Rural & Agriculture

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12-02-2024, 05:53 pm

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शहद के उपयोग

‘मधुमक्खियों द्वारा तैयार शहद में प्रोटीन, विटामिन तथा खनिज होते है। इसका सेवन करने से शरीर को शक्ति व स्फूर्ति मिलती है। मोम, मधुमक्खियों के उदर के नीचे वाले भाग से उत्पन्न होने वाला अत्यंत उपयोगी उत्पाद है। मोम का बड़ा भाग छते के निर्माण में प्रयोग हो जाता है। इसका मूल्य शहद से भी ज्यादा है। यह कमेरी मक्खियों द्वारा तैयार किया जाता है। यह वंश में छते बनाने के काम आता है। इसका प्रयोग चर्म उद्योग, मोमबती बनाने, सौंदर्य प्रसाधन, कलाकृतियों के निर्माण तथा फर्नीचर की उत्तम पॉलिश के रूप में होता है। केवल प्रोपोलिस मैलिफेरा प्रजाति की मधुमक्खियॉ ही इसे एकत्र करती है। इसका उपयोग बक्सों की दीवारों और छिद्र को बंद करने में होता है। सौंदर्य प्रसाधन, पॉलिश, पशु चिकित्सा, त्वचा रोग, श्वास रोग, जलने व कटने के कारण हुए घाव आदि में यह अत्यंत उपयोगी है।

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27-01-2024, 06:37 pm

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नीलगाय (Blue Bull)

हिरण वर्ग का सबसे बडा एवंं शक्तिशाली जानवर हैं। राजस्थान, हरियाणा, उतरप्रदेश, मध्यप्रदेश एवं गुजरात के कई क्षेत्रों में नीलगाय ने आंतक फैला रखा है। अधिकांशतः यह समूह में ही मिलते है। 

पहचान : वास्तव में नीलगाय इस प्राणी के लिए उतना सार्थक नाम नही है क्योंकि इनमें मादाएं भूरे रंग की होती है। नीलापन केवल वयस्क नर में पाया जाता है। नील गाय की मादाओं का रंग भूरा स्लेटी एवं व्यस्क नर का रंग नीला होता है। इनमें आगे के पैर पिछले पैर को तुलना में अधिक लंबे और बलिष्ठ होते हैं, जिससे उनकी पीठ पीछे की तरफ ढलुआं होती है। केवल नरों में छोटे, नुकीले सींग होते है। नीलगाय ऊँचे कद और भारी-भरकम शरीर वाली होती है। वयस्क की औसतन लम्बाई 2 मीटर एवं ऊँंचाई 1.5 मीटर तक होती है। इनका वजन 250 किलो तक होता है। मादाएं नर की तुलना में कुछ छोटी होती है।

फसल हानि : नीलगाय एक शाकाहारी प्राणी है और यह स्वयं को परिस्थितियों के अनुरूप ढाल लेती है। यह सुबह व शाम के समय चराई करते है जबकि दिन के समय में किसी सुरक्षित स्थान पर विश्राम करते है। नीलगाय द्वारा फसलों की चराई और फसलों को रोदने के कारण किसानों को बहुत हानि होती है। वैसे यह सभी फसलों को नुकसान पहुॅचाते है, परन्तु चना, गेहूँ  और, मूॅंग की फसलें इन्हे अधिक प्रिय है। एक अध्ययन के अनुसार नीलगाय से फसलो में न्यूनतम 10 प्रतिशत और अधिकतम 75-80 प्रतिशत तक हानि होती है। इनकी बढती संख्या के कारण यह कृषि फसलों के मुख्य पीडक बन गये हैं। 

प्रबंधन : नीलगाय से कृषि फसलों को सुरक्षित रखने के सामान्य उपाय में फसलो की नियमित निगरानी रखना है। पंजाब व राजस्थान मे सरकार ने किसानों की मांग और इनके आंतक को देखते हुए नीलगाय के शिकार पर प्रतिबंध सम्बन्धी नियम में छुट प्रदान की है। खेतो के चारो और ऊँची बाढ़ लगाकर फसलो को नुकसान से बचाया जा सकता है। प्रशिक्षित कुतो ही सहायता से इन्हे खेत से दूर रखा जा सकता है, क्योकि कुतो के भोंकने पर ये दूर चले जाते है, साथ ही रखवाली करने वाले कृषक भी सतर्क हो जाते हैं। वन विभाग के माध्यम से नीलगाय के समूह को पकड कर वनों में सुरक्षित स्थानो पर स्थानांन्तरित किया जा सकता है।

