18 वां शिखर सम्मेलन

परिचय - 1990 के दशक के अंत में विशेष रूप से पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया को प्रभावित करने वाले वित्तीय संकट के जवाब में 1999 में जी 20 का गठन किया गया था। मध्यम आय वाले देशों को वैश्विक वित्तीय स्थिरता देने के लिए जी 20 को बनाया गया था। जी 20 में 20 देशों को सम्मिलित किया गया था, इसमें 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं। इन देशों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, रिपब्लिक ऑफ कोरिया, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं। जी 20 का एक उद्देश्य तकनीकी परिवर्तन और डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा तैयार करना भी है। इससे भारत ही नहीं बल्कि जी 20 में शामिल हर देश को लाभ होगा।

18 वां शिखर सम्मेलन - 9 व 10 सितंबर 2023 में 18 वें जी 20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी की जिम्मेदारी भारत को मिली है और यह हर भारतीय के लिए गर्व की बात है। इस सम्मेलन का एक उद्देश्य सुधारों और नवाचारों के माध्यम से 21वीं सदी की उभरती मांगों को पूरा करने के लिए वैश्विक संस्थानों की स्थापना करना है। इसका अन्य उद्देश्य है विकास के सभी पहलुओं में महिलाओं को सशक्त बनाना, समाज और अर्थव्यवस्था में उनके अमूल्य योगदान को मान्यता देना। ग्लोबल इकोनॉमी में करीब 80 फीसदी से ज्यादा का प्रतिनिधित्व करने वाले जी-20 की अध्यक्षता करना भारत के लिए एक बड़ा मौका है। 

भारत मंडपम - इस सम्मेलन का आयोजन प्रगति मैदान के 123 एकड़ क्षेत्र में फैले भारत व्यापार संवर्धन संगठन (India Trade Promotion Organization-ITPO) परिसर जिसे भारत मंडपम नाम दिया गया है, के अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी-सह-सम्मेलन केन्द्र (International Exhibition-Cum-Convention Centre-IECC) में किया गया। इसके लिए दिल्ली के साथ भारत मंडपम को भी बेहद खूबसूरत तरीके से सजाया गया। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 जुलाई 2023, बुधवार को पारंपरिक समारोह के साथ इस काम्पलेक्स का उद्घाटन किया। इस भारत मंडपम पर 2700 करोड़ रूपये खर्च हुए है। कन्वेंशन सेन्टर में 5 जी की कनेक्टिविटी से वाई-फाई, 10 जी इंट्रानेट कनेक्टिविटी, 16 विभिन्न भाषाओं का समर्थन करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक से लैस इंटरप्रेटर रूम, विशाल वीडियो वाल्स, एवी सिस्टम, डिमिंग और ऑक्यूपेंसी सेंसर के साथ प्रकाश प्रबंधन प्रणाली, अत्याधुनिक डी.सी.एन. (डेटा संचार नेटवर्क) प्रणाली, एकीकृत निगरानी प्रणाली और ऊर्जा-कुशल केंद्रीकृत एयर कंडीशनिंग प्रणाली शामिल है।

इस नए कन्वेंशन सेन्टर के बनने से भारत को ग्लोबल ट्रेड डेस्टिनेशन के रूप में बढ़ावा मिलेगा। देश के इस सबसे बड़े कन्वेशन सेंटर में 10 हजार लोगों के एक साथ बैठने की क्षमता है जिसकी तीसरी मंजिल में 7 हजार लोगों के एक साथ बैठने की क्षमता है व थियेटर में 3 हजार लोग एक साथ बैठ सकते हैं। टेक्नोलॉजी के साथ-साथ इसमें वी.आई.पी. की सुरक्षा का भी विशेष ध्यान व खास इंतजाम किया गया है। यहाँ 5,500 से अधिक वाहनों को पार्क करने की जगह है।

कन्वेंशन सेंटर का वास्तुशिल्प डिजाइन भारतीय परंपराओं से प्रेरित है। बिल्डिंग का आकार शंख से लिया गया है और इसकी विभिन्न दीवारें और अग्रभाग ट्रेडिशनल आर्ट और संस्कृति के कई एलिमेंट्स को दर्शाते हैं, जिनमें सूर्य शक्ति, जो सोलर एनर्जी के दोहन में देश के प्रयासों को उजागर करता है, ज़ीरो टू इसरो अंतरिक्ष में अपनी उपलब्धियों का जश्न मनाता है, पंच महाभूत-आकाश, वायु, आग, जल, पृथ्वी जो यूनिवर्सल फाउंडेशन के बिल्डिंग ब्लॉक्स को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त भारत मंडपम के बाहर 27 फुट उंची नटराज की मूर्ति स्थापित की गई है जिसका वजन 20 टन है। यह दुनिया में भगवान शिव के नृत्य यानि नट रूप की सबसे उंची मूर्ति है। यह मूर्ति अष्ट धातु- सोना, चांदी, तांबा, जस्ता, शीशा, टिन, पारा व लोहा का उपयोग करके तैयार की गई है और इसे चोल पंरपरा की शैली में बनाया गया है जो दक्षिण भारत में प्रचलित थी।

18 वें शिखर सम्मेलन के महत्वपूर्ण बिन्दु : - 
भारत की पहल पर 55 सदस्यों वाले अफ्रिकी यूनियन को जी 20 में स्थायी सदस्यता मिलने के कारण अब यह जी 21 के नाम से जाना जाएगा। 55 सदस्यों वाले अफ्रिकी यूनियन की कुल जी.डी.पी. लगभग 250 लाख करोड़ रूपये है और आबादी 140 करोड़ है।

मुम्बई से फ्रांस तक शिपिंग-रेल-रोड़ कॉरिडोर के बनने से बड़ा आर्थिक सेतू बनेगा। भारत पहले से ही 7200 कि.मी. रूस-ईरान इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांस्पोर्ट का हिस्सा है। यह नया कॉरिडोर भारत को दक्षिण पूर्व एशिया से खाड़ी, पश्चिम एशिया और यूरोप तक कारोबार बढाने में मदद करेगा। इस नये कॉरिडोर में 8 सदस्य- भारत, अमेरिका, यू.ए.ई., सउदी अरब, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपियन देश शामिल होगें।

भारत की अध्यक्षता में वन अर्थ, वन फैमिली, वन फयूचर की थीम पर प्रस्तुत किये गये 83 पैरा के धोषणा पत्र पर शत-प्रतिशत सहमति मिली। जी 20 के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है। 

Padamshree Research Desk

08/08/2023, 01:28 pm

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पसीना

हमारे शरीर से निकलने वाला पसीना हमारे शरीर के जल व लवण के संतुलन को बनाए रखने में सहायक होता है। यह पसीना शरीर की एक्राइन स्वेद ग्रंथियों (Eccrine Sweat Gland) से बाहर आता है। व्यस्क मनुष्य के सम्पूर्ण शारीरिक त्वचा में 20 लाख से 35 लाख एक्राइन स्वेद ग्रंथियां होती है और इन सभी स्वेद ग्रंथिओं का कूल भार लगभग 100 ग्राम होता है। सर्वाधिक एक्राइन स्वेद ग्रंथियां व्यस्क मनुष्य के पैरों में होती है जहां इसकी संख्या प्रति वर्ग से.मी. लगभग 620 होती है। इसके बाद हथेली, मस्तिष्क, कांख, गाल पर इनकी संख्या ज्यादा होती है। सबसे कम एक्राइन स्वेद ग्रंथियां पीठ की त्वचा में होती है जहां इसकी संख्या लगभग 64 होती है। इसके अतिरिक्त एपोक्राइन स्वेद ग्रंथियों (Apocrine Sweat Gland) से भी पसीना बाहर आता है जो बालों की जड़ों के छिद्रों,भौंह, कांख, सीना आदि में से निकलता है। एक्राइन स्वेद ग्रंथियों से निकलने वाला पसीना समान्यतः पतला व गंधरहित होता है जबकि एपोक्राइन स्वेद ग्रंथियों से निकलने वाला पसीना गाढ़ा व गंधयुक्त होता है।

स्वेद ग्रंथियों से स्रावित होने वाले पसीने की दर त्वचा में मौजूद उष्मा संवेदक और अधश्चेतक (Hypothalamus) में स्थित केन्द्रंय ताप नियंत्रक केन्द्र दोनों तय करते हैं। इसके अतिरिक्त शरीर से निकलने वाले पसीने की मात्रा बाह्य वातावरण की सापेक्षिक आर्द्रता पर भी निर्भर करती है। पसीना शरीर को तभी तक गरम होने से बचा सकता है जब तक उसका वाष्पन होता रहता है। यदि पसीना वाष्पित होने की बजाए शरीर से टपकता रहता है तो शरीर के तापमान को समस्थिती में बनाए रखने में मदद नहीं मिलती। वातावरण शुष्क हो तो पसीना तेजी से वाष्पित होता है। वातावरण में आर्द्रता बढ़ने पर पसीने का वाष्पन कम होने लगता है। यही कारण है कि एक समान वायुमंडलीय तापमान में भी आर्द्र गर्मी शुष्क गर्मी से कहीं अधिक कष्टदायक महसूस होती है।

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02/07/2023, 07:35 pm

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2 July - World UFO Day

आसमान में दिखने वाली ऐसी रहस्यमयी चीजें जो इंसानों ने नहीं बनायी है उसे यू.एफ.ओ. नाम (Unidentified Flying object-UFO) दिया गया है। यू.एफ.ओ. को आमतौर पर दूसरी दूनिया से आने वाले एलिअंस का अंतरिक्ष यान माना जाता है। नासा की एक साइट के अनुसार अभी तक किसी भी अंतरिक्ष यात्री ने यू.एफ.ओ. नहीं देखा है। इस क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या है कि यू.एफ.ओ. से संबंधित अधिक जानकारियां उपलब्ध नहीं है, यह घटना कब और कहां घटेगी, इसे पहले नहीं बताया जा सकता।

हालांकि आए दिन एलिअंस और यू.एफ.ओ. को देखने के दावे किये जाते है लेकिन अभी तक किसी दूसरी दूनिया के अंतरिक्ष यान के सबूत नहीं मिले है। हर साल 2 जुलाई को मानाया जाने वाल वर्ड यू.एफ.ओ. डे, मौका देता है कि यू.एफ.ओ. में दिलचस्पी रखने वाले समस्त लोग अपने अन्वेषण और कल्पना को दुनिया भर में प्रस्तुत कर सके। दुनियाभर में कहीं भी, कभी भी हो सकने वाली इस घटना के आंकड़ों को जमा करना ही इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य है। बह्मंड में अरबों आकाशगंगाएं, तारे एवं ग्रह है, अतः वैज्ञानिकों के अनुसार एलिअंस एवं विदेशी अंतरिक्ष यान के होने की पूरी-पूरी संभावना है। अभी तक हम अपने सौरमंडल का भी पूरी तरह से अवलकोन नहीं कर सके है।    

Padamshree Info Desk

02/07/2023, 07:10 pm

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तापमान का मापन - सेल्सियस और फ़ॉरेनहाइट

सेल्सियस और फ़ाॅरेनहाइट दोनों तापमान को मापने के मात्रक है। सेल्सियस को डिग्री से. (°C) द्वारा दर्शाया जाता है और फाॅरेनहाइट को डिग्री एफ (°F) में दर्शाया जाता है। फारेनहाइट ही पहले प्रचलन में आने वाला ताप का पैमाना (स्केल) था। परम्परागत ज्वर मापने के लिये प्रयुक्त थर्मामीटर में इसी पैमाने का प्रयोग आज भी होता है। यदि किसी व्यक्ति के शरीर का तापमान 98 डिग्री फारेनहाइट से ज्यादा हो जाता है तो वह ज्वर पीड़ित माना जाता है। 

सेल्सियस को फारेनहाइट में बदलने का फार्मूला °C x 1.8 + 32 = °F है और फाॅरेनहाइट को सेल्सियस में बदलने का फार्मूला °F - 32 / 1.8 = °C है।   

किसी भी व्यक्ति के शरीर का सामान्य तापमान सेल्सियस में 37 °C और फॉरेन्हाइट में 98.6 °F होता है। पानी के जमने का तापमान 0 °C में और फाॅरेनहाइट में 32 °F में व्यक्त किया जाता है। पानी के उबलने का तापमान 100 °C में और फाॅरेनहाइट में 212 °F में व्यक्त किया जाता है।

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21/05/2023, 06:17 pm

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मृत सागर

मृत सागर एक नमक की झील है जो पूर्व में जॉर्डन और पश्चिम में इजरायल द्वारा सीमाबद्ध है। मृत सागर समुद्र तल से 440 मीटर नीचे, दुनिया का सबसे निचला बिंदु कहा जाने वाला सागर है। इसे खारे पानी की सबसे निचली झील भी कहा जाता है। 65 किलोमीटर लंबा, 18 किलोमीटर चौड़ा और 306 मीटर गहरा है। यह सागर अपने उच्च घनत्व के लिए जाना जाता है, जिससे तैराक चाहकर भी डूब नहीं सकता हैं। इसे उत्प्लावाक बल (Buoyant Force)  भी कहते है। दरअसल इस समुद्र की डेंसिटी इतनी ज्यादा है कि इसमें पानी का बहाव नीचे से ऊपर की ओर है और यही कारण है कि इस समुद्र में सीधे लेट जाने पर आप इसमें डूब नहीं सकते। इस सागर में स्नान करने पर कई बीमारियां ठीक हो जाती है। इस सागर में तैरते वक्त यह ध्यान रखा जाता है कि इसका पानी में आंखों में न जाने पाए।  

आम पानी की तुलना में मृत सागर के पानी में 20 गुना ज्यादा ब्रोमीन, 50 गुना ज्यादा मैग्नीशियम और 10 गुना ज्यादा आयोडीन होता है। ब्रोमीन धमनियों को शांत करता है, मैगनीशियम त्वचा की एलर्जी से लड़ता है और श्वासनली को साफ करता है, जबकि आयोडीन कई ग्रंथियों की क्रियाशीलता को बढ़ाता है।

नमक ज्यादा होने के कारण इसमें मछली या दूसरे जलीय जीव जीवित नहीं रह सकते और शार्क का भी कोई भय नहीं। इसके अलावा यहां जलीय पौधे भी नहीं पनप पाते, केवल कुछ बैक्टीरिया और शैवाल ही मिलते हैं।

R K Jain

06/03/2023, 11:55 am

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Director

फील गुड न्यूरो हार्मोन्स

हमारा मस्तिष्क कई बार काम करते-करते परेशान हो जाता है और हमारे चेहरे पर थकान दिखने लगती है। इसके विपरीत जब मस्तिष्क शांत रहता है तो चेहरे पर खुशी नजर आती है। हमारे मस्तिष्क के शांत रहने या परेशान होने का संबंध हमारे मस्तिष्क में बनने वाले दो तरह के हैप्पीनेस हार्मोन्स से है- सिरोटोनिन एवं डोपामाइन, जिसे बनाने का काम हमारे शरीर में न्यूरॉन करते है। रात को जब हम चैन की नींद सोते है या जब हमारा दिमाग शांत रहता है तो ये हैप्पीनेस न्यूरो केमिकल्स बनते रहते है, लेकिन दिमाग द्वारा अत्यधिक काम करने पर या हर समय निगेटीव विचार करते रहने पर हमारा मस्तिष्क ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस में चला जाता है और बहुत सारे हानिकारक न्यूरो केमिकल्स रिलीज होने लगते है जिससे न्यूरॉन द्वारा हैप्पीनेस न्यूरो हार्मोन्स का बनना कम हो जाता है। 

हम कितने भी व्यस्त रहे लेकिन हमारे दिमाग का शांत रहना बहुत जरूरी है। दिमाग को शांत रखने के लिए जितना संभव हो सके, गहरी श्वास लें। किसके अंदर क्या कमी है, इस पर ध्यान केन्द्रित नहीं करें, बल्कि किसके अंदर पूर्णता है, उन पर ध्यान केन्द्रित करें। कमियां खुद के अंदर ढूढें, दूसरों के अन्दर नहीं। इसके अतिरिक्त नियमित व्यायम करने एवं संगीत सुनने से भी फील गुड न्यूरो हार्मोन्स- सिरोटोनिन एवं डोपामाइन बनने में सहायता मिलती है।
 

Padamshree Info Desk

05/02/2023, 01:36 pm

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सिस्मिक इंजीनियर (Seismic Engineering)

सिस्मिक इंजीनियरिंग भूकंप से संबंधित शिक्षा है जिसके अंतर्गत भूकंप वैज्ञानिकों के साथ इंजीनियर एवं तकनीशियन, सिविल एवं संरचना इंजीनियर भी शामिल होते हैं जो कम्प्यूटर, भौतिक विज्ञान, इलेक्ट्रॉनिक और दूरसंचार सिविल एवं संरचना इंजीनियरी जैसे विषयों में पारंगत होते हैं। 