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11-12-2023, 11:39 am

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कृषि में महत्वपूर्ण दिन

2 फरवरी    -    विश्व आर्द्रभूमि दिवस
3 मार्च     -    विश्व वन्यजीव दिवस
21 मार्च    -    अन्तर्राष्ट्रीय वन दिवस
22 मार्च    -    विश्व जल दिवस
22 अप्रैल    -    पृथ्वी दिवस
26 अप्रैल    -    विश्व बौद्धिक संपदा दिवस
4 मई    -    हरियाली दिवस
22 मई    -    अन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस
1 जून    -    विश्व दुग्ध दिवस
5 जून     -    पर्यावरण दिवस
1 जुलाई    -    राष्ट्रीय कृषि दिवस
10 जुलाई    -    राष्ट्रीय मत्सय पशुपालन दिवस
16 जुलाई    -    आई.सी.ए.आर. स्थापना दिवस
20 अगस्त    -    विश्व शहद दिवस
2 सितंबर    -    विश्व नारियल दिवस
15 अक्टूबर    -    विश्व महिला कृषक दिवस
16 अक्टूबर    -    विश्व खाद्य दिवस
26 नवबंर    -    राष्ट्रीय दुग्ध दिवस
3 दिसबंर    -    कृषि शिक्षा दिवस
5 दिसबंर    -    विश्व मृदा दिवस
23-29 दिसबंर-    जय किसान, जय विज्ञान सप्ताह

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31-10-2023, 06:00 pm

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 कृषि से संबंधित क्रांतियां

 

हरित क्रांति   -        खाद्य अनाज 

पीली क्रांति    -        तिलहन (सरसों व सूरजमुखी)
श्वेत क्रांति      -        दुग्ध व दुग्ध उत्पाद
नीली क्रांति    -        मछली व समुद्री भोजन
गुलाबी क्रांति  -        झींगा, प्याज व दवा
धूसर क्रांति    -        उर्वरक
भूरी क्रांति     -        कोको व चमड़ा
रजत क्रांति    -        अंडा
बैंगनी क्रांति   -        उनी उत्पाद
काली क्रांति   -         कच्चे तेल व गैर पंरपरागत उर्जा
लाल क्रांति    -          मांस व टमाटर
स्वर्णिम क्रांति  -        शहद, जूट, (फल उतपादन)
दौर क्रांति   -           आलू
नारंगी क्रांति    -       नीबूं वर्गीय फल उत्पादन
इंद्रधनुषी क्रांति    -   कृषि, उद्यानिकी, वानिकी, गन्ना, मछली, मुर्गी और पशु पालन के                                              लिए एकीकृत कार्यक्रम 

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13-09-2023, 07:15 pm

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मूंगफली में जस्ते की कमी के लक्षण

मूंगफली में जस्ते की कमी से नई निकलने वाली पत्तियां आकर में छोटी तथा मुड़ी रह जाती हैं। धारियों के मध्य भाग में पहले स्वर्णिम पीला रंग विकसित होता है जो कि बाद में चाकलेट या भूरे रंग के धग्गे का रूप ले लेता है। जिसका आरंभ पत्तियों की नोंक से होता हैं पौधों की वृद्वि रूक जाती हैं। जिंक की कमी के लक्षण देरी से प्रकट होते है।

मृदा परिक्षण के आधार पर 20-50 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर मृदा में अच्छी तरह मिश्र करें। 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट एवं 0.25 प्रतिशत बुझा चुना का पर्णीय छिड़काव करें।   

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08-08-2023, 12:50 pm

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फसलों में लोहे की कमी के लक्षण एवं निवारण

 