भूकंप एक विनाशकारी प्राकृतिक घटना है। पृथ्वी के भूपटल में उत्पन्न तनाव का उसकी सतह पर अचानक मुक्त होने के कारण पृथ्वी की सतह का हिलना या कांपना भूकंप कहलाता है। हमारी धरती मुख्य तौर पर चार परतों से बनी हुई है- इनर कोर, आउटर कोर, मैनटल और क्रस्ट। क्रस्ट और ऊपरी मैन्टल को लिथोस्फेयर कहते हैं। 50 कि.मी. की मोटी परत जो वर्गों में बंटी हुई है, टैकटोनिक प्लेट्स कहा जाता है। ये टैकटोनिक प्लेट्स अपनी जगह से हिलती रहती हैं लेकिन जब ये बहुत ज्यादा हिल जाती हैं तो भूकंप आ जाता है। 

भूकंप की तीव्रता मापने के लिए रिक्टर स्केल का पैमाना इस्तेमाल किया जाता है, इसे रिक्टर मैग्नीट्यूड टेस्ट स्केल कहा जाता है। भूकंप की तरंगों को रिक्टर स्केल 1 से 9 तक के आधार पर मापता है।

मैग्नीट्यूड       श्रेणी             प्रभाव 
1-2.9          सबसे        इसका अहसास भी
                कम कंपन    नहीं होता है, केवल 
                                  उपकरण पर दर्ज होता है।

3-3.9     मामूली      इससे नुकसान तो नहीं होता है 
             अहसास    लेकिन लोगों को अहसास होता है।

4-4.9     हल्का     लोगों को थोड़ा अधिक अहसास होने
             कंपन     के साथ मामूली नुकसान। 

5-5.9  मध्यम कंपन   कमजोर इमारतों को नुकसान हो
                              सकता है।

6-6.9      तेज कंपन      अधिक नुकसान की संभवाना।

7-7.9       बहुत तीव्र       विनाशकारी।
                 कंपन

8-8.9    अत्यधिक तीव्र  प्रलयकारी और बड़े पैमाने पर 
               कंपन          जान-माल का नुकासान संभव।

9-9.9    बहुत अत्यधिक    पृथ्वी के बड़े हिस्से का नाश।
                   कंपन

10-         ऐतिहासिक       अनुमान से बाहर का विनाश।

रिक्टर स्केल पर भूकंप की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 8 रिक्टर पैमाने पर आया भूकंप 60 लाख टन विस्फोटक से निकलने वाली उर्जा उत्पन्न कर सकता है। 

1950 में असाम-तिब्बत सीमा क्षेत्र में 8.6 रिक्टर मेग्नीटयूड स्केल पर भूकंप आया जिसमें लगभग 4800 लोग चपेट में आ गए, 1960 में चिली देश में 9.5 रिक्टर मेग्नीटयूड स्केल पर भूंकप दर्ज किया गया जिसमें लगभग 6000 लोगों के मारे जाने की संभावना बताई गई है, 1964 में अलास्का में 9.2 रिक्टर मेग्नीटयूड स्केल पर भूकंप आया, 2004 में इंडोनंशिया देश में 9.1 रिक्टर मेग्नीटयूड स्केल पर भूकंप आया जिसमें 2 लाख से अधिक मारे गए, 2011 में जापान में होन्शू शहर में 9.1 रिक्टर मैग्नीटयूड स्केल पर भूकंप आया जिसमें 19-20 हजार लोग मारे गए। 

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17/01/2023, 06:14 pm

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फ्री रेडिकल्स को डिफ्यूज करने में सहायक है विटामिन्स

हम हर समय हवा से ऑक्सीजन लेते है और ऑक्सीजन के एक अणु में 8 इलेक्ट्रॉन होते है। बाहर के भयंकर प्रदूषण के कारण या किसी अन्य कारण ऑक्सीजन में से यदि एक इलेक्ट्रॉन भी निकल जाए तो वह फ्री रेडिकल बन जाता है। इस फ्री रेडिकल के कारण ही क्रोनिक बीमारियां जैसे-डायबीटिज, कैंसर आदि होती है। यह फ्री रेडिकल जब हमारे शरीर में प्रवेश करता है तो एक आंतकवादी की तरह तब तक नुकसान पहॅुंचाता है जब तक इसे एक इलेक्ट्रॉन वापस ना मिल जाए।

केवल विटामिन्स के पास एक इलेक्ट्रॉन अधिक होता है और विटामिन्स ही फ्री रेडीकल को एक इलेक्ट्रॉन वापस दे सकता है। एक इलेक्ट्रॉन मिलते ही फ्री रेडिकल डिफ्यूज हो जाता है और हमारा शरीर सुरक्षित हो जाता है। विटामिन्स हमारे शरीर में सैनिक की तरह होते है जो फ्री रेडिकल से हमारी रक्षा ही नही करते, बल्कि शरीर में होने वाली अनेक गतिविधियों के सुचारू संचालन में सहयोग करते है और शरीर में होने वाली टूट-फूट की मरम्मत भी करते रहते है। एंटी-ऑक्सीडेंट, विटामिन्स और मिनरल्स की मदद से इन फ्री-रेडिकल्स पर नियंत्रण रख सकते हैं। अतः शरीर के लिए आवश्यक 13 विटामिन्स, 11 मिन्रलस और एंटी ऑक्सीडेंट हमारे रोजाना के आहार में प्रर्याप्त मात्रा में होने चाहिए।

Padamshree Info Desk

09/01/2023, 04:17 pm

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संघ, महासंध एवं एकात्मक व्यवस्था (Fedration, Confedration and Unitary System)

संघ (Fedration) - संघीय व्यवस्था में कई राज्य मिलकर एक संघ या केन्द्र या देश बनाते है। बिट्रेन से आजादी प्राप्त करने के बाद कई राज्यों ने मिलकर अमेरिका बनाया, इसलिए वहां केन्द्र से ज्यादा शक्तियां राज्यों के पास है। 

भारत में भी फेडरल सिस्टम है, लेकिन यहां राज्यों ने मिलकर केन्द्र या संघ नहीं बनाया, बल्कि केन्द्र पहले से ही था और संधि पत्र पर हस्ताक्षर के द्वारा सभी राज्यों को जोड़ा गया। इसीलिए भारत में केन्द्र के पास राज्यों से ज्यादा शक्तियां होती है और केन्द्र एक अभिभावक की तरह राज्यों के लिए काम करता है। भारत में यदि सभी राज्य मिलकर संघ या केन्द्र बनाते तो भारत में आज लगभग 500 से भी ज्यादा राज्य होते क्योंकी यहां इतने रजवाड़े थे। संघीय व्यवस्था में केन्द्र का संविधान ही सर्वोच्च होता है जिसके अनुसार सभी को कार्य करना पड़ता है। राज्य सरकारें केन्द्र के संविधान के अनुसार ही अपने राज्य का संविधान बना सकती है। इस व्यवस्था में राज्यों की अन्तर्राष्ट्रीय पहचान नहीं होती है और संघ में सम्मिलित राज्यों को संघ छोड़ने का अधिकार नहीं होता है। किसी भी संघ के राज्यों में युद्ध होता है तो वह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का नहीं माना जाता है, बल्कि गृह युद्ध माना जाता है। 

महासंघ (Confedration) - महासंघ में हर राज्य का अलग संविधान हो सकता है तथा इन पर महासंध का आधिपत्य नहीं होता हैं। महासंघ एक अस्थाई व्यवस्था है जिसे कभी भी तोड़ा जा सकता है। कोई भी राज्य जब चाहे, महासंघ को छोड़ सकता है। यहॉं पहले लोग राज्य के नागरीक होते है, फिर देश या महासंघ के। इस व्यवस्था में राज्यों की अन्तर्राष्ट्रीय पहचान होती है। किसी भी महासंघ के राज्यों में युद्ध होता है तो वह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का माना जाता है। 

एकात्मक व्यवस्था (Unitary System) - इस तरह की व्यवस्था में सारी शक्तियां केन्द्र के पास होती है। भारत में इसे केन्द्र शासित राज्य कहा जाता है, जहॉं क्षेत्रीय सरकार हो सकती है लेकिन राज्यों की तरह उन्हें पूरी स्वतंत्रता नहीं होती है। यहां की सरकार व प्रशासक को केन्द्रीय सरकार के अधीन ही कार्य करना पड़ता है। केन्द्र व राज्य सरकार की तरह इस व्यवस्था में शक्तियों का बंटवारा नहीं होता है, सारी शक्तिओं का उपभोग केन्द्र ही करता है। ब्रिटेन, स्पेन, जापान, इटली, स्वीडन, बैल्जियम, नोर्वे, आदि देशों में इसी तरह की व्यवस्था है। इसी तरह की व्यवस्था से छोटे देशों को चलाया जा सकता है, लेकिन बड़े देशों के लिए यह व्यवस्था उपयुक्त प्रतीत नहीं होती है।    

Padamshree Info Desk

13/12/2022, 07:22 pm

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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस - मशीनी बुद्धि

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से अभिप्राय मशीनों के भीतर इंसानों जैसी कुछ आभासी बौद्धिक क्षमताएं पैदा किए जाने से है, जैसे कि पढ़ना, देखाना, सुनना, समझना, निणर्य लेना आदि। इन क्षमताओं को हासिल करने से ये मशीने हमारे बहुत से कामकाज खुद ही करने लगी हैं और अपनी अपार कम्प्युटिंग दक्षताओं की बदौलत हमें बेहतर निर्णय लेने में मदद करने लगी है। ऐसा माना जाता रहा है कि मशीन आम इंसान की तरह ‘कॉमनसेंस’ का इस्तेमाल नहीं कर सकती लेकिन ऐसा नहीं हुआ, 10 फरवरी 1996 को आई.बी.एम. सुपर कम्प्यूटर डीप ब्ल्यू ने विश्व चैंपियन शतरंज खिलाड़ी गैरी कास्पोरोव को हराकर इंसानी श्रेष्ठता के इस खास दावे को झूठा साबित कर दिया।

मानव मस्तिष्क और कम्प्यूटर में सबसे बड़ा अंतर यह है कि हमारा दिमाग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तुलना में बेहद धीमा है। आजकल के कम्प्यूटर जहां एक सेकंड में अरबों बाइनरी ऑपरेशन अंजाम दे सकते हैं, वहीं हमारा दिमाग एक सेकंड में ज्यादा से ज्यादा 100 से 1000 ऑपरेशन अंजाम दे सकता है। इसके अलावा हमारे मस्तिष्क में डेटा स्टोरेज की क्षमता कम्प्यूटर की तुलना में कुछ भी नहीं है। 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस मशीने वर्तमान में इंसान द्वारा किये जा रहे 99 प्रतिशत कार्यों को अंजाम देने में भविष्य में सक्षम हो जाएगी, सिर्फ 1 प्रतिशत मानवीय खूबियाँ और काबलियतें संभवतः वे कभी भी हासिल नहीं कर सकेंगी जिसके लिए चेतना, संवेदना और भावना की जरूरत होती है।

Padamshree Research Desk

17/11/2022, 11:16 am

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आयरन एवं शरीर में अवशोषण

आयरन विटामिन नहीं बल्कि मिनरल यानि खणिज है। हमारे शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं में लोहे की मौजूदगी हीमोग्लोबीन के रूप में होती है जो उनको स्वस्थ रखता है। हीमोग्लोबीन का प्रमुख कार्य फेंफड़ों से ऑक्सीजन लेकर शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुंचाना है। गर्भावस्था के दौरान गर्भनाल व भू्रण के तेजी से विकास के लिए आयरन अत्यंत जरूरी माना जाता है। प्रिमेंस्टुअल के दौरान महिलाओं को थकान, कुछ अलग खाने की इच्छा व चिड़चिड़ापन से गुजरना पड़ता है जिसे कम करने में आयरन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

आयरन की कमी के लक्षण : उबासी आने के बाद चक्कर आना या हर समय थकान व कमजोरी महसूस होना आयरन की कमी का लक्षण हो सकता हैं। बच्चों के जीवन के शुरूआती दौर में लोहे की कमी होने से उनका बौद्धिक विकास अवरूद्ध हो जाता है। इसके अतिरिक्त नाखूनों का नाजुक होना, बालों का झडना, मुॅंह में छाले होना, त्वचा का रंग पीला पड़ना, नींद के दौरान पैरों की अनियंत्रित गति, ऑंखों के सफेद हिस्से का नीला पड़ना आदि भी आयरन की कमी के लक्षण हो सकते है।

आयरन की कमी से होने वाले रोग : अल्सर, एनीमिया अर्थराइटिस, वजन कम होना, कमजोर इम्यूनिटी, त्वचा पर तेज खुजली आदि रोग आयरन की कमी से होते है।

आयरन की अत्यधिक मात्रा से नुकसान : शरीर में आयरन की अत्यधिक मात्रा से खाने की इच्छा कम होना, मतली, उल्टी होना, त्वचा का रंग भूरा पड़ना आदि लक्षण दिखाई पड़ सकते है। शरीर में आयरन की मात्रा अधिक होने पर आयरन व विटामिन सी युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन कम करना चाहिए।

आयरन के डायटरी स्त्रोत : पालक व हरी सब्जियां, सफेद बीन्स, टमाटर, ब्रोकली, आलू, उबले हुए छोले व मटर, ब्राउन राइस, अंडा, चिकन, काजू, किशमिश, पिस्ता व अन्य नटस आदि आयरन के प्रमुख स्त्रोत है।

आयरन का अवशोषण : विशेषज्ञों के अनुसार आयरन व कैल्श्यिम साथ लेने से आयरन का अवशोषण नहीं हो पाता है। अतः दूध के साथ आयरन नहीं लेना चाहिए और आयरन के साथ कैल्श्यिम की टेबलेट भी नहीं लेनी चाहिए। चिकित्सकों से सलाह करके एक दिन आयरन एवं दूसरे दिन कैल्श्यिम का सेवन कर सकते है। चाय के साथ भी आयरन नहीं लेना चाहिए क्योंकी चाय में उपस्थित टैनिन भी आयरन के अवशोषण को रोक सकता है।

भोजन में हमें दो प्रकार से आयरन मिलता है, हेम आयरन जो हमें मांस, मुर्गी, मछली आदि से मिलता है जो शरीर में आसानी से अवशोषित हो जाता है। दूसरा है नॉन हेम आयरन जो सब्जी, अनाज, दलहन आदि से मिलता है जो आसानी से अवशोषित नहीं होता है, अतः हरी सब्जियां व सिट्रस फलों का सेवन करना चाहिए। 

आयरन की मात्रा की सिफारीश-

Age                                        Dosage (mg)

                                                M             F

0 - 6 months                         0.27        0.27

7–12 months                        11           11

1–3 years                              7              7

4–8 years                             10           10

9–13 years                            8              8

14–18 years                         11           15

19-50 years                           8            18

19-50 (Pregnancy)                              27

19-50 ((Lactation)                                 9

51+ years                              8              8

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16/11/2022, 01:25 pm

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फोलिक एसिड

फोलिक एसिड को विटामिन बी-9 के नाम से भी जाना जाता है। जहॉं आयरन लाल रक्त कोशिकाओं में हिमोग्लोबीन के रूप में रहता है वहॉं फोलिक एसिड लाल रक्त वाहिकाओं को बनाने का कार्य करता है। अतः आयरन व फोलिक एसिड का कॉम्बीनेशन अच्छे स्वास्थय के लिए महत्वपूर्ण है। यह हृदय स्वासथ्य को बनाए रखने, बालों को सुंदर बनाने में, कैंसर के खतरे को कम करने, नवजात में न्यूरल टयूब दोष के खतरे को कम करने में, गर्भस्थ शिशु के वृद्धि व विकास में, पुरूषों में इनफर्टिलिटी को ठीक करने में भी मदद करता है।

फोलिक एसिड, शरीर में हेमोस्सिटिन के स्तर में कमी लाता है जिसका बढ़ा हुआ स्तर धमनियों को नुकसान पहुंचाता है और दिल के रोगो का कारण बनता है। विटामिन बी 9 डी.एन.ए. म्यूटेशन से बचने में भी सहायक हो सकता है जो कैंसर कारक माना जाता है। महिलाओं में एक ऐसी अवस्था जिसे PCOS- Polcystic ovary syndrome कहते है, जिसमें अनियमित पीरियडस, मोटापा, कील-मुंहासें का खतरा रहता है, ऐसे में विटामिन डी, विटामिन सी एवं फोलिक एसिड की भरपूर मात्रा लेने की सलाह दी जाती है।

फोलिक एसिड की कमी के लक्षण : एल्कोहल का सेवन, हर समय बाहर के खाद्य पदार्थ खाना, हेमोलिटिक एनीमिया आदि से फोलिक एसिड की कमी हो सकती है। बालों का सफेद या ग्रे होना, पेप्टिक अल्सर, लूज मोशन, चिडचिडापन, वजन में कमी, प्लेटलेटस में कमी आदि फोलिक एसिड की कमी के लक्षण हो सकते है।

फोलिक एसिड की कमी से रोग : शरीर में इसकी कमी से मेगालोब्लास्टिक एनीमिया हो सकता है जिसमें लाल रक्त कोशिकाएं जरूरत से ज्यादा बड़ी हो जाती है। 

फोलिक एसिड के डायटरी स्त्रोत : अंडा, एवोकाडो, बादाम, सतावरी, ब्रोकली, मटर, राजमा, केला, टमाटर, सोयाबीन, अंकुरित अनाज, शलजम, सी फूड, मूॅंगफली, सूरजमुखी के बीज, सिट्रस फल आदि फोलिक एसिड अच्छे स्त्रोत है। भोजन पकाते समय लगभग 50 प्रतिशत फोलिक एसिड नष्ट हो जाता है।

फोलिक एसिड मात्रा की सिफारीश (चिकित्सक से सलाह करके ही सेवन करें)

Age                                         Dosage

Birth to 6 months         65 mcg DFE (M & F)

7–12 months               80 mcg DFE (M & F)

1–3 years                    150 mcg DFE (M & F)

4–8 years                    200 mcg DFE (M & F)

9–13 years                  300 mcg DFE (M & F)

14–18 years                400 mcg DFE (M & F)

19+ years                    400 mcg DFE (M & F)

19+ years (Pregnancy) 600 mcg DFE

19+ years (Lactation)    500 mcg DFE

यदि कोई भी गर्भवती महिला लगातार आयरन, फोलिक एसिड व प्रोटिन युक्त खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल करती है तो 90 प्रतिशत चांसेज है कि वह सीजेरियन डिलीवरी से बच सकती है।

R K Jain

13/11/2022, 06:40 pm

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गऊ संस्कृति से संभव है- आत्म निर्भर भारत एवं विष मुक्त विश्व की स्थापना

भारतीय गऊवंश की पहचान है कि गाय, बैल के कंधे शिवलिंग के आकार की भांति उठे हुए देखे जा सकते है जो सूर्य से आने वाली किरणों को अवशोषित कर तीनों गव्यों (गोबर, गोमूत्र व दूध) में अपना प्रभाव डालते है। देशी गाय के पीठ के अंदर सूर्य केतु नाड़ी, सींगों का विशेष आकर्षण, गले के ठीक नीचले हिस्से में झालर व पेट की आँत 180 फीट लंबी होने के वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर हमारे पूर्वजों ने बताया है कि जहॉं देशी गाय होती है वहॉं 100 वर्ग फीट के क्षेत्र तक सकारात्मक ऊर्जा का प्रेषण करती रहती है।

आज विश्व समुदाय ने भी मान लिया है कि गाय के गोमूत्र में अनेकों औषधीय गुण हैं। भारतीय गाय के गोमूत्र को अन्तरराष्ट्रीय पाँच पेटेंट प्राप्त हुए। इनमें से तीन पेटेंट मानव स्वास्थ्य के लिए और दो पेटेंट कृषि कार्य हेतु प्राप्त हुए हैं। जूनागढ़ विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अपने शोधों में पाया है कि गोमूत्र में स्वर्ण (सोना) तत्व प्राप्त किये जा सकते हैं। यह शोध जैसे ही प्रकाशित हुआ पूरे विश्व में हलचल मच गई। इसलिए गाय को साधारण प्राणी मानना मूर्खता ही होगी या अज्ञानता।

परमाणु वैज्ञानिक डॉ. मेन्नव्य मूर्ति ने गाय के आभा मंडल पर शोध किया और पाया कि गाय के शरीर से सकारात्मक ऊर्जा निकलती है और उसको स्पर्श करने वाले की नकारात्मक ऊर्जा को खींचकर नष्ट कर देती है। यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने देशी गोमाता को विश्व माता की उपाधि दी है। गऊ संस्कृति अपनाकर ही हम सम्पूर्ण भारत को रोग मुक्त, कर्ज मुक्त, प्रदूषण मुक्त, अपराध मुक्त, कुपोषण मुक्त, रोजगार युक्त कर सकते है और आत्म निर्भर भारत के साथ विष मुक्त विश्व की स्थापना की जा सकती है।  

Padamshree Info Desk

14/10/2022, 01:01 pm

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रोबोटिक इंजीनियरींग

यह क्षेत्र इलेक्ट्रॉनिक्स, कम्प्यूटर साइंस, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मेक्ट्रोनिक्स, नैनो टेक्नॉलॉजी और बायो इंजीनियरिंग के साथ मिला हुआ बहुत ही रोचक इंजीनियरिंग क्षेत्र है। सॉफ्टवेयर और उपकरणों को इंसानों के सोचने के तरीके से जोड़ना, कंप्यूटर द्वारा कार चलाना आदि कार्य रोबोटिक इंजीनियरिंग में आते है। रोबोटिक्स के क्षेत्र में केरियर बनाने हेतु 12 वीं कक्षा में भौतिक एवं गणित विषय होना आवश्यक है।

रोबोटिक्स को सामान्यतः चार वर्गों में बाँटा जा सकता है-औद्योगिक रोबोट, पर्सनल रोबोट, मेडिकल या सर्जिकल रोबोट तथा ऑटोनोमस रोबोट। इनमें सबसे बड़ी श्रेणी औद्योगिक रोबोटों की होती है, जो साधारण प्रोग्राम योग्य रोबोट होते हैं, जिनका इस्तेमाल मेन्यूफेक्चरिंग संयंत्रों में बहुतायात में होता है। उद्योगों में रोबोट्स का उपयोग निर्माण प्रक्रिया को तेज करने के लिए किया जाता है। औद्योगिक रोबोट्स द्वारा वेल्डिंग, पेंटिंग तथा मशीनों में कलपुर्जे लगाने का काम किया जाता है। रोबोट्स असेम्बलिंग, कटिंग तथा ऑटोमोबाइल्स के विभिन्न पार्ट्स को लगाने का काम भी बड़ी कुशलता एवं दक्षता से करते हैं। एटॉमिक, थर्मल तथा न्यूक्लियर पॉवर स्टेशनों पर खतरनाक एवं जोखिम वाले तत्वों की साज-संभाल तथा मेंटेनेंस में भी इंसानों के बजाए रोबोटों का प्रयोग बढ़ा है। अब मिलिट्री ऑपरेशंस में भी रोबोट दिखाई देने लगे हैं।

Padamshree Research Desk

26/09/2022, 11:36 am

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ज्वार-भाटा (Tide Ebb)

महासागरों और समुद्रों में ज्वार-भाटा के लिए उत्तरदायी तीन कारक है 1. सूर्य का गुरुत्वीय बल 2. चन्द्रमा का गुरुत्वीय बल एवं 3. पृथ्वी का अपकेन्द्रीय बल। पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति की क्रियाशीलता ही ज्वार-भाटा की उत्पत्ति का प्रमुख कारण हैं। हम सब जानते है कि चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता है और चन्द्रमा जब भी पृथ्वी के निकट आता है तो गुरूत्वाकर्षण ंबल के कारण समुद्र में ज्वार-भाटे आते है। जब चन्द्रमा का गुरूत्वाकर्षण ंबल पृथ्वी के महासागरीय जल को अपनी ओर खींचता है तो पानी उपर उठकर आगे बढ़ने लगता है जिसे ज्वार (Tide) कहते है। जब यही सागरीय जल नीचे गिरकर पीछे (सागर की ओर) लौटने लगता है तो उसे भाटा (Tide) कहते है।

अमावस्या और पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा, सूर्य एवं पृथ्वी एक सीध में होते हैं तो उच्च ज्वार उत्पन्न होता है।  दोनों पक्षों की सप्तमी या अष्टमी को सूर्य और चन्द्रमा पृथ्वी के केंद्र पर समकोण बनाते हैं, इस स्थिति में सूर्य और चन्द्रमा के आकर्षण बल एक-दुसरे को संतुलित  करने के प्रयास में प्रभावहीन हो जाते हैं तो निम्न ज्वार उत्पन्न होता है।

उच्च या निम्न ज्वार-भाटा प्रतिदिन दो बार आता है जिसके कारण पानी में तीव्रता आती है। अगर हम इस उर्जा को संचित कर ले तो यह अक्षय उर्जा का एक अच्छा स्रोत हो सकता है और तट के किनारे रहने वाले समुदायों को नवीकरणीय ऊर्जा प्रदान की जा सकती है। समुद्र में उपयुक्त टर्बाइन लगाकर ज्वार-भाटा की उर्जा को विद्युत उर्जा में बदला जा सकता है। दुनिया का पहला ज्वारीय बिजली संयंत्र (क्षमता- 240,000 किलोवाट) फ्रांस में रेंस नदी के मुंह पर (13.5 मीटर के ज्वारीय अंतर) 1966 में बनाया गया था।

Garvit Jain

26/08/2022, 01:15 pm

Student - Engineering,

Maharastra, India

garvitjain.gj19@gmail.com

Technical Associate

साइबर सेक्यूरिटी का भरोसेमंद स्तंभ है - VPN - Virtual Private Network Technology

कल्पना करें कि आप कोई कैफे या रेस्टोरेंट में बैठे है और आप पब्लिक या फ्री नेटवर्क से जुड़कर इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहें है। इस तरह के नेटवर्क सुरक्षित नहीं समझे जाते है क्योंकी यहॉं आप यह भूल रहें है कि आप जो कुछ भी कर रहें है वह नेटवर्क पर आसानी से जाना जा सकता है। इस नेटवर्क से और भी कई लोग जुड़े हुए होते है और इनमें से यदि कोई हेकर हुआ तो आपके द्वारा किसी भी प्रकार का पेमेंट करने पर आपके बैंक डिटेल, फोन न. आदि आसानी से जान सकता है। इतना ही नहीं हमारे घरों में उपयोग होने वाले नेटवर्क पर की जाने वाली सभी गतिविधियों की जानकारी नेटवर्क एजेंसिंयों के पास पहुंचती है।

आम लोगों को पता नहीं है कि इस तरह की समस्याओं से बचने के लिए एक टेक्नोलोजी विकसित की गई है, जिसका नाम है- VPN टेक्नोलोजी। सबसे पहले आपको अपने सिस्टम में VPN इंस्टॉल करना है और VPN की सहायता से इंटरनेट से कनेक्ट होना है। इससे इंटरनेट पर कार्य करते समय प्रेषित होने वाली सभी सूचनाओं को VPN एनक्रिप्ट कर देगा। यदि कोई हेकर आपके इंटरनेट पर आपकी सूचनाओं को पढ़ना चाहे तो पढ़ नहीं पाएगा। कुछ वेबसाइट तो तभी खुलती है जब आप VPN सिस्टम से कनेक्ट होगें।     

साल 1996 में माइक्रोसॉफ्ट कम्पनी में कार्यरत एक कर्मचारी के दिमाग में यह आइडिया आया था और उसने इस पर कार्य करना शुरू किया। साल 2000 तक कई कंपनियों ने VPN सेवा शुरू भी कर दी। कुछ कंपनियां यह सुविधा मुफ्त में उपलब्ध करवा रही है तो कुछ कंपनियां इस सुविधा के लिए कुछ चार्ज भी कर रही है।  

Padamshree Info Desk

08/08/2022, 12:20 pm

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भारत का राष्ट्रीय जलमार्ग (National Waterways)

वर्तमान में भारत का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार वॉल्यूम के संदर्भ में 90 प्रतिशत और मूल्य के संदर्भ में 77 प्रतिशत समुद्र के माध्यम से किया जाता है। किसी भी देश के व्यापार में समुदी मार्ग का महत्वपूर्ण योगदान होता है। राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम 2016 के तहत 111 जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया है, जिनमें से कुछ प्रमुख जलमार्ग निन्न प्रकार है -

1. NW 1- यह जलमार्ग हल्दिया से प्रयागराज तक है जो गंगा, भागीरथी व हुगली नदी से गुजरता है। इस जलमार्ग की लंबाई 1620 कि.मी. है तथा इसमें प.बंगाल, झारखंड, बिहार व उतरप्रदेश राज्य के क्षेत्र आते है।

2. NW 2- यह जलमार्ग धूबड़ी से सदिया तक है जो ब्रहमपुत्र नदी से गुजरता है। इस जलमार्ग की लंबाई 891 कि.मी. है तथा इसमें असम राज्य के क्षेत्र आते है।

3. NW 3- यह जलमार्ग वेस्टकॉस्ट केनाल (कोटापुरम, कोलाम, चंपाकरा, उघोगमंडल केनाल) से गुजरता है। इस जलमार्ग की लंबाई 205 कि.मी. है तथा इसमें केरल राज्य के क्षेत्र आते है।

4. NW 4- इस जलमार्ग का फैलाव मुक्तियाला से विजयवाड़ा तक है जो कृष्णा नदी से गुजरता है। इस जलमार्ग की लंबाई 82 कि.मी. है तथा इसमें आंध्रप्रदेश राज्य के क्षेत्र आते है।

5. NW 10- यह जलमार्ग अंबा नदी से गुजरता है। इस जलमार्ग की लंबाई 45 कि.मी. है तथा इसमें महाराष्ट्र राज्य के क्षेत्र आते है।

6. NW 83- यह जलमार्ग राजपुरी खाड़ी से गुजरता है। इस जलमार्ग की लंबाई 31 कि.मी. है तथा इसमें महाराष्ट्र राज्य के क्षेत्र आते है।

7. NW 85- यह जलमार्ग रीवादंदा खाड़ी - कुंडलिका नदी से गुजरता है। इस जलमार्ग की लंबाई 31 कि.मी. है तथा इसमें महाराष्ट्र राज्य के क्षेत्र आते है।

8. NW 91- यह जलमार्ग शास्त्री नदी - जयगढ़ खाड़ी तक गुजरता है। इस जलमार्ग की लंबाई 52 कि.मी. है तथा इसमें महाराष्ट्र राज्य के क्षेत्र आते है।

9. NW 68- यह जलमार्ग उसगांव ब्रिज - अरबनिया सागर तक गुजरता है। इस जलमार्ग की लंबाई 41 कि.मी. है तथा इसमें गोवा राज्य के क्षेत्र आते है।

10. NW 111- यह जलमार्ग जुआरी-सनवोरडेम ब्रिज से मरमुगाव पोर्ट तक गुजरता है। इस जलमार्ग की लंबाई 50 कि.मी. है तथा इसमें गोवा राज्य के क्षेत्र आते है।

11. NW 73- यह जलमार्ग नर्मदा नदी से गुजरता है। इस जलमार्ग की लंबाई 226 कि.मी. है तथा इसमें गुजरात व महाराष्ट्र राज्य के क्षेत्र आते है।

12. NW 100- यह जलमार्ग तापी नदी से गुजरता है। इस जलमार्ग की लंबाई 436 कि.मी. है तथा इसमें गुजरात व महाराष्ट्र राज्य के क्षेत्र आते है।

13. NW 97 (सुंंदरबन जलमार्ग)- यह जलमार्ग नमखाना - अथराबंकीखल (इंडो बंगलादेश प्रोटाकोल रूट) से गुजरता है। इस जलमार्ग की लंबाई 172 कि.मी. है तथा इसमें प. बंगाल राज्य के क्षेत्र आते है। 

R K Jain

12/05/2022, 12:29 pm

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वर्टिकल फारेस्ट

पृथ्वी पर जीवन के असितत्व के लिए जंगल हमेशा महत्वपूर्ण रहे है। पर्यावरणीय संतुलन के लिए वन अति आवश्यक है लेकिन जनसंख्या में लगातार वृद्धि और विकास की अंधी दौड़ के कारण मानव की संसाधन दोहन की प्रवृति भी बढने लगी। अन्य संसाधनों के साथ-साथ हमारी वन संपदा भी खतरे में आ गई। अनुमानतः आज 18 प्रतिशत से कम भू-भाग पर ही वन संपदा शेष रह गई है जबकि एक शताब्दी पूर्व वन का भू-भाग 85 प्रतिशत तक हुआ करता था। किसी भी राष्ट्र के भू-भाग के कम से कम 33 प्रतिशत पर वन क्षेत्र आवश्यक माना जाता है।

आज मनुष्य अपने द्वारा किये गये अनर्थ से अनभिज्ञ नहीं है और पर्यावरणीय संतुलन फिर से स्थापित करने के लिए हर संभव प्रयास भी कर रहा है और उसमें से एक है-वर्टिकल फॉरेस्ट। इसके अन्तर्गत ऐसी बहुमंजली इमारतों का निर्माण किया जाता है जिसमें आवासीय कमरों के साथ-साथ बालकनियों में भी पेड़-पौधे लगाए जाते है जिससे शहरों की वायु शुद्ध रहती है। साल 2014 में स्टेफानो बोएरी द्वारा अधिकल्पित दुनिया का पहला वर्टिकल फारेस्ट इटली के मिलान शहर में बनकर तैयार हो चुका है। टावरों की विभिन्न ऊॅंचाइयों पर कौन सी वनस्पतिक प्रजातियॉं टिक पाएंगी, हल्की रहेगी और हवा के तेज वेग को सहन कर पाएगी, इसके लिए इंजीनियरों व वनस्पतिक वैज्ञानिकों ने एक साथ लबें समय तक काम किया।

वर्टिकल फारेस्ट में लगे वृक्ष धुंध को कम करने और कार्बन डाईऑक्साइड को ऑक्सीजन में बदल सकते है। इसके कारण सर्दी और गर्मी के मौसम में इमारत के तापमान को नियत्रिंत किया जा सकता है। नीचे सड़को पर वाहनों के कारण उड़ने वाले धूल-कणों और शोर-प्रदूषण को फिल्टर किया जा सकता है। 

डॉ शुभ्रता मिश्रा, वनस्पति वैज्ञानिक द्वारा एक पत्रिका में लेख का सारांश....
 