लोहा (आयरन) - लोहे की कमी के लक्षण सभी फसलों में एक समान ही दिखाई देते हैं यद्यपि यह तत्व क्लोरोफिल का भाग न होते हुए भी पत्तियों के हरे पदार्थ के निर्माण में अह्म भूमिका निभाता है। इसकी कमी का सबसे पहला लक्षण हरिमाहीनता है जो नई पत्तियों से आरंभ होता है जिसे क्लारोसिस कहते है। पत्तियों की षिरायें तथा नोंक अपेक्षाकृत हरी ही रहती है। जबकि पत्ती का शेष भाग पीला सफेद पड़ जाता हैं, प्रकाष संष्लेषण की दर कम हो जाती हैं। अधिक कमी की अवस्था में पत्तियां सफेद पड़ जाती हैं और पौधों की वृद्धि रूक जाती हैं। पौधे छोटे और कमजोर हो जाते हैं। बीज और फल निर्माण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 

लोहे की पूर्ति - खेत में समय-समय पर हरी खाद का उपयोग करने लोहे की कमी की संभावना काफी कम हो जाती है। धान में यदि लोहे की कमी के लक्षण दिखाई देते हैं तो इस बात का विषेष ध्यान दें कि खेत में पानी की कमी न रहने पाये। 
मृदा में उपयोग- मृदा परिक्षण के आधार पर प्रति हेक्टेयर 10-30 किग्रा. फेरस सल्फेट का बीजाई के समय उपयोग करना चाहिए। 

पर्णीय छिड़काव - 4 किलो फेरस सल्फेट एवं 2 किलो बुझे चूने को अलग-अलग बर्तनों में 5-5 लीटर पानी में अच्छी तरह से घोल लंें। फिर इस घोल को कपड़े से छानकर 390 लीटर पानी में मिलाकर 7-7 दिन के अंतर पर कम से कम दो छिड़ाकाव करें। अत्यधिक कमी होने पर 3-4 छिड़ाकाव करना पड़ सकता है। इस छिड़काव का उपयोग मृदा में भी किया जा सकता है।

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18-07-2023, 04:39 pm

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बिच्छू घास/ बिच्छू बूटी/ कंडाली (Stinging nettle)

हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों में यह बूटी बहुतायात से पायी जाती है जिसके अनेकानेक औषधीय उपयोग है। इसका वैज्ञानिक नाम यूरटिका डायोका (Utrica Dioica) है। आचार, सब्जी, चाय, सलाद सूप आदि के रूप में इसका उपयोग किया है। इसके तने व पतियों पर छोटे-छोटे सूई जैसे अनेक कांटें होते है, अतः पशु इसे खा नहीं सकते है। इस बूटी वही फॉर्मिक अम्ल पाया जाता है जो लाल चींटी, जूओं, शहद की मक्खी, बिच्छू व बर्रो में पाया जाता है, अतः इसे छूने पर काफी दर्द या झनझनाहट होती है और बदन में खुजली होने लगती है। आपकी त्वचा पर छोटे-छोटे दाने भी निकल सकते है। यह दर्द कभी आधे घंटे तक तो कभी घंटों तक परेशान कर सकता है। ऐसी परिस्थितियों में बिच्छू बूटी के पास ही उगने वाले चिल्मोडा के पौधे की पतियों को रगडने पर दर्द से काफी राहत मिलती है।

स्वीटजरलैंड से प्रकाशित एक शोध पत्रिका स्प्रिंगर नेचर में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार बिच्छू बूटी में 110 तरह के योगिकों की स्क्रीनिंग की गई है जिसमें से 23 योगिक ऐसे पाये गये है जो हमारे फेफडों में पाये जाने वाले एसीड-2 रिसेप्टर से आबद्ध हो सकते है तथा अनेक प्रकार के वायरल सक्रंमण को रोक सकते है। इसके प्रयोग से हदय की धमनियों से संबंधित एक समस्या जिसे एथेरोस्क्लोरोटिक कहते है, बचा जा सकता है। इस बूटी में हेपटोप्रोटेक्टिव असर होने के कारण लिवर संबंधी समस्याओं से बचाव हो सकता है। ऐसे भी शोध परिणाम सामने आ रहें है कि इस बूटी के उपयोग से प्रोस्टेट ग्रंथी को जरूरत से ज्यादा बढने या इससे संबंधित अन्य समस्याओं को रोका जा सकता है। लो ब्लड प्रेसर वाले व्यक्ति डॉक्टर से सलाह करके इसका सेवन करें। बिच्छू बूटी में मौजूद एंटी-अस्थमैटिक और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण दमा की परेशानी से भी राहत दिला सकते हैं। बिच्छू बूटी में पाया जाने वाला हाइड्रोअल्कोहलिक एक्सट्रैक्ट घावों को भरने में मददगार साबित हो सकता है। साथ ही इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी व एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं, जो घावों को भरने में लाभकारी साबित हो सकते हैं । इतना ही नहीं यह जलने के घाव से भी राहत दिला सकता है। यह वनस्पति बहुत ही गर्म तासीर की होती है, इसलिए इसका अधिकतर उपयोग सर्दी में होता है।     