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05/05/2022, 10:31 am

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पालियोग्राफी (Paleography) - एक उभरता केरियर

भारत का सांस्कृतिक इतिहास बेहद समृद्ध और हजारों वर्ष पुराना रहा है। पुरालेख-विद्या या पालियोग्राफी प्राचीन साहित्य के स्मारकों की खोज करने वाला विज्ञान है तथा इतिहास के स्थायी तथा सर्वाधिक प्रमाणिक दस्तावेज हैं। पालियोग्राफी ऐतिहासिक घटनाओं की तिथी, सम्राटों के नाम, उनकी पदवियों, उनकी सत्ता के काल, साम्राज्य की सीमाओं से लेकर वंशावली तक के बारे में सटीक व सही सूचना के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। पालियोग्राफी के अध्ययन में इतिहास, भूगोल तथा समाज शास्त्र सार्थक विषय बनकर मानवीय संबंधों के साथ वैज्ञानिक जानकारी देते है। इनकी मदद से हम इतिहास के अनजाने तथ्यों से परिचित हो सकते हैं तथा पहले से परिचित इतिहास की घटनाओं पर और करीब से राशनी भी डाल सकते हैं।

यह पाठ्यक्रम प्राचीन भारत में उपयोग की जाने वाली विभिन्न लिपियों और भारतीय संदर्भ में सिक्कों की भूमिका का परिचय देता है। छात्रों को तीन प्राचीन लिपियाँ ब्राह्मी, खरोष्ठी और फारसी सिखाई जाती है। यह पाठ्यक्रम छात्रों को ऐतिहासिक विज्ञान और स्थिर कलाओं के बीच तालमेल के बारे में ज्ञान देने के लिए बनाया गया है इस कोर्स से भारत में मौजूद ऐतिहासिक परंपरा से ऐतिहासिक समुद्री परंपरा को समझने में मदद मिलती है। पुरालेखों को खोजने व समझने की विधि प्राचीन लेखों को पढ़ना और उनके आधार पर इतिहास का पुनर्गठन करना पुरालेख विद्या कहलाता है। 

पारंपरिक तरीके से सामग्री एकत्रित करने के अलावा पुरातत्ववेत्ता नई तकनीक का भी इस्तेमाल करता है, जैसे जीन-अध्ययन, कार्बन डेटिंग, थर्मोग्राफी, सैटेलाइट इमेजिंग, मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एम.आर.आई) आदि। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के निर्णय के बाद पुरातत्व सर्वेक्षण की मांग अधिक हो गयी है क्यांकी पुरातत्व सर्वेक्षण वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है जिसके आधार पर अदालत का फैसला सही साबित होता।  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में इस कार्य के लिये एपिग्राफिस्टस की पोस्ट होती है।   

Padamshree Research Desk

10/03/2022, 12:53 pm

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दूध की जॉंच

    दूध को लंबे समय तक खराब होने से बचाने के लिये कई तरह के रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन ये रसायन स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होते है :

1. हाइड्रोजन पेराऑक्साइड की जॉंच : वेनेडियन पैन्टाऑक्साइड के घोल की 10-20 बूंदें दस मि.ली. दूध में मिलाकर मिक्स करने पर यदि गुलाबी रंग आ जाना हाइड्रोजन पेराऑक्साइड की उपस्थिती दर्शाता है।
2. फार्मलीन की जॉंच : एक परखनली में 10 मि.ली. दूध लेकर परखनली की दीवारों के सहारे उसमें 5 मि.ली. सान्द्र सल्फयूरिक एसिड डालने पर बैंगनी रंग बन जाना फार्मलीन की उपस्थिती का संकेत है।

लेक्टोमीटर दूध के शुद्ध घनत्व को दर्शाता है, यदि दूध में कुछ मिलाया जाता है तो यह घनत्व ज्यादा हो जाता है।  शुद्ध दूध की लेक्टोमीटर रीडिंग 32 होती है लेकिन इसमें मिलावट करने पर यह कम या अधिक हो जाती है। लेक्टोमीटर की रीडिंग को नॉरमल करने के लिए मिलाये जाने वाले रसायनों की जॉंच निम्न प्रकार की जाती है

1. शकर की मिलावट की जॉंच : एक परखनली में 10 मि.ली. दूध लेकर इसमें 5 मि.ली. हाइड्रोक्लोरिक एसिड और 0.1 ग्राम रिसोर्सिनाल मिलाया जाता है। फिर इसे जोर से मिक्स करके उबलते हुये पानी में 5 मिनट तक रखने पर लाल रंग आने पर दूध में शकर की उपस्थिती का पता चलता है। 

2. स्टार्च के मिलावट की जॉच : 3 मि.ली. दूध एक परखनली में लेकर उबाला जाता है। फिर इसे ठंडा करके इसमें दो से तीन बूंद आयोडीन विलयन डाला जाता है। नीला रंग आने पर स्टार्च की उपस्थिती दर्शाता है। 

3. यूरिया की मिलावट की जॉंच : प्राकृतिक तौर पर दूध में यूरिया की कुछ मात्रा होती ही है। 100 मि.ली. दूध में 70 मि.ग्रा. से अधिक यूरिया होने पर यह माना जाता है कि इसमें बाहर से यूरिया मिक्स कीया गया है। इसकी जांच पेरा डाई मिथाइल एमिनो बैन्जेल्डिहाइड से की जाती है। इसके लिये 1.6 ग्रा. डी.एम.ए.बी. को 100 मि.ली. मिथाइल एल्कोहल में घोलकर उसमें 10 मि.ली. सान्द्र हाइड्रोक्लोरिक एसिड मिलाकर विलयन तैयार किया जाता है। टेस्ट टयूब में 5 मि.ली. दूध लेकर उसमें 5 मि.ली. यह विलयन मिलाने पर गहरे पीले रंग की उपस्थिती यूरिया की मिलावट बताती है। 

4. नमक की मिलावट की जॉंच : एक परखनली में 5 मि.ली. दूध लेकर उसमें 1 मि.ली. सिल्वर नाइट्रेट विलयन मिलाकर 2-3 बूंद पोटेशियम क्रोमेट का विलयन मिलाया जाता है। मिक्स करने पर पीले रंग की उपस्थिती नमक की मिलावट का संकेत है।       
 

राइट टू रीसर्च फांउडेशन, पुणे ने जाने-अनजाने में दूध में हुये रसायनों के मिश्रण का पता लगाने के लिये एक बहुत ही सरल विधि इजाद की है जिसका नाम है-पेपर स्ट्रीप टेस्ट। यह मात्र 50 रूपये की मशीन है जिसमें 4 अलग-अलग रंग के पेपर स्ट्रीप होते है। दूध में यूरिया की जांच करनी हो तो पीले रंग की स्ट्रीप का इस्तेमाल किया जाता है, यदि दूध में यूरिया ज्यादा है तो इस स्ट्रीप का रंग गुलाबनुमा लाल हो जाएगा। दूध में सॉल्ट की मात्रा अधिक हो तो भूरे रंग की स्ट्रीप पीली हो जाएगी। दूध में ग्लोकोज की मात्रा अधिक हो तो रंगहीन स्ट्रीप भूरे रंग में बदल जाएगी। दूध में हाइड्रोजन पेरॉक्साइड की मात्रा अधिक हो तो परपल रंग की स्ट्रीप गहरे नीले रंग में बदल जाएगी। 

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22/01/2022, 11:20 am

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वाल्डलाइफ और बायोडायवर्सिटी का केन्द्र है भारत

शेर (Lion) : भारत में शेर केवल गिर नेशनल पार्क में रहते है। गुजरात के जुनागढ़ जिले के गिर नेशनल पार्क में 674 एशियाटिक शेर रहते है जो विश्व की शेरों की आबादी का लगभग 70 पातिशत है। एशियन शेर अफ्रिकन शेर से थोड़े छोटे होते है। गिर नेशनल पार्क सामान्यतः 16 जून से 15 अक्टूबर तक बंद रहता है। यहां घूमने के लिए दिसंबर से मार्च तक का समय उचित है। 

बाघ (Tiger) : 2018-19 की जगनगणना के अनुसार भारत के 20 राज्यों के 50 बाघ आरक्षित क्षेत्रों में लगभग 2997 बाघ रहते है जो कि पूरे विश्व के बाघों की जनसंख्या का 75 प्रतिशत है। टाइगर रात में मनुष्य से 6 गुना बेहतर देख सकता है। रॉयल बंगाल टाइगर भारत के उतर-पूर्वी क्षेत्र में पाया जाता है। नागार्जुनसागर श्रीशैलम भारत का सबसे बड़ा बाघ अभयारण्य है जो आंध्र प्रदेश में स्थित है। हर साल 29 जुलाई को अंतराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है।

तेंदुआ (Leopard) : शेर और बाघ की तुलना में तेंदुआ छोटा होता है। 2018 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में तेंदुओं की संख्या लगभग 12,852 है जिनमें से सबसे अधिक 3421 तेंदुए मध्यप्रदेश में पाये गये। पूरे विश्व पाये जाने वाले तेंदुओं की 60 प्रतिशत जनसंख्या भारत में रहती है। मुम्बई के संजय गांधी नेशनल पार्क के 103 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में 47 व्यसक लियोपर्ड चिन्हित किये गये है। लियोपर्ड की यह डेंटसिटी भारत तो क्या दुनिया के किसी भी जंगल में नहीं मिलेगी क्योंकी एक लियोपर्ड का टेरिटोरियल 6 वर्ग कि.मी. माना जाता है और इस हिसाब से 103 वर्ग कि.मी. के इस क्षेत्र में मात्र 17 लियोपर्ड होने चाहिए।

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08/01/2022, 09:33 pm

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हाइड्रोजन ईंधन से बिजली की समस्या के निवारण की संभावना

यदि भविष्य में परमाणु भट्टियों (Automic Reactors or Fission Reactor) की तरह संलयन भट्टियां (Fusion Reactor) बनायी जा सकें तो इनसे बिजली बनाना काफी सस्ता होगा। यूरेनियम (जो परमाणु भट्टियों मे प्रयुक्त होता है) काफी महंगा पड़ता है। इसकी तुलना में हाइड्रोजन ईंधन (जो संलयन भट्टियों में प्रयुक्त होता है) काफी सस्ता और सर्वसुलभ है।

परमाणु भटिट्यों में नाभिकीय प्रक्रिया के फलस्वरूप रेडियोधर्मी कचरा उत्पन्न होता है, जिसका निपटान करना अपने आप में समस्या है। संलयन प्रक्रिया में ऐसा कोई कचरा उत्पन्न नहीं होता, अतः ये भट्टियां सर्वथा प्रदूषण मुक्त होंगी। 

संलयन भट्टियों के निर्माण की दिशा में यद्यपि बहुत सी प्रयोगशालाओं में कार्य हो रहे हैं लेकिन अभी तक इस दिशा में पर्याप्त सफलता नहीं मिली है। इस क्रिया को आरंभ करने के लिए करोड़ों डिग्री ताप की जरूरत होगी, जिसे उत्पन्न करना आसान नहीं है। यदि ऐसा करना सम्भव भी हो तो इसे कौन सा पात्र बर्दाश्त कर पाएगा ? समस्या यह है कि किस धातु के पात्र में यह प्रक्रिया सम्पन्न होगी ? हाल में ही हुए अनुसंधानों में चुबंकीय क्षेत्रों को बर्तन की दीवारों के रूप में इस्तेमाल करने की युक्ति सुझाई गई है। इतना उच्च तापमान प्राप्त करने की तकनीक भी खोज ली गई है लेकिन यह ताप अल्प अवधि के लिए ही प्राप्त किया जा सकता है। इसके दीर्घन की आवश्यकता है।  

Padamshree Info Desk

23/12/2021, 12:12 pm

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टेली मेडिसिन

भारत की आजादी के इतने साल बाद भी भारत के दूर-दराज गांवों में स्वास्थय उपचार आज भी एक समस्या बनी हुई है। टेली मेडिसन इस समस्या का हल प्रदान कर सकता है। वर्ष 2015 में केंद्र सरकार ने दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में टेलीमेडिसिन के ज़रिये विशेषज्ञ चिकित्सकों की सेवाएँ उपलब्ध कराने के उद्देश्य से अस्पतालों का नेटवर्क संचालित करने वाली कंपनी अपोलो अस्पताल के साथ मिलकर 60 हजार कॉमन सर्विस सेंटरों (सी.एस.सी.) में टेलीमेडिसिन सेवा ‘सेहत’ के नाम से शुरू की है।

टेलीमेडिसिन स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में एक उभरती हुई तकनीक है, जहॉं चिकित्सा विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी संयुक्त रूप से कार्य करते है। इसमे दूर शहर में बैठा डॉक्टर विडियों लिंक के जरिए गांव के मरीजों को देख सकत है, बात कर सकता है और उसे दवा लिख सकता है। इस प्रक्रिया में बहुत कम समय लगता है और मरीज के लिए सस्ती भी पड़ती है। इसमें प्रमुख भूमिका उस स्वास्थ्य सहायक की ही होती है जो उसी गांव क्षेत्र का होता है। उसे प्रशिक्षण और उपकरण दिये जाते है। उनके जरिए वह मरीज की जांच कर डॉक्टर को डाटा भेजता है और मरीज से उसकी बात करवाता है।

Garvit Jain

18/11/2021, 08:42 pm

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क्या सूर्य की किरणों से हमें विटामिन डी मिलता है ?

आज के समय में सामान्यतः हर किसी में न्यूट्रीशन विटामिन डी की कमी देखने को मिलती है। यह न्यूट्रीशन हमारे शरीर के लिए बहुत आवश्यक है क्योंकी हडिड्यों में कैल्शियम के एब्जॉरप्शन में विटामिन डी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बाजार में विटामिन डी की अनेक गोलियां मिल जाती है लेकिन प्रतिदिन 20-30 मिनट सूर्य की धूप लेना विटामिन डी का सर्वश्रेष्ठ स्त्रोत माना जाता है।

क्या कभी आपने सोचा है कि हमारे शरीर को सूर्य की धूप से सीधे विटामिन डी मिल जाता है ? वास्तव में सूर्य की किरणों में कोई विटामिन डी नहीं होता है। हमारे शरीर की ऊपरी त्वचा में (epidermis) में एक विशेष कोलेस्ट्रोल पाया जाता है जिसे 7-डीहाइड्रोकोलेस्ट्रोल कहते है। सूर्य से तीन तरह की अल्ट्रावायलेट रेज UV-A, UV-B और UV-C. हमारी पृथ्वी पर आती है जिसमें UV-B हमारे शरीर में उपस्थित 7-डीहाइड्रोकोलेस्ट्रोल की सहायता से विटामिन डी का निर्माण करती है।

यदि हमारे शरीर में 7 डिहाइड्रोकोलेस्ट्रोल की कमी है तो सूर्य की कितनी भी धूप ले लें, हमारे शरीर में विटामिन डी नहीं बन पाएगा। व्हीट जर्म ऑयल एवं लिनसीड (अलसी) ऑयल 7 डिहाइड्रोकोलेस्ट्रोल के अच्छे स्त्रोत है। ऊन वाले स्तनधारी प्राणिओं से लैनोलिन नाम का मोमी पदार्थ स्त्रवित होता है जिसमें 7 डिहाइड्रोकोलेस्ट्रोल पाया जाता है।   

प्रतिदिन अधिकतम 20-30 मिनट सूर्य की धूप लेने का कार्य सूबह के समय में ही करना चाहिए क्योंकी इस समय अल्ट्रावायलेट की सघनता (density) कम होती है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि UV-A की अधिक सघनता एजिंग प्रोसेस बढ़ाती है, UV-B की अधिक सघनता स्कीन को जलाती है और UV-C की अधिक सघनता कैंसर कारक होती है। वैसे अल्ट्रावायलेट UV-C बहुत कम देशों में पहुॅंच पाती है।