बिच्छू घास की सब्जी - पतियों के समूह को तनों से अलग करके इन पतियों को टहनी समेत हल्की आग में गर्म किया जाता है जिससे नुकिले कांटें खत्म हो जाते है। अब एक कडाही में पानी को उबालकर इसमें एक चम्मच नमक डालते है और इसके बाद बिच्छू घास भी डाल देते है। बिच्छू घास को अच्छी तरह से पकने में आधा घंटा लग जाता है। पकने के बाद बिच्छू घास में थोड़ा पालक मिला दिया जाता है जिससे बिच्छू घास की सब्जी मुलायम हो जाती है। अब एक दूसरी कडाही में थोड़ा तेल लेकर इसमें सब्जी के मसाले व प्याज, टमाटर आदि डालकर भून लेते है। अब इसमें उबाली हुई बिच्छू घास डालकर थोडा उबला हुआ पानी भी मिला देना चाहिए। कुछ ही देर बिच्छु घास की लिक्विड सब्जी तैयार हो जाती है। इस पौधे की पतियों व उपर की टहनियों का उपयोग सब्जी बनाने में किया जाता है।   

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14-06-2023, 10:09 am

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चावल और मछली की एकीकृत खेती

धान के खेत में चावल और मछली की खेती के लिए जगह का चुनाव बेहद अहम भूमिका निभाता है। करीब 70 से 80 सेमी की बारिश की जरूरत होती है जो इस तरह की एकीकृत व्यवस्था के लिए आदर्श है। चावल और मछली की खेती में उच्च पानी की वहन क्षमता और एक समान क्षेत्र वाली मिट्टी को प्रमुखता दी जाती है। जगह का चुनाव बाढ़ प्रभावित इलाके से हटकर होना चाहिए नहीं तो यहां की मछलियां निकल कर भाग सकती है। 

मछली की ऐसी प्रजातियां जो 14 सेमी से भी कम पानी में रह सके और 38 डिग्री सेंटीग्रेड तक के तापमान को बर्दाश्त कर सकें, उसका चुनाव करना चाहिए। मछलियों की ऐसी प्रजातियों का चुनाव का चुनाव करना चाहिए जो ऑक्सीजन की कम घुली हुई मात्रा और गंदलापन को बर्दाश्त सके, जैसे- सामन्य कार्प या मृगल, कातला, तिलापिया, रोहू, कैटफिश आदि। इसके अलावा झींगा पालन भी धान के खेत में किया जा सकता है। पानी की गहराई, धान की खेती की अवधि और चावल की प्रजाति के चयन में अहम भूमिका निभाता है। मछली की निम्नलिखित प्रजाति धान की खेती के साथ पैदा की जा सकती है।

चावल-मछली की खेती में दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि खेत का पानी विषैले तत्वों (कीटनाशक पदार्थ) से दूर रहना चाहिए। गोबर जैसे अच्छी तरह से घुला हुआ फार्म यार्ड खाद या दूसरा कोई जैविक कम्पोस्ट को प्रति हैक्टेयर 25 टन डालने की सलाह दी जाती है। एकीकृत व्यवस्था में गहरे पानी में धान को ज्यादा पोषक तत्व, अजैविक उर्वरक के तौर पर प्रति हेक्टेयर 50 किलो नाइट्रोजन और पोटेशियम डालने की सलाह दी जाती है। इन उर्वरकों को अलग अलग चरणों जैसे कि पौधारोपण, जुताई और फूल आने के वक्त इस्तेमाल करना चाहिए। कीटनाशक, कृमिनाशक या रसायन के इस्तेमाल से बचना चाहिए।

मछली की खेती को दो तरीकें से किया जा सकता है। पहला, संयुक्त या एक साथ और दुसरी चक्रीय खेती। संयुक्त खेती में धान और मछली का उत्पादन एकसाथ किया जाता है जबकि चक्रीय खेती में मछली और चावल का उत्पादन अलग अलग तरीके से यानी एक के बाद दूसरे का उत्पादन किया जाता है। संयुक्त खेती की मौजुदा व्यवस्था के मुकाबले चक्रीय खेती ज्यादा फायदेमेंद है।

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07-03-2023, 10:01 am

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खेत में फसल अवशेष प्रबंधन -

फसल की कटाई के बाद खेत में बचे अवशेष घास फूस, पत्तियां व ठूंठ आदि को सड़ाने के लिये प्रति हेक्टेयर 20-25 किग्रा नाइट्रोजन छिड़क कर कल्टीवेटर या रोटावेटर से मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। इस प्रकार फसल के अवशेष खेत में ही सड़ना शुरू हो जाएगें और लगभग 1 माह में सड़कर आगे बोई जाने वाली फसल को पोषक तत्व प्रदान कर देंगे क्योंकि कटाई के बाद दी गई नाइट्रोजन अवशेषों मे सड़न की क्रिया को तेज कर देती है।  

अगर फसल के अवशेष खेत में ऐसे ही पड़े रहे तो नई फसल की बिजाई करने के बाद जब छोटे-छोटे पौधे उगते है तो वे पीले पड़ने लग जाते है क्योंकि उस समय पुरानी फसल के अवशेषों के सड़ने से मृदा में उपस्थ्ति जीवाणु भूमि की नाइट्रोजन का उपयोग कर लेते है और प्रारंभ में फसल पीली पड़ जाती है। इसलिए पुरानी फसल के अवशेषों का नई फसल की बीजाई से पहले ही प्रबंध करना जरूरी है।

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11-02-2023, 11:17 am

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आलू में जस्ते की कमी के लक्ष्ण एवं निवारण

आलू में जस्ते की कमी से पौधों में धूसर भूरे रंग के कांसे के समान अनियमित धब्बे दिखाई पड़ते हैं जो प्रायः पत्तियों की निचली सतह पर होते हैं। अधिक कमी होने पर पौधे पीले पड़ जाते है और उनकी पत्तियों की षिराओं का रंग गहरा हरा हो जाता है।

कमी दूर करने के उपाय : जस्ते के विभिन्न स्त्रोतों में से जिंक सल्फेट ही सबसे अधिक असरदार तथा सस्ता स्त्रोत है। साथ ही यह उर्वरक श्रेणी उर्वरक अधिनियम में आता है, जिसके कारण इसकी शुद्धता पर शासन की कड़ी नजर रहती है। जस्ते की कमी को दूर करने के लिए 25 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से सिफारिष की जाती है। पूरी की पूरी मात्रा खेत में बुवाई या रोपाई के समय एक साथ खेत में बिखेर देनी चाहिए।

पर्णीय छिड़काव : फसल में जस्ते की कमी के लक्षण काफी देर बाद दिखाई देते हैं। इसके लिए दो किलो जिंक सल्फेट एवं एक किलो बुझा चूना दो-दो लीटर पानी में अलग-अलग बर्तनों में घोल लेना चाहिए। फिर इसे पतले कपड़े से छानकर 396 लीटर पानी मं मिला लें। जिंक का घोल छिड़काव के लिए उपयुक्त है या नहीं इसकी जांच के लिए लोहे की कील को घोल में थोड़ी देर के लिए डाले यदि जंग लग जाये तो चूने का घोल थोड़ा और मिलाएं और जंग न लगे तो घोल को छिड़काव के लिए उपयुक्त समझना चाहिए। चुने के स्थान पर 5 किलो यूरिया भी प्रयोग किया जा सकता है। यह घोल एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होगा। 15-15 दिनों के अंतराल पर दो छिड़काव करें। 

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29-01-2023, 12:14 pm

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पौधों का सहजीवि माइकोराइजा

माइकोराइजा - यह एक सूक्षम फंफूद है जो साक्षात अन्नपूर्णां है। यह जड़ों को चारों तरफ से लपेट लेता है और अपने हाथ फैलाकर भूमि में जहां जो भी तत्व उपलब्ध है उन तत्वों को गाहय रूप में पौधों की आवश्यकतानुसार उपलब्ध करवाता है। खेतों में माइकोराइजा की उपस्थिती के कारण जड़ों को समस्त पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है और जड़ों का चहुंमुखी विकास होता है। सूखे की स्थिती में माइकोराइजा पौधे के जल के ग्रहण करने की दर को बढ़ाकर पौधों सूखे की परिस्थिती में प्रतिरोधी बनाता है। इसे कवकमूल भी कहते है जो पौधों की जड़ो पर परजीवि के रूप में नहीं रहकर सहजीवि के रूप में रहता है। माइकोराइजा लवणता व हानिकारक रोगाणुओं से पौधों में प्रतिरोधी शक्ति प्रदान करता है और मृदा के कटाव को भी रोकता है।