R K Jain

17/11/2021, 07:47 pm

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जानिये आज का सोशल मिडिया

फेसबुक (Facebook) : यह एक निःशुल्क सामाजिक नेटवर्किंग सेवा है जिसकी शुरूआत साल 2004 में हार्वर्ड युनिवर्सिटी के छात्र मार्क जुकेरबर्ग ने की थी। दुनिया की लगभग 35 प्रतिशत से अधिक की आबादी फसेबुक पर है। दुनियाभर में फसेबुक यूजर्स की संख्या 2.85 बिलियन (2.85 अरब) और भारत में 340 मिलियन (34 करोड़) है।

इंस्टाग्राम (Instagram) : इस सोशल मिडिया पर युवाओं की भरमार होती है। इंस्टाग्राम की स्थापना साल 2010 में केविन सिस्ट्राम और माइक क्रेगर द्वारा की गई थी लेकिन साल 2012 में फेसबुक ने इसे खरीद लीया। इंस्टाग्राम में 24 धंटे बाद पोस्ट, फोटो या विडियो अपनेआप डिलीट होने का भी ऑप्शन है। विश्व में इंस्टाग्राम के यूर्जस की सख्या 1.38 बिलियन (1.38 अरब) और भारत में 225 मिलियन (22.5 करोड़) है। 

वाट्सऐप (Whatsapp) : शायद ही ऐसा एन्ड्राएड या सर्माट फोन हो जिसमें वाट्सऐप न हो। साल 2009 में जेन कूम के दिमाग में यह ऐप बनाने का आइडिया आया और उसने अपने साथियों के साथ इस ऐप को डव्लप किया। साल 2014 में फसेबुक ने इसे खरीद लिया। पूरी दुनिया में वाट्सऐप यूजर्स की संख्या 2 बिलियन (2 अरब) है और भारत में 390 मिलियन (39 करोड़) है। 

यूटयूब (Youtube) : यूटयूब न केवल दुनिया का सबसे बड़ा विडियो देखने का  प्लेटफार्म है बल्कि यह दुनिया का सबसे बड़ा सर्च इंजन भी है। यह गूगल की सर्विस है। दुनिया भर में प्रति मिनिट 500 धंटें के विडियो यूटयूब पर अपलोड किये जाते है और विश्व में यूटयूब के यूजर्स की संख्या लगभग 2.2 बिलियन (2.2 अरब) और भारत में 225 मिलियन (22.5 करोड़) है। यूटयूब कोंटेनेंट ढूंढने के लिये है, लोगों को ढूंढने के लिये नहीं। 

लिंकडइन (Linkedin) : इस सोशल मिडिया का उपयोग ज्यादातर जॉब सर्च के लिये होता है। प्राफेशनल, बिजनेसमेन, कैरियर बनाने वाले इस प्लेटफार्म का उपयोग अधिक करते है। लिंकडइन की शुरूआत साल 2003 में कैलिफोर्निया स्थित माउंटन वियू कम्पनी ने की थी। विश्व में इसके यूजर्स की संख्या 774 मिलियन से अधिक है।

टवीटर (Twitter) : टवीटर की शुरूआत साल 2006 में हुई थी जिसका उपयोग ज्यादातर आर्टिकल, न्यूज, मैसेज आदि देने के लिये होता है। इसमें 280 से ज्यादा शब्दों का प्रयोग करने पर पाबंदी है। इस सोशल मिडिया पर विश्व में यूजर्स की संख्या 300 मिलियन (30 करोड़) और भारत में 22.1 मिलियन है।

पिनटेरेस्ट (Pinterest)  : सेन फ्रांसिस्को स्थित इस कंपनी की शुरूआत साल 2009 में हुई थी। इमेज शेयरिंग के लिये यह सोशल मिडिया अपनी खास पहचान बना चुका है। ऐसा माना जाता है कि इस सोशल मिडिया का उपयोग करने वाल यूजर्स में 80 प्रतिशत संख्या केवल महिलाओं की है। 

स्नेपचेट (Snapchat) : फोटो शेयरिंग व मैसेज भेजने के लिये समार्ट फोन पर चलने वाला यह बेहतरीन एप है। 24 धंटे बाद फोटो अपने आप डीलिट हो जाते है। फोटो या मैसेज के लिये लाइक या कमेंट नहीं कर सकते है।

पोडकास्ट (Podcast) : जिस तरह यूटयूब विडियो देखने का प्लेटफार्म है, उसी तरह पोडकास्ट ऑडियो सुनने की एक बेहतरीन सेवा है। इसमें सिरिअस ऑडिअंस अधिक होती है, अतः कोन्टेन्ट पर पकड़ होनी जरूरी है।  

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03/10/2021, 12:04 pm

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एस.पी. और पुलिस कमिश्नर में क्या अंतर है ?

भारत में छोटे शहरों में एस.पी. और बड़े शहरों में एस.एस.पी तैनात किये जाते है, जबकि सामान्यतः महानगरों में पुलिस व्यवस्था की कमान पुलिस कमिश्नर को सोंपी जाती है। 

पुलिस कमिश्नर के पास जरूरी परिस्थितियों में लाठीचार्ज, फायरिंग का अधिकार होता है जबकि एस.पी या एस.एस.पी. को इसके लिए कलेक्ट़्रेट से परमिशन लेनी पड़ती है। 

पुलिस कमिश्नर के पास होटल बार लाइसेंस, आर्म लाइसेंस, धरना प्रदर्शन की अनुमति देने के अधिकार होते है जबकि एस.पी. या एस.एस.पी. के पास इस तरह के लाइसेंस जारी करने के अधिकार नहीं होते है।

पुलिस कमिश्नर के पास आरोपी पर जुर्माना लगाकर जेल भेजने की पावर भी होती है, जबकि एस.पी या एस.एस.पी. को आरोपी को गिरफ्तार करके कोर्ट में पेश करना पड़ता है।   

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Padamshree Research Desk

02/10/2021, 05:10 pm

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सागरतटीय महानगरों को खतरा

‘जर्नल ऑफ थ्रेटेन्ड टैक्सा‘ में प्रकाशित एक शोध के अनुसार सागर तल में 1 मीटर वृद्धि की स्थिति में देश का 14,000 वर्ग किमी सागरतटीय क्षेत्र डूब जाएगा और यदि सागर तल 6 मीटर बढ़ जाए तो 60,497 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र सागर में समा जाएगा। एशिया के लिए यह खतरा अधिक है क्योंकि एक करोड़ से अधिक आबादी वाले विश्व के 37 सागरतटीय महानगरों में से 21 ऐशियाई देशो में स्थित है। समुद्र तल बढ़ने से अधिक प्रभावित होने वाले विश्व के दस महानगरों में सात एशिया में है - शंघाई, हांगकांग, कोलकोता, मुम्बई, ढाका, जकार्ता (इंडोनेशिया) और हनोई (वियतनाम)।

Padamshree Info Desk

2021-09-06, 12:27 pm

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मेरा वतन मुझे पुकारता है

हेमन्त शाह का कनाडा के प्रधानमंत्री को पत्र

कनाडा में पढ़ने वाले अन्तर्राष्ट्रीय छात्रों में 34.5 प्रतिशत छात्र भारतीय मूल के है। कोरोना काल में भारत आए जिन छात्रों ने को-वैक्सिन ली है, उन्हें कनाडा स्वीकार नहीं कर रहा है। कनाडा ने भारत से सीधे आने वाले विमानों पर रोक लगा दी है। नजीतन भारतीय छात्रों को मैक्सिको, मालद्विव, दोहा या बेलग्रेड होते हुये कनाडा पहुंचना पड़ रहा है, जहॉं उन्हें अगली फ्लाइट पकड़ने के लिये 2-10 दिन तक कोविड जॉंच के लिए रूकना पड़ता है और इस तरह 60-80 प्रतिशत किराया भी अधिक देना पड़ रहा है।

ओवरसीज फ्रेडस ऑफ इंडिया-कनाडा के निदेशक हेमन्त शाह ने केनेडियन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को नराजगी भरा पत्र लिखकर भारत से सीधे कनाडा आने वाली फ्लाइटों पर प्रतिबंध हटाने की मांग की और कहा कि आपका यह निर्णय अनुचित एवं अदूरदर्शी है। हेमन्त शाह जो इंडिया-कनाडा ट्रेड से 40 सालों से जुडे़ हुए है और उस समय कनाडा के उत्पादों को भारत में प्रमोट किया था जब भारत में कनाडा की कोई खास पहचान नहीं थी।

इसी साल 20 सितंबर को कनाडा में चुनाव भी होने वाले है। केनेडियन हाउस ऑफ कॉमन के 338 पार्लियामेंट सदस्यों में से 22 सदस्य भारतीय मूल के है और इन 22 सदस्यों में 3 सदस्य हरजीत एस. सज्जन, बर्दिश छाजेड़, एवं अनिता आन्नद मंत्री पद पर भी है।

R K Jain

2021-08-14, 10:32 am

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स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर ध्वजारोहन

15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर नीचे से रस्सी द्वारा खींच कर झंडे को ऊपर ले जाया जाता है, जिसे ध्वजारोहण कहा जाता है। संविधान में इसे Flag Hoisting (ध्वजारोहण) कहा जाता है। इस दिन प्रधानमंत्री लाल किले पर ध्वजारोहण करते हैं, क्योंकि स्वतंत्रता के दिन भारत का संविधान लागू नहीं हुआ था और राष्ट्रपति ने पदभार ग्रहण नहीं किया था। इस दिन शाम को राष्ट्रपति अपना सन्देश राष्ट्र के नाम देते हैं।

26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर झंडा ऊपर ही बंधा रहता है, जिसे रस्सी से खींचकर खोल कर फहराया जाता है, संविधान में इसे Flag Unfurling (झंडा फहराना) कहा जाता है। 26 जनवरी यानि गणतंत्र दिवस जो कि देश में संविधान लागू होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, इस दिन संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति राजपथ पर झंडा फहराते हैं।

भारत का राष्ट्रीय झंडा हाथ से कता हुआ और हाथ से बनाए गये ऊनी/ सूती/ सिल्क/ खादी कपडे से बना होना चाहिए।  राष्ट्रीय झंडे की लंबाई और ऊंचाई (चौड़ाई) का अनुपात 3 : 2 होना चाहिए जिसके कुछ स्टेण्डर्ड आकार भी निश्चित किये गए है - 

       माप मिलीमीटर में - 

1.    6300 x 4200
2.    3600 x 2400
3.    2700 x 1800
4.    1800 x 1200
5.    1350  x  900
6.      900  x  600
7.      450  x  300
8.      225  x  150
9.      150  x  100 

Garvit Jain

2021-07-18, 02:17 pm

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बुलेट ट्रेन की तकनीकी

क्या आपने कभी सोचा है कि बुलेट ट्रेन कैसे काम करती है, यह ट्रेन किस प्रकार 500-600 कि.मी. प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ती है। इसके पीछे एक अनोखी टेक्नोलोजी है जिसका नाम Meglev है और जिसका मतलब होता है- मैगनेटिक लेविटेशन। बुलेट ट्रेन में पहिये नहीं होते है और चलते समय ट्रेन थोडी ऊपर उठी हुई होती है इसलिये इसमें फ्रिक्शन नहीं होता है, यही कारण है कि ट्रेन ज्यादा स्पीड से चल पाती है। 

दरअसल बुलेट ट्रेन ट्रेक पर नहीं दौडती है, यह ट्रेन विशेष रूप से बने हुये टनल या ऐलिवेशन पर दौडती है। टनल और ट्रेन में दो तरह के चुबंक (North & South) लगे होते है, जिनकी पेयरिंग की सहायता से ट्रेन थोड़ी ऊपर उठती है और तेजी से दौडती है। नॉर्थ और नॉर्थ चुबंक की पेयरिंग ट्रेन को धकेलती है और नॉर्थ और साउथ की पेयरिंग ट्रेन को खींचती है। ये चुबंक बहुत ताकतवर होते है क्योंकी ये सुपर कंडक्टिंग पदार्थों से बनाये जाते है।

R K Jain

2021-5-25, 09:15 am

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Director

कच्छ का रण उत्सव

गुजरात में कच्छ के रण उत्सव के दौरान पर्यटकों को कारीगरों के गांव और साल्ट डेजर्ट देखने के अवसर मिलते हैं। सर्दियों में लगभग साढ़े तीन महीने तक चलने वाले ‘रण उत्सव' के नाम से विख्यात इस पर्यटन मेले में देश-विदेश से आने वाले पर्यटको को एक ही जगह गुजरात के तमाम कलाकारों की जीवंत कलात्मकता देखने को मिल जाती है। इसे दुनिया का सबसे बड़ा नमक का रेगिस्तान भी माना जाता है। रात में चन्द्रमा की रोशनी पड़ते ही एक विशाल खत्म न होने वाले समुद्र की तरह दिखने लगता है। कच्छ अपने लोगों व उनकी कला, नृत्य, संगीत, शिल्प और प्रकृति की एक उत्सव भूमि है।   

Garvit Jain

2021-04-16, 11:22 am

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एअर कंडीशनर का विज्ञान

एअर कंडीशनर का अविष्कार साल 1902 में विल्स हाविलेंड केरियर ने किया था। साधारणतः हम सोचते है कि हमारे घरों में लगने वाला ए.सी. बाहर की हवा को ठंडा करके हमारे कमरे में पहुंचाता है, इसलिये कमरा ठंडा रहता है। जबकि ए.सी. द्वारा कमरे को ठंडा करने का यह विज्ञान नहीं है। वास्तव में ए.सी. कमरे की हीट को निकालकर बाहर फेंकता है, इस कारण कमरा ठंडा रहता हैं। 

ए.सी. युक्त कमरा पूरी तरह बंद रहता है, अतः कमरे में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, इस कारण ए.सी. बाहर से थोड़ी सी हवा खींचकर ठंडा करके कमरे में भेजता है। ए.सी. के संचालन में फ्रेओन गैस का इस्तेमाल किया जाता है। जगह की उपब्धता के अनुसार ए.सी. का निम्न प्रकार चुनाव किया जा सकता है-   

       क्षेत्र                क्षमता
100 वर्ग फीट जगह    0.8 टन 
150 वर्ग फीट जगह    1 टन 
250 वर्ग फीट जगह    1.5 टन 
400 वर्ग फीट जगह     2 टन 

सामान्यतः ए.सी. की क्षमता के लिये टन शब्द का प्रयोग किया जाता है जिसे लोग ए.सी. का भार समझ लेते है। वास्तव में 1 टन ए.सी. का मतलब है कि ए.सी. द्वारा एक धंटें में जितनी हीट कमरे से बाहर निकालता है वह हीट 1 टन बर्फ को 1 धंटे में पूरी तरह से पिघला सकता है। ए.सी. के लिए प्रयूक्त शब्द 1 टन का अर्थ 12,000 बी.टी.यू. (British Thermal Unit) से है और 1 बी.टी.यू. 1055 जूल्स (Joules- किसी भी एनर्जी को मापने की इकाई) के बराबर होता है। 

Padamshree Info Desk

2021-04-15, 04:39 pm

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पोटेशियम युक्त आहार और उसके फायदे 

पोटेशियम शरीर के महत्त्वपूर्ण खनिजों में से एक है, जो शरीर को बेहतर तरिके से कार्य करने में मदद करता है। यह एक प्रकार का इलेक्ट्रोलाइट होता है, जो शरीर में इलेक्ट्रिक चार्ज को कैरी करता है। पोटेशियम प्रोटिन व मांसपेसियों के निर्माण में सहायक है। उच्च रक्त चाप, हृदय रोग, हार्ट फेल, स्ट्रोक, मधुमेह, किडनी स्टोन और अंतिम चरण की किडनी संबंधी बीमारी के जोखिम को कम करता है।  

कई खाद्य पदार्थो में पोटेशियम अधिक मात्रा में पाया जाता है जैसे- पालक, शकरकंद, एवोकाडो, खुबानी, केला, तरबूज, आलू, बीन्स, मसूर की दाल, टमाटर, मटर सीफूड, अनार, किशमिश, चुकंदर, दूध, दही आदि। पोटेशियम हमारे शरीर में डाइयूरेटिक या मूत्रवर्धक दवा का काम करता है।

प्रतिदिन कितना पोटेशियम सेवन करें-
0-6 माह तक के बच्चों के लिए - 400 मि.ग्रा./ प्रतिदिन
7-12 माह तक के बच्चों के लिए - 860 मि.ग्रा./ प्रतिदिन
1-3 साल तक के बच्चों के लिए - 2000 मि.ग्रा./ प्रतिदिन
4-8 साल तक के बच्चों के लिए - 2300 मि.ग्रा./ प्रतिदिन
9-13 साल तक के लिए - 2000 (लड़कियों), 2300 (लड़कों) मि.ग्रा. प्रतिदिन
14-18 साल तक के लिए - 2300 (लड़कियों), 3000 (लड़कों) मि.ग्रा. प्रतिदिन
19 साल और उससे अधिक के लिए - 2600 (लड़कियों), 3400 (लड़कों) मि.ग्रा. प्रतिदिन
 

Padamshree Info Desk

2021-03-28, 11:11 am

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ग्लोबल वार्मिंग और कार्बन डाइऑक्साइड गैस

इस वायुमंडल में प्राकृतिक तौर पर आयतन के हिसाब से करीब 78 प्रतिशत नाइट्रोजन और लभग 21 प्रतिशत ऑक्सीजन होती है और बाकी एक प्रतिशत में अन्य गैसे है। इस एक प्रतिशत में सबसे ज्यादा मात्रा में आर्गन गैस है, कार्बन डाइऑक्साइड तो इस 1 प्रतिशत का 33 वॉं यानी 0.03 प्रतिशत ही है। बाकी हिस्से में कई और गैसे है, उनकी मात्रा बहुत मामूली है। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार बायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड अब 0.04 प्रतिशत तक पहॅुंच गई है। ग्लोबल वार्मिंग के सन्दर्भ में देखें तो कार्बन डाइऑक्साइड उतनी नुकसान दायक नहीं होती लेकिन अन्य ग्रीन हाउस गैसों के फैलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। प्रकृति के साथ छेड़छाड के परिणाम हमेशा ही घातक होते है। वायुमंडल में मात्र 0.01 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साड के बढ जाने से ही मौसम में हुये नकारात्मक प्रभाव से सारी दुनिया परेशान है। 

Padamshree Info Desk

2021-03-24, 12:50 pm

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महासागरीय ऊर्जा (Sea Coast Energy)

महासागरीय उर्जा जल उर्जा का ही एक रूप है जो समुद्री लहरों, समुद्री ज्वार भाटा (tides), समुद्री लवणता, समुद्री तापमान में भिन्नता के कारण निकलती है। समुद्र में आने वाले ज्वार भाटा या लहरों  की उर्जा को उपयुक्त टर्बाइन लगाकर विद्युत उर्जा में बदल दिया जाता है। महासागरीय ऊर्जा के दोहन के क्षेत्र में भारत अग्रणी रहा है। लगभग 7 हजार किलोमीटर लंबी तटरेखा वाले हमारे देश के लिए 40 हजार मेगावॉट विद्युत शक्ति के उत्पादन की संभाव्यता आंकलित की गई है। एक आंकलन के अनुसार, विश्व के महासागर 20 खरब वॉट बिजली हमें प्रदान कर सकते हैं। 

Padamshree Info Desk

2021-03-23, 02:46 pm

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प्रतिदिन कितनी कैलारी भोजन ले ?

कैलोरी ऊर्जा को मापने का एक पैमाना है। हमारे मस्तिष्क, कोशिकाओं और उतकों को कार्य करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है और यह ऊर्जा हमें भोजन से मिलती है। हमें शरीर की आवश्यकतानुसार ही कैलोरी युक्त भोजन लेना चाहिये। डाइट और फिटनेस के क्षेत्र में कैलोरी का अर्थ शारीरीक उर्जा से होता है जिसे हम खाद्य पदार्थ से प्राप्त करते है।  कार्बोहाइड्रेट, प्रोटिन, वसा आदि से हमें मिलती है।  

कम कैलोरी भोजन लेने से हमारे शरीर में थकावट व कमजोरी आ जाती है और अधिक कैलोरी भोजन लेने से वह वसा के रूप में इकटठी हो जाती है जिससे शरीर में मोटापा बढ़ता है। 1000 कैलोरी को 1  किलोकैलोरी कहते हैं।

कैलोरी की खपत हमारे सामान्य स्वास्थ्य, शारीरिक गतिविधि की मांग, लिंग, वजन, ऊंचाई और आकार सहित कई कारकों पर निर्भर करता है। गृहिणी के अपेक्षा एक खिलाडी को हर दिन अधिक कैलोरी की जरूरत होती है । औसत व्यक्ति को प्रति दिन 2,500 कैलोरी और औसत महिला को प्रति दिन 2,000 कैलोरी  की आवश्यकता होती है। ग्रामीण क्षेत्रों कठिन परिश्रम करने वालों 3500 कैलोरी की भी जरूरत पड़ सकती है।

R K Jain

2021-03-22, 10:19 am

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Happy World Water Day

पूरी दुनिया में इंसानों की जरूरतों को पूरा करने के लिए पृथ्वी पर मौजूद कुल जल का केवल 0.8 प्रतिशत ही मानवपयोगी माना गया है। दुनिया की 14 प्रतिशत जनंसख्या के पास कुल जल संसाधनों का 53 प्रतिशत है, जबकि 86 प्रतिशत आबादी (भारत और चीन को मिलाकर) को 47 प्रतिशत वैश्विक जल संसाधन से ही काम चलाना पड़ता है। ऐसे स्थिति में भारत में जल की एक-एक बूंद का दक्ष उपयोग एवं भंडारण के लिए केवल सरकार के भरोसे नहीं रहा जा सकता, इसके लिए सभी समस्त भारतवासियों को भी अपने स्तर पर कुछ करना होगा।  

Padamshree Research Desk

2021-03-21, 09:06 am

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आकाशगंगा (Galaxy)

प्राचीन ग्रंथों में आकाशगंगा को मंदाकिनी, स्वर्णगंगा, देवनदी, क्षीर यानि दूध कहा गया है। अब तक बह्याण्ड के जितने भाग का पता चला है, उसमें लगभग ऐसी ही 19 अरब आकाशगंगाएं होने का अनुमान है। प्रत्येक गैलेक्सी अरबों तारें व ग्रहों का समेटे हुए है और अनेक गैलेक्सी एक साथ मिलकर तारा गुच्छ में रहती है। खगोल वैज्ञानियों ने आकाशगंगा को उनके आकार के आधार पर 3 भागों में विभाजित किया है- सर्पिल (Spiral) गैलेक्सी, दीर्घवृतीय (Elliptical) गैलेक्सी तथा अनियमित (Irregular) गैलेक्सी। हमारी आकाशगंगा मिल्की वे स्पाइरल आकार की होती है जिसके चक्र का व्यास लगभग 1 लाख प्रकाश वर्ष माना जाता है। आकाशगंगा की विशालता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि इसमें कम से कम 100 अरब तारे और 50 अरब ग्रह है। हमारा सौर मंडल आकाशगंगा के बाहरी इलाके में स्थित है और उसके केन्द्र की परिक्रमा कर रहा है। सौरमंडल को एक पूरी परिक्रमा करने में लगभग 22.5 करोड़ से 25 करोड़ वर्ष लग जाते है।

चंद्रमा हमसे 3,84,404 किलोमीटर दूर है और सूर्य की हमसे औसत दूरी 14.9 करोड़ किलोमीटर है। प्रकाश वर्ष उस दूरी को कहते है जिसे प्रकाश एक वर्ष में तय करता है और यह लगभग 9.46 x 1012 किलोमीटर अर्थात 9.46 ट्रिलीयन कि.मी. (94.6 खरब कि.मी. के बराबर होती है।

Padamshree Research Desk

2021-03-20, 12:42 pm

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भारत में स्वास्थय सेवाओं पर एक नजर

तेज आर्थिक विकास के बावजूद भारत में स्वास्थय सेवाओं की स्थिती अच्छी नहीं मानी जा सकती। शहरों में तो 500 व्यक्तियों पर एक डॉक्टर है परन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में एक चिकित्सक औसतन 2500 व्यक्तियों का इलाज करता है। एक तो गांवों से पी.एच.सी. और सी.एच.सी. की दूरी और दूसरे इनमें विशेषज्ञों की गैर मौजूदगी स्थिति को जटिल बना देती है।

देश के नागरीकों को स्वस्थ्य रखने के लिए हमारी सरकार ने स्वास्थ्य पर खर्च को जीडीपी के 2.5 प्रतिशत तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन जीडीपी के 5 प्रतिशत खर्च को जरूरी बताता है।  2015 में भारत जीडीपी का केवल 1.16 प्रतिशत ही स्वास्थ्य पर खर्च कर रहा था, जबकि अमेरिक में आंकड़ा जीडीपी का 8.5 प्रतिशत और ब्राजील में 4.2 प्रतिशत है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2012 की एक रिपोर्ट में बताया भी गया था कि भारत में 10,000 लोगों पर केवल 7 डॉक्टर थे यानि 1,428 लोगों पर केवल एक डॉक्टर, जबकि कायदे से 600 लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिएा। यह अंतर अब अधिक बढ़ गया होगा। हम अपनी स्थिति का अंदाजा इसी से लगा सकते है कि अमेरिका में सिर्फ 350 व्यक्तियों पर एक चिकित्सक है।

बुनियादी ढांचे की यह कमी ही लोगों को निजी स्वास्थ्य सेवा की मोहताज बनाती है। एन.एस.एस.ओ. (National Sample Survey Office) के आंकड़े बताते है कि ग्रामीण भारत के लोगों की 48 प्रतिशत से अधिक छोटी यात्राएं चिकित्सा के लिए होती है।

Padamshree Info Desk

2021-03-19, 02:57 pm

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ई-गवर्नेंस क्या है और भारत में इसका क्या महत्व हैं ?

भारत में करीब 6.5 लाख गांव है, जो कुल आबादी के 72 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करते है देश में ग्रामीण जन समुदाय को भारतीय समाज का केन्द्र समझा जाता है और यह वास्तविक भारत का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह भी अनिवार्य समझा गया है कि सूचना के प्रवाह में कारगर सुधार और सरकार की नीति निर्माण प्रक्रिया में नागरिकों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देना भी अनिवार्य है।

राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना 2006 में शुरू की गई थी। इसका लक्ष्य कॉमन सर्विस सेंटरों के जरिए आम नागरिकों को सभी सरकारी सेवाओं तक पहुंच उनकी बस्तियों में प्रदान करते हुए सक्षमता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करना था, ताकि सरकार और नागरिकों के बीच एक विश्वास कायम किया जा सके।
 

Padamshree Info Desk

2021-03-18, 12:13 pm

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दुनिया की सबसे महंगी धातु - इंडोहेडरल फलरीन (endohedral fullerene)

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, यू.के. के शोधकर्ताओं ने कार्बन परमाणुओं की सहायता से नई धातु इंडोहेडरल फलरीन‘ का निर्माण किया है। दावा है कि यह दुनियाकी सबसे महंगी धातु है। इसकी कीमत प्रति ग्राम एक हजार करोड़ रूपये आंकी गई है। अभी तक ज्ञात पांच सबसे महंगी अन्य धातुओं में कैलिफोर्नियम-252 (270 करोड़ रूपए प्रति ग्राम), डायमंड (55 लाख रूपए प्रति ग्राम) तथा ट्रिटियम (35 लाख रूपए प्रति ग्राम) सम्मिलित है।

R K Jain

2021-03-18, 12:07 pm

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सौर उर्जा 

सौर उर्जा कभी खत्म न होने वाला प्राकृतिक संसाधन है। भारत एक उष्ण-कटिबंधीय (Tropical) देश होने के कारण हमारे यहाँ प्रतिवर्ष लगभग 3000 घंटे सूर्य के प्रकाश से भरपूर होते है। भारत की जमीन पर लगभग पाँच हज़ार लाख किलोवाट घंटा प्रति वर्गमीटर के बराबर सौर ऊर्जा आती है। भारत सरकार ने 2022 के अंत तक 100 गीगावॉट सौर उर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है।

आई.आई.टी. मुम्बई के प्रोफेसर चेतनसिंह सोंलकी के अनुसार यदि दूसरे ग्रह से कोई आएगा तो क्या सोचेगा कि इस धरती पर रहने वाले इंसान कितने विचित्र है जो हाइड्रो पावर एवं थर्मल पावर स्थापित करने जैसा जटिलतापूर्ण कार्य कर रहे है। जगह-जगह लटकते बिजली के तार हर समय खतरे की चेतावनी देते है। इसके विपरित सौर उर्जा संयंत्र कहीं भी स्थापित किया जा सकता है, घरों के छत पर और स्ट्रीट लाइट पर भी सोलर पलेट लगायी जा सकती है। भारत में अब रूफ टॉप सोलर सिस्टम व खेतों में सोलर पंप लगाने का चलन बढ़ रहा है। सौर उर्जा के प्रति यदि हर इंसान जागरूक हो जाये और सौर उर्जा के माध्यम से अपनी बिजली की जरूरत को खुद ही पूरी करना शुरू कर दे तो भारत को सुपर पावर बनते देर नहीं लगेगी।  

 

R K Jain

2021-03-07, 08:32 am

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भारतीय दर्शन और आधुनिकता का संगम ग्रामीण पर्यटन में सहायक होगें

भारत के गांव हमेशा से अपनी लोक कलाओं और हस्तशिल्पों के लिए विख्यात रहे है। यहां की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, प्रकृति के सानिध्य में खुला वातावरण, हरे-भरे खेत, हिमखंड, मरूभूमि, सागर के लहरों की अठखेलियां पर्यटकों का बेसब्री से इन्तजार कर रही है। यदि भारतीय ग्रामीण व्यवस्था अपनी पंरपराओं के साथ आधुनिक विज्ञान को भी सम्मिलित करना शुरू कर दें तो भारतीय दर्शन और आधुनिक विज्ञान का एक ऐसा अनुपम गुलदस्ता बनेगा जो देश-विदेश के पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करने के लिए पर्याप्त होगा।

हमारे देश में विश्व स्तरीय अनुसंधान उपलब्ध है जिसका विस्तार गांवों तक होना अत्यंत आवश्यक है। विश्व स्तर पर हमारी यह पहचान बननी चाहिए कि यह देश विरासत में मिली पंरपराओं के बल पर ही नहीं जीता बल्कि समय के साथ सामयिक बनने का दम-खम भी रखता है। इस दुनिया में भारतीय दर्शन ही एक मात्र ऐसा दर्शन है जिसकी एक झलक से ही लोग भाव-विभोर हो जाते है लेकिन आधुनिकता के साथ सामंजस्य स्थापित करना समय की मांग है।

Padamshree Info Desk

2021-03-06, 12:47 pm

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भारत सरकार का गठन

भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है जिसके तीन मुख्य अंग है जो स्वत्रंत रूप से कार्य करते है :

व्यवस्थापिका (Legislative) : व्यवस्थापिका सदन (Parliament) को कहा जाता है जिसे तीन भागों में बांटा गया है, 1. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति- राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को 5 वर्षो के लिए चुना जाता है। राष्ट्रपति को राष्ट्र का प्रमुख माना जाता है। इनके दायित्वों में संविधान का अभिव्यक्तिकरण, प्रस्तावित कानूनों (विधेयक) पर अपनी सहमति देना और अध्यादेश जारी करना प्रमुख हैं तथा ये भारतीयों सेनाओंं के प्रमुख सेनापति भी है। राष्ट्रपति की अनुपस्थिती में सारा कार्य उपराष्ट्रपति देखेते है। 2. राज्य सभा (Upper House)- राज्य सभा एक स्थायी सदन है जिसमें 245 सदस्य होते है और सभी सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष विधि द्वारा 6 वर्षो के लिए किया जाता है। 3. लोक सभा (Lower House) : लोकसभा के 543 सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष जनता द्वारा 5 वर्षों के लिए किया जाता है जहां 18 वर्ष की उम्र से अधिक कोई भी नागरीक मतदान कर सकता है।

कार्यपालिका (Executive) : कार्यपालिका के 2 अंग है, 1. मंत्री परिषद (Council of Ministers)- मंत्री परिषद का मुखिया प्रधानमंत्री होता है। मंत्रीमंडल के प्रत्येक मंत्री को संसद का सदस्य होना अनिवार्य है। 2. प्रशासन (Bureaucracy)- सभी सरकारी अधिकारी व कर्मचारी प्रशासनिक गतिविधियों को अंजाम देते है। हर कार्य संविधान के अनुरूप होना चाहिए, ये देखना इनका कार्य है। मंत्री परिषद और प्रशासन दोनों मिलकर ही देश के विकास कार्यो के लिए योजनाएं बनाते है।

न्यायपालिका (Judiciary) : भारत की स्वत्रंत न्यायपालिका का ढांचा त्रिस्तरीय है जिसमें सर्वोच्च न्यायलय (Supreme Court), 24 उच्च न्यायलय और अनेक क्षेत्रिय न्यायलय आते है। सर्वोच्च न्यायालय को राज्य और केंद्रीय कानूनों को असंवैधानिक ठहराने के अधिकार है। संविधान ने न्यायपालिका को विस्तृत अधिकार दिये हैं, जिनमें संविधान की अंतिम व्याख्या करने का अधिकार भी सम्मिलित है। सर्वोच्च न्यायलय के प्रमुख को चीफ ज्सटिस ऑफ इंडिया (CJI) के नाम से जाना जाता है।

Padamshree Research Desk

2021-03-05, 12:57 pm

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रक्त वाहिकाएं (Blood Vessels)