खेतों में देशी गाय के गोबर का निरंतर उपयोग करने से माइकोराइजा की संख्या बढ़ती रहती है लेकिन रसायनों का उपयोग करने से इनकी संख्या कम हो जाती है।  

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13-11-2022, 06:57 pm

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इंजीनियरिंग परागण

वैज्ञानिक के अनुसार, मधुमक्खियों की घटती संख्या केवल इसलिए चिंता का विषय नहीं है कि इससे पारिस्थितिकी तंत्रों को नुकसान पहुंचेगा बल्कि इसलिए भी क्योंकि यह कृषि और आर्थिकी को भी क्षति पहुंचाएगा। इसका भी डर है कि घटती मधुमक्खियों की संख्या के कारण फसलों परागण कम होने के कारण कुछ फसलें दुर्लभ भी हो सकती है। मधुमक्खियों द्वारा घटते परागण की घटनाओं ने विशेषज्ञों को परागण के अन्य उपायों को ढूंढने के लिए प्रेरित किया है।

इस दिशा में अच्छी खबर यह है कि जापानी वैज्ञानिकों के एक दल ने जैव-प्रेरित सुदुर नियंत्रित एक मिनी ड्रोन के विकास में सफलता हासिल की है जो एक दक्ष परागण के कार्य को अंजाम दे सकता है। हालांकि यह भी सच है कि फसलों में प्राकृतिक परागण का मुकाबला इंजीनियरिंग परागण नहीं कर सकता।

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18-10-2022, 11:28 am

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धान में जस्ता (जिंक) की कमी के लक्षण

यह एक सूक्ष्म पोषक तत्व है, जिसकी पौधों को भले ही कम मात्रा में आवश्यकता होती है किन्तु पौधों की वृद्वि और विकास के लिए यह उतना ही आवश्यक है जितने मुख्य तत्व। धान की कमी से पौधें में निम्न लक्षण दिखाइ देते हैं :

धान के पौधे की तीसरी-चौथी पत्ती के पटल के मध्य में हल्के पीले या भुरे रंग के रतुआ जैसे धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में बड़े और गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं, जिसको खैरा रोग के नाम से जाना जाता है। पुरानी पत्तियों के किनारे सूखने लगते हैं, कभी-कभी पुरानी पत्तियों का रंग लगभग पीला पड़ जाता है या पत्तियां रंगविहीन हो जाती है और छोटी रह जाती हैं। पौधे झाड़ीनुमा दिखई देते हैं, बढ़वार रूक जाती है, फसल में कल्ले कम फूटते हैं, बालों का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है, न ही दाने अच्छी तरह बन पाते हैं, फसल काफी देर से पकती है। जिंक की कमी को दूर करने के लिए निम्न उपचार करने चाहिए-

मृदा उपचार के लिए : मृदा परिक्षण के आधार पर प्रति हेक्टेयर 20-50 किग्रा. जिंक सल्फेट का उपयोग करें।

पर्णीय छिड़काव के लिए : 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट का 0.25 प्रतिशत बुझे चुने के साथ पर्णीय छिड़काव करें।  

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29-09-2022, 03:37 pm

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जैविक कार्बन एवं रासायनिक उर्वरक 

मृदा में जैविक कार्बन की उपस्थिती खेत के उपजाऊ होने का एक महत्वपूर्ण पैमाना है। जिन मृदाओं में जैविक कार्बन 0.75 प्रतिशत होता है वे मृदाएं अधिक उपजाऊ मानी जाती है। जब ट्रेक्टर या हल से जुताई करते हैं और मृदा की लाइनों का निशान वैसा का वैसा बना रहता है तो समझ लेना चाहिए कि इस मृदा में जैविक कार्बन की कमी है। लेकिन जब ट्रेक्टर या हल से जुताई करने पर मृदा की लाइनें थोड