हृदय से शरीर के प्रत्येक भाग तक साफ रक्त पहुॅंचाने एवं शरीर के प्रत्येक भाग से अशुद्ध रक्त को एकत्रित कर हृदय तक पहुॅंचाने का कार्य रक्त वाहिकाएं करती है। रक्त वाहिकाएं 3 प्रकार की होती है

1. धमनियाँ (Arteries)- हृदय से शुद्ध रक्त को शरीर के सभी भागों तक पहुॅंचाने का कार्य धमनियां करती है। ये हमारी त्वचा से दूर गहराई में स्थित होती है। मानव शरीर में लगभग 250 धमनियां पायी जाती है।

2. शिराएं (Veins) - शिराएं शरीर के अंगों से अशुद्ध रक्त एकत्रित कर हृदय तक पहुॅंचाती है। शिराएं हमारी त्वचा के नजदीक होती है। हमारे शरीर से लिये जाने वाले ब्लड सैंपल शिराओं से ही लिये जाते है और इंजेक्शन भी शिराओं में ही लगाया जाता है।

3. केशिकाएं (capilleries) - धमनियों और शिराओं के बीच केशिकाओं का समूह होता है। धमनियां विभन्न केशिकाओं में विभक्त हो जाती है और वहीं से शिराएं प्रारम्भ होती है। केशिका समूह को एक झील की तरह समझा जाता है जिसमें एक ओर से नदी प्रवेश करती है और दूसरी ओर से निकल जाती है।

Padamshree Info Desk

2021-03-04, 12:09 pm

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समुद के जल से होगी पेयजल समस्या का निवारण

पेयजल संकट से निबटने के लिए समुद्र के जल को पीने योग्य बनाना सबसे अच्छा उपाय है। लंबे समय से वैज्ञानिक इस कार्य में लगे हुए है लेकिन अब तक कोई सस्ता उपाय नहीं निकाल पाए। विश्व का सबसे बड़ा विलवणीकरण संयंत्र इसराइल में लगा है। यह विपरीत परासरण पर आधारित है। इसकी उत्पादन क्षमता 63 करोड़ लीटर प्रतिदिन है। सऊदी अरब के रियाध शहर में सन् 2014 में एक ऐसा ही संयंत्र बनकर तैयार हुआ जो 73 करोड़ लीटर पानी प्रतिदिन तैयार करता है लेकिन इसमें ऊर्जा बहुत व्यय होती है।

भारतीय मूल के अमेरिकी हाई स्कूल के छात्र चैतन्य करमचेदू ने कुछ अद्भूत कर दिखाया है। यदि उनके प्रयोग के परिणाम को व्यावासयिक स्तर पर करने में सफलता मिल गई तो पृथ्वी का पेयजल संकट हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा। 

चैतन्य ने सबसे बड़े जल के स्त्रोत समुद्र के पानी पर ध्यान दिया। उनका दृष्टिकोण वैज्ञानिकों से बिल्कुल भिन्न था। चैतन्य ने देखा कि समुद्र के जल के केवल 10 प्रतिशत अणु लवणयुक्त होते है शेष 90 प्रतिशत स्वच्छ जल होता है। अब तक वैज्ञानिक 10 प्रतिशत लवणयुक्त अणु पर अपना ध्यान केन्द्रित करते थे लेकिन चैतन्य ने स्वच्छ 90 प्रतिशत जल को अपना लक्ष्य बनाया। चैतन्य ने एक पॉलीमर जिसमें अवशोषक के गुण थे, का उपयोग कर समुद्र के स्वच्छ भाग को अलग कर पीने योग्य बना दिया। पॉलीमर क्या है यह बात गोपनीय है, लेकिन चैतन्य को इस कार्य के लिए 10 हजार अमेरिकी डॉलर का पुरस्कार भी दिया गया ताकि वह अपना शोध आगे बढ़ा सकें। भिन्न सोच - भिन्न परिणाम। 

Padamshree Info Desk

2020-06-25, 03:08 pm

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फोटॉन और इलेक्ट्रॉन

दरअसल फोटोनिक्स प्रकाश को उत्पन्न और नियंत्रित करने का विज्ञान है। इलेक्ट्रोनिक्स मे इलेक्ट्रोन और फोटोनिक्स में फोटॉन का इस्तेमाल किया जाता है। इन दोनो में क्या मूलभूत अंतर है ? फोटॉन प्रकाश के वेग से गति करते है तथा फोटॉन की तुलना में इलेक्ट्रॉनो की गति कम होती है। परिणामस्वरूप, प्रकाशीय (फोटॉन) यानी ऑप्टिकल कम्प्यूटरों की कम्प्यूटिंग क्षमता, इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटरों की तुलना में हजारो लाखों गुना अधिक होती है।

फोटॉन और इलेक्ट्रोनों के बीच एक और अंतर भी होता है। फोटॉन एक दूसरे से क्रिया नही करते जबकि इलेक्ट्रान कूलॉम्ब क्षेत्रों के माध्यम से अति प्रबल पारस्परिक क्रिया का प्रदर्शन करते है। अतः सूचना के संचरण में फोटोनिक्स, इलेक्ट्रिनिक्स से बाजी मार जाता है। 

Padamshree Research Desk

2020-03-25, 12:18 pm

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कोरोना वायरस के बचाव में साबुन कारगर है

कोरोना वायरस का स्ट्रक्चर - वायरस की उपरी सतह फेटस की बनी होती जो आसानी से पानी में घुलती नहीं हैं, अतः खून में या रेस्पायरेटरी सिस्टम में लबें समय तक सुरक्षित रह सकता है। वायरस की भीतरी सतह के अंदर आर.एन.ए. होता है।

साबुन की प्रिंसीपल प्रोपर्टी होती है-  हेड (हाइड्रोफिलिक) और टेल (हाइड्रोफोबिक)। इसका एक भाग पानी की तरफ आकर्षित होता है और दूसरा भाग फेटस की तरफ। इसी कारण साबुन मैल को निकाल पाता है और इसी कारण साबुन वायरस को भी मार सकता है। साबुन का एक भाग वायरस की उपरी सतह से यानि फेटस से चिपक जाता है और दूसरा भाग पानी की तरफ आकर्षित होता है। नतीजा यह निकलता है कि वायरस की उपरी सतह कई जगहों से खींचकर अलग हो जाती है और वायरस का आर.एन.ए. बाहर आकर बेकार हो जाता है। वायरस की उपरी सतह यानी फेटस को गलाने के लिए साबुन को लगभग 20 सेंकड का समय लगता है, अतः हाथ धोते समय 20 सेंकेड या ज्यादा समय तक साबुन लगी होनी जरूरी होती है।

R K Jain

2020-03-16, 03:58 pm

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Director

कोरोना वायरस पर डॉ विश्वरूप राय चौधरी के विचार

डॉ विश्वरूप राय चौधरी बता रहें है जैसे ही आपको कोरोना या अन्य Flu के पहले लक्ष्ण दिखाई दें जैसे कि कफ, बुखार आदि, वैसे ही आपको 3 step लेने है 

1. पहले दिन आपको अपने वजन के अनुसार सिट्रस फलों का ज्यूस और नारियल पानी लेना है। यदि आपका वजन 60 कि.ग्रा. है तो दिन भर में 6 ग्लास ताजा और बिना फिल्टर किया हुआ सिट्रस फलों का ज्यूस और 6 ग्लास नारीयल पानी लेना है। इसके अतिरिक्त आपको दिन भर कुछ नहीं खाना है। ऐसा करने से आपका टेम्परेचर 100 डिग्री से उपर जायेगा ही नहीं। 

2. दूसरे दिन उपरोक्त वजन के अनुसार दिन भर में 3 ग्लास ताजा और बिना फिल्टर किया हुआ सिट्रस फलों का ज्यूस और 3 ग्लास नारीयल पानी लेना है। इसके साथ आपको दिन भर में (आपका वजन x 5 ग्रा.) 300 ग्रा. टमाटर और खीरा लेना है। इसके अतिरिक्त आपको कुछ नहीं लेना है। यहां पर आप 50 प्रतिशत तक कम्फर्ट हो जायेगें।

3. तीसरे दिन उपरोक्त वजन के अनुसार दिन भर में 2 ग्लास ताजा और बिना फिल्टर किया हुआ सिट्रस फलों का ज्यूस और 2 ग्लास नारीयल पानी दोपहर 12 बजे तक ले लेना है। इसके बाद लंच में (आपका वजन x 5 ग्रा.) 300 ग्रा. टमाटर और खीरा लेना है। इसके बाद डीनर में रोजाना की तरह नॉरमल खाना ले सकते है।

Garvit Jain

2020-01-21, 02:31 pm

Student - Engineering,

Maharastra, India

garvitjain.gj19@gmail.com

Technical Associate

विद्युत प्रवाह (Electrical Conductivity) में पदार्थो की भूमिका

कंडक्टर/ सुलाचक- कुछ मेटेरियल में फ्री इलेक्ट्रॉन होते है केवल वे मेटेरियल ही विद्युत उर्जा प्रवाहित कर सकते है। कंडक्टर में यह गुण होता है और यह आसानी से बिजली प्रवाहित कर सकते है। कंडक्टर यानि चालक तीन प्रकार के होते है जिनमें विद्युत प्रवाह भिन्न-भिन्न होता है :

1. ठोस कंडक्टर- चांदी में 98 प्रतिशत, तांबा में 90 प्रतिशत, एल्यूमिनियम में 65 प्रतिशत आदि।
2. लिक्वीड कंडक्टर- पारा, सल्फयूरिक एसिड, अमोनियम क्लोराइड, कॉपर सल्फेट आदि।
3. गैसीय कंडक्टर- नियोन, हिलियम, ऑर्गन आदि।   

सेमीकंडक्टर- सेमीकंडक्टर का गुण कंडक्टर व इंसुलेटर के बीच का होता है। इस पदार्थ में सभी इलेक्ट्रॉन फ्री नहीं होते है, केवल कुछ इलेक्ट्रॉन ही फ्री होते है। ताप बढ़ने या घटने पर तथा भिन्न-भिन्न दिशाओं में भी सेमीकंडक्टर का विद्युत प्रवाह प्रभावित हो सकता है। इस पदार्थ में जितने फ्री इलेक्ट्रॉन होगें, उसी सीमा तक बिजली प्रवाहित हो पाएगी। सिलिकॉन, जर्मेनियम, कैडमियम, सल्फाइड आदि सेमीकंडक्टर के उदाहरण है।

इंसूलेटर- इस पदार्थ में फ्री इलेक्ट्रॉन नहीं होते होते है और यह विद्युत प्रवाह का विरोध करता है। इनका उपयोग सुचालक तारों के ऊपर एवं विद्युत मशीनों के वाइडिंग तारों की परतों के बीच किया जाता है। सूखी लकड़ी, बैकेलाइट, ऐस्बेस्टस, चीनी मिट्टी, कागज, कांच आदि इंसूलेटर के उदाहरण है।

Padamshree Research Desk

2019-12-21, 03:56 pm

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आई.आई.टी, मुम्बई के वैज्ञानिकों की मेहनत से हुआ कैंसर का इलाज संभव

सुनने में आपको यह कोई करिशमा लग रहा होगा, लेकिन आई.आई.टी, मुम्बई के बायोसाइंस और बायो इंजीनियरींग के वैज्ञानिकों ने इस करिशमे को सच कर दिखाया और गांरटी है कि कैंसर का मरीज पूरी तरह ठीक हो जाएगा। यह खबर वाकई शकुन देने वाली है कि कैंसर के इलाज की यह स्वदेशी तकनीक (CAR-T) कीमोथैरेपी से कम र्ददनाक होगी और सस्ती होगी एवं आम आदमी की पहुॅंच में होगी। आई.आई.टी, मुम्बई को इस स्वदेशी तकनीक का इजाद करने में 6 साल लगे और टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पीटल, मुम्बई ने भी इस रीसर्च में सहयोग किया है।

आई.आई.टी, मुम्बई के डॉ राहुल पूरवार के अनुसार इस इलाज को इम्युनोथैरेपी कहते है। हमारे शरीर में पाये जाने वाले टी-सेल्स को इस इलाज में स्ट्रांग किया जाता है। कैंसर के सेल्स इस टी-सेल्स के सम्पर्क में आने पर खत्म हो जाते है। ब्लड कैंसर के लिए इसका सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा चुका है। आने वाले दिनों में न्यूरोब्लास्ट कैंसर, टयूमर कैंसर आदि पर भी सफलता मिलने की संभावना है। मानव शरीर से सेल्स निकालकर उसमें में जी.पी.एस. लगाकर भी कैंसर के सेल्स को खोजकर खत्म किया जा सकता है।  

Padamshree Info Desk

2019-11-29, 12:23 pm

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भारत में प्रति व्यक्ति भूमि उपलब्धता

भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर है। जनसंख्या में तेज वृद्धि  के कारण, देश की प्रति व्यक्ति भूमि उपलब्धता जो वर्ष 1951 में 0.48 हैक्टेयर थी, घटकर वर्ष 2011 में 0.13 हैक्टेयर रह गयी है।  

ભારતનું કુલ ક્ષેત્રફળ 32,87,263 ચોરસ કિલોમીટર છે. વસ્તીમાં ઝડપથી વધારાને કારણે, દેશની માથાદીઠ જમીનની ઉપલબ્ધતા જે વર્ષ 1951 માં 0.48 હેક્ટર હતી તે વર્ષ ૨૦૧૧ માં ઘટીને 0.13 હેક્ટર થઈ ગઈ છે.  

Padamshree Research Desk

2019-11-22, 06:07 pm

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बैक्टीरिया-संचालित सौर सेल

ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के शोध कर्ताओं ने बैक्टीरिया का उपयोग करके सौर सेल बनाने का एक सस्ता, टिकाऊ तरीका खोजा है जो प्रकाश को ऊर्जा में परिवर्तित करता है। पहले दर्ज किये गए इस तरह के किसी भी डिवाइस की तुलना में उनके सेल ने अधिक तीव्र करंट उत्पन्न किया है, और चमकीले प्रकाश में और मंद प्रकाश में समान कुशलता से काम किया।

Padamshree Info Desk

2019-11-18, 07:19 pm

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पावर लूम के लिए हाइब्रिड सौर प्रणाली

वाराणसी के बाहरी इलाके में ताडिया (मुस्लिमपुरा, कोटवा) गांव में सुल्तान अंसारी का घर एक अद्भुत नवीकरणीय ऊर्जा कहानी की चर्चा कर रहा है। बुनकरों को पता है कि बिजली में उतार-चढ़ाव के दौरान, रेशमी धगे के बॉबिन से भरे हुए शटल, जो लूम में पीछे और आगे बढ़ते हैं, रुक जाते हैं और जब बिजली फिर से शुरू होती है तो बॉबिन धागा टूट जाता है। सुल्तान कहते हैं, कि यह टूटा धागा रेशम के कपड़े में दिखाई देता है और उसकी कीमत कम हो जाती है। सुलतान अब ग्रिड सप्लाई व्यवधान और डीजल जेनरेटर की समस्याओं से निपटकर घर पर हाइब्रिड सौर प्रणाली स्थापित करके आगे बढ़ चुके है।

Padamshree Research Desk

2019-11-13, 05:30 pm

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कोलीफार्म जीवाणुओं की उपस्थिति दूषित जल की पहचान

कोलीफार्म जीवाणुओं की उपस्थिति दूषित जल की पहचान है क्योंकि ये जीवाणु केवल मल में ही पाये जाते है तथा आसानी से सरल परीक्षण द्वारा ज्ञात किए जा सकते है। पानी में कोलीफार्म बैक्टिरिया कई विषैले जीवाणओं के फैलने में अहम् भूमिका निभाता है। इसकी उपस्थिती में कई प्रकार के घातक बैक्टिरिया पनपते है, जिससे कई प्रकार की जल-जनित बीमारियां हो सकती है।

सामान्यतः कोलीफ़ॉर्म उपचारित सतह जल तथा गहरे भूजल में नहीं पाया जाता, लेकिन जिन जल स्त्रोतों में मलीय संदूषण होता है उन जल स्त्रोतों में कोलीफार्म बैक्टिरिया की संभावना बढ़ जाती है। सामान्यतः यह स्वस्थ मनुष्यों में कोई घातक बीमारी उत्पन्न नहीं करता लेकिन जिन मनुष्यों के शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो उन्हें जोखिम में डाल सकता हैं। 

Padamshree Info Desk

2019-11-03, 10:11 am

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अग्रणी विश्व संगठन- Intergovernmental Panel on Climate Change

आई.पी.सी.सी. जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभावों, संभावित भविष्य के जोखिमों और संभावित प्रतिक्रिया विकल्पों से संबंधित विज्ञान का आकलन करने के लिए अग्रणी विश्व संगठन है, जिसका मुख्यालय जिनेवा (स्वीटजरलैंड) में है। यह संयुक्त राष्ट्र का आधिकारिक पैनल है जो जलवायु में बदलाव और ग्रीनहाउस गैसों का ध्यान रखता है। इस संस्था को 2007 में शांति नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

लगभग 8 अरब लोगों के जीवन को प्रभावित करने के कारण जलवायु परिवर्तन, पिछले 50 सालों में चर्चा का विषय बन गया है। यह समय के साथ जलवायु में परिवर्तन को दिखाता है, चाहे वो प्राकृतिक परिवर्तनशीलता के कारण हो या मानव गतिविधि के परिणामस्वरूप।

लगभग 200 साल पहले औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई और इसी के साथ शुरू हुआ जीवाश्म ईंधन का बड़े स्तर पर इस्तेमाल जिसकी वजह से धरती के वातावरण में भारी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों ने प्रवेश किया। ग्रीनहाउस गैसें वातावरण की एक ऐसी चादर के रूप में काम करती हैं जो सूर्य की ऊर्जा और ऊष्मा अपने में अवशोषित करती हैं जिससे हमारी धरती लगातार गर्म हो रही है।

वैश्विक औसत तापमान में लगातार वृद्धि के प्रभाव हमारे सामने हैं जैसे- बाढ़, ग्लेशियरों का सिकुड़ना, समुद्र-स्तर का बढ़ना, तूफ़ान, जंगल में आग, वर्षा के स्वरुप में बदलाव, सूखा और अकाल इत्यादि। परिणामस्वरूप, 2010-2019 का दशक रिकॉर्ड में सबसे गर्म दशक के रूप में दर्ज किया गया।

आई.आई.टी. मुम्बई के प्राफेसर डॉ चेतनसिंह सोलंकी के अनुसार 99 प्रतिशत लोग जलवायु परिवर्तन को लेकर कुछ नहीं कर रहे है और 1 प्रतिशत लोग जो कुछ भी कर रहे है वह प्रर्याप्त नहीं है।  

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2021-04-13, 02:08 pm

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विटामिन सी

अनेक प्राणियों के लीवर में विटामिन-सी का संश्लेषण होता है परन्तु मनुष्य के शरीर में गुलोनोलैक्टोन ऑक्सीडेज नामक एंजाइम की अनुपस्थिति के कारण विटामिन सी का संश्लेषण नहीं हो पाता है।  अतः मनुष्यों को विटामिन सी युक्त आहार का प्रतिदिन सेवन करना चाहिए। विटामिन सी खून में घुलकर रक्त की सफाई का कार्य करता है।

सिट्रस फलों में पाया जाने वाला विटामिन सी ऑक्सीजन से ऑक्साइज्ड भी होता है, अतः पेड़ों से फल तोड़ने के बाद यह तय कर पाना मुशकिल होता है कि किस फल में कितना विटामिन सी उपलब्ध है।

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2019-10-31, 12:17 pm

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इकोस्फेयर स्पिति संगठन

हिमाचल प्रदेश की स्पिति घाटी अपने यहां आने वाले पर्यटकों को बौद्ध मठों, विलेज ट्रेकिंग, याक सफारी, विलेज होम स्टे और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शानदार सौगात देती है। यहा के पर्यटन कार्यक्रमों का आयोजन करने वाला इकोस्फेयर स्पिति संगठन यहां के स्थानीय समुदायों के साथ काफी गहराई से जुड़ा है और उनके साथ मिलकर ही सारी व्यवस्था करता है। इससे न केवल पर्यटको को हिमाचल और लद्दाख की एक समन्वित संस्कृति का अनूठा अनुभव होता है, बल्कि स्थानीय समुदायों की आर्थिक समाजिक स्थिति में भी सकारात्मक बदलाव संभव हुआ है।

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2019-10-18, 07:24 pm

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पश्चिम बंगाल का सुंदरबन

सुंदरवन नेशनल पार्क में जानवरों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमे से कुछ किंग क्रेब्स, बाटागुर बास्का, ओलिव रिडले और कछुए हैं। इन जंगलों में विशाल छिपकलियां, जंगली सूअर, चित्तीदार हिरण और मगरमच्छ भी देख सकते हैं। सुंदरबन एनिमल्स सबसे प्रमुख आकर्षण साइबेरियाई बतख हैं। सुंदरवन में पानी में पाए जाने वाले छोटे-छोटे जीवो को फाइटोप्लांकटन कहा जाता है जोकि अंधेरे में चमकता है।

पश्चिम बंगाल में सांपों की आबादी का 93 में से 57 प्रकार की प्रजाति इसी जंगल में पाई जाती हैं।  सुंदरवन नेशनल पार्क में नाव सफारी सरकार द्वारा संचालित की जाती हैं जोकि छोटे और बड़े रूप में उपलब्ध हैं। बोट सफारी को एक दिन या इससे भी लम्बी अवधि के लिए बुक किया जा सकता हैं। यहाँ पर देवा, केवड़ा, तर्मजा, आमलोपी और गोरान वृक्षों की ऐसी प्रजातियाँ हैं, जो सुंदरवन में पाई जाती हैं। यहाँ के वनों की एक खास बात यह है कि यहाँ वही पेड़ पनपते या बच सकते हैं, जो मीठे और खारे पानी के मिश्रण में रह सकते हों।   

Padamshree Research Desk

2019-10-14, 07:45 pm

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भारत की ऊन रोड़

हमारा देश लगभग 6.5 करोड़ भेड़ों की आबादी के साथ विश्व में तीसरे स्थान पर है। इन भेड़ो से लगभग 59 लाख टन ऊन का उत्पादन होता है। इसमें लगभग 5 प्रतिशत ऊन वस्त्र निर्माण, 85 प्रतिशत गलीचा निर्माण व 10 प्रतिशत ऊन कम्बल बनाने योग्य है। 

हमारे देश के लद्दाख क्षेत्र में चांगपा नामक जनजाति के लोगों को पश्मीना शॉल तैयार करने मे महारत हासिल है। पश्मीना ऊन का रेशा बहुत ही महीन और मजबूत होता है। हमारे देश के पंजाब राज्य को तिब्बत से जोड़ने वाले हिन्दुस्तान-तिब्बत मार्ग को ऊन रोड भी कहा जाता है। इस मार्ग पर स्थित कुल्लू, रामपुर एवं किन्नौर ऊनी वस्त्र निर्माण में प्रमुख स्थान रखते हैं। वर्तमान में देश के ऊनी वस्त्र उद्योग मुख्यतः ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैण्ड आदि देशों से आयात की गई ऊन पर ही निर्भर है।

R K Jain

2019-10-18, 02:39 pm

Life is Festival,

Rajasthan, India

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Director

A dream Project of Prime Minister of India

भारत सरकार और बंगला देश सरकार के बीच हुए महत्वपूर्ण करार के कारण नोर्थ-ईस्ट इंडिया अब जल्दी ही अन्तःराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने की तैयारी में है। कोलकता के बंदरगाह से अगरतला तक का सफर लगभग 1500 कि.-मी. है, लेकिन इस करार के कारण भारत बंगलादेश के बंदरगाहों का उपयोग कर सकेगा और यह दूरी अब मात्र 250 कि.मी. रह जायेगी। कोलकता या हल्दीआ बंदरगाह से भारतीय जहाज बंगलादेश के मोंगला और चट्टोग्राम बंदरगाह का उपयोग करते हुए नोर्थ-ईस्ट रीजन के प्रमुख स्थान अगरतला, श्रीमंतपुरा, सुतरकंडी और डाबकी तक बहुत कम समय में पहुंच सकते है।

नोर्थ-ईस्ट रीजन में बांस का उत्पादन बहुत अधिक होता है लेकिन अधिक दूरी तथा ट्रान्सपोर्टेशन लागत अधिक आने के कारण अधिकतर बांस बाहर से आयात किये जाते रहें है। बंगलादेश के साथ हुए इस करार से नोर्थ-ईस्ट रीजन में होने वाले उत्पादों की ट्रान्सपोर्टेशन लागत कम आयेगी तथा अन्तःराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिर्स्पधा करने में सक्ष्म हो सकेगें।

 

ભારત સરકાર અને બાંગ્લાદેશ સરકાર વચ્ચેના મહત્વના કરારને કારણે ઉત્તર-પૂર્વ ભારત હવે ટૂંક સમયમાં આંતરરાષ્ટ્રીય સ્તરે પહોંચવાની તૈયારીમાં છે. કોલકાતા બંદરથી અગરતલા સુધીની સફર લગભગ 1500 કિમી છે. છે, પરંતુ આ કરારને કારણે ભારત બાંગ્લાદેશ બંદરોનો ઉપયોગ કરી શકશે અને આ અંતર હવે માત્ર 250 કિ.મી. રહેશે કોલકાતા અથવા હલ્દિયા બંદરથી ભારતીય જહાજો ઉત્તર-પૂર્વ ક્ષેત્રના મુખ્ય બિંદુઓ, બાંગ્લાદેશના મુંગલા અને ચેટ્ટોગ્રામ બંદરોનો ઉપયોગ કરીને ખૂબ ટૂંકા સમયમાં અગરતલા, શ્રીમંતપુરા, સુતરકંડી અને ડાબકી પહોંચી શકે છે.

ઉત્તર-પૂર્વ ક્ષેત્રમાં વાંસનું ઉત્પાદન ખૂબ વધારે છે, પરંતુ વધુ અંતર અને પરિવહન ખર્ચના કારણે, મોટાભાગના વાંસની આયાત બહારથી કરવામાં આવી રહી છે. બાંગ્લાદેશ સાથેના આ કરારથી ઉત્તર-પૂર્વ ક્ષેત્રના ઉત્પાદનોની પરિવહન ખર્ચમાં ઘટાડો થશે અને તે આંતરરાષ્ટ્રીય સ્તરે સ્પર્ધા કરી શકશે.

Video Courtesy : Ministery of Shipping

 

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2019-10-04, 09:09

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अपने सपनों का आकार बड़ा करें अन्यथा कम्फर्ट जोन से निकलकर ऊॅंची उडान नहीं उड़ पाएगें

कैसर खालिद आई.जी.-पुलिस, मुम्बई से मेरी आवाज सुनों की खास बातचीत 

हर इन्सान का ड्रीम पैसा कमाना नहीं होता है। पैसा जिंदगी की जरूरत हो सकती है लेकिन डेस्टीनेशन नहीं। कुछ लोगों का ड्रीम सोसाइटी को सर्व करना भी होता है। इस सेक्टर में भर्ती होने वाले नये लोगों को यह ध्यान रखना चाहिए कि वे पुलिस सेवा में आ रहें है पुलिस विभाग में नहीं, लोगों की सेवा करने आ रहें है फाइलों का निबटान करने के लिए नहीं। हर इन्सान को सपने देखने चाहिए, सपनों से मंजिल का पता चलता है और मंजिल की चाहत इन्सान से मेहनत करवाती है।

समाज में पुलिस विभाग को जो इज्जत मिलती है, वही इसकी सफलता का मापदंड होता है। जो हमें मिला है उससे बेहतर सिस्टम या वातावरण छोड़कर जाएं, सिविल सर्विस में यह ड्रीम सबका होना चाहिए। इसके लिए हमें कभी भी सीखना बंद नहीं करना चाहिए, जिससे एक विजनरी और मिशनरी ब्यूरोक्रेसी बनी रह सके। पुलिस मेकनिजम की विस्तृत जानकारी के लिए लॉगइन करें       

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2019-09-28, 08:16

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गोल्‍ड पर टैक्‍स

CA Kalpesh Jain, Maharastra

क्‍या हैं गोल्‍ड पर टैक्‍स के नियम

गोल्‍ड को बेचने पर दो तरह के टैक्‍स के नियम काम करते हैं। एक है 3 साल से पहले बेचने पर दूसरा है 3 साल के बाद बेचने पर। अगर किसी ने गोल्‍ड खरीदने के तीन के अंदर बेचा है तो उस शार्ट टर्म कैपिटल गैन टैक्‍स (STCG) लागू होता है। वहीं अगर किसी ने गोल्‍ड को खरीदने के 3 साल बाद बेचा है तो उस पर लॉन्‍ग टर्म कैपिटल गैन टैक्‍स (LTCG) लागू होता है। इन टैक्‍स के अलावा सेस और सरचार्ज भी देना होता है।

कितना होता है यह टैक्‍स

अगर गोल्‍ड बेचने के बाद लॉन्‍ग टर्म कैपिटल गैन टैक्‍स (LTCG) लगता है तो आपको फायदे पर 20 फीसदी की दर से टैक्‍स देना होगा। इस टैक्‍स पर सेस और सरचार्ज भी देना होता है। इसमें बेचने वाला इंडेक्‍सन का फायदा ले सकता है। यह इंडेक्‍स इनकम टैक्‍स विभाग जारी करता है। वहीं अगर गोल्‍ड को तीन साल के अंदर बेचा जाता है, तो शार्ट टर्म कैपिटल गैन (STCG) लागू होता है। इस टैक्‍स की दर आपकी उस साल की इनकम पर तय होता है। यह टैक्‍स भी उसी हिसाब से लगता है।

गिफ्ट में मिले गोल्‍ड पर कैसे लगता है टैक्‍स

देश में गोल्‍ड को गिफ्ट करने का चलन है। छोटे से छोटे समारोह में लोग गोल्‍ड की वस्‍तुएं गिफ्ट करते हैं, वहीं शादी के मौकों पर रिश्‍तेदाराें के अलावा माता पिता भी काफी गोल्‍ड गिफ्ट में बच्‍चों को देते हैं। अगर यह गोल्‍ड बाद में बेचा जाता है तो उनका खरीद का रेट और बेचने के रेट के अंतर को फायदा माना जाता है। इसलिए गोल्‍ड खरीदने के वक्‍त रिकॉर्ड रखना जरूरी होता है। अगर खरीदने का रिकॉर्ड नहीं है तो इसके लिए किसी वैल्‍युअर से इसकी वैल्‍यू की गणना कराई जा सकती है। इसके आधार फायदे की गणना हो सकती है।
 

Padamshree Info Desk

2019-09-26, 04:34

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मुंबई में तैयार हुआ एयरक्राफ्ट कैरियर ड्राइ डॉक

ड्राइ डॉक एक ऐसा प्लैटफॉर्म है जहां एयरक्राफ्ट कैरियर को पानी से बाहर लाकर उसे रिपेयर या रेनोवेट कर सकते हैं। अब तक इस तरह का ड्राइडॉक कोचीन में था और एयरक्राफ्ट कैरियर को हर डेढ़-दो साल में वहां ले जाना होता था। पर अब यह मुंबई में ही हो सकेगा। 

Video Courtesy - Indian Navy

Padamshree Research Desk

2019-09-22, 11:03

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डायमंड इज डायमंड

हीरे में यह गुण पाया गया है कि वह कई सारी किरणों को मिलाकर उनकी शक्ति को एक दिशा विशेष में भेज सकता है।

हीरा प्राकृतिक पदार्थो में सबसे कठोर पदार्थ होता है तथा उष्मा व विद्युत का कुचालक भी होता है। हीरे को यदि ओवन में 763 डिग्री सेल्सियस पर गरम किया जाये, तो यह जलकर कार्बन डाइ-आक्साइड बना लेता है तथा बिल्कूल ही राख नहीं बचती है।  इससे यह प्रमाणित होता है कि हीरा कार्बन का शुद्ध रूप है। हीरा रासायनिक तौर पर बहुत निष्क्रिय होता है एव सभी घोलकों में अघुलनशील होता है।

बहुत अधिक चमक होने के कारण हीरा को जवाहरात के रूप में उपयोग किया जाता है। हीरा उष्मीय किरणों के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील होता है, इसलिए अतिशुद्ध थर्मामीटर बनाने में इसका उपयोग किया जाता है। काले हीरे का उपयोग काँच काटने, दूसरे हीरे के काटने, हीरे पर पालिश करने तथा चट्टानों में छेद करने के लिए किया जाता है।

दुनिया का सबसे बड़ा हीरा कलिनन हीरा  है जो 3106 कैरेट का है। यह अभी ब्रिटेन राजघरानों के शाही संग्रह में शोभायमान है।  अब तक ढूंढ़ा गया दुनिया का सबसे दूसरा बड़ा अपरिष्कृत हीरा 1758 कैरेट का सेवेलो डायमंड  है।

18 वीं शताब्दी में दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील में हीरों की खानों का पता चलने से पहले तक दुनिया भर में भारत की गोलकुंडा खान से निकले हीरों की धाक थी।

हीरे का कारोबार करने वाली अंतरराष्ट्रीय कंपनी डी बियर्स की सहयोगी इकाई डायमंड ट्रेडिंग कंपनी (डीटीसी) के मुताबिक दुनिया के 90 फीसदी हीरों के तराशने का काम भारत में होता है, ऐसे में यहाँ हीरा उद्योग के फलने-फूलने की अपार संभावनाएँ मौजूद हैं।

Padamshree Info Desk

2019-09-16, 08:52

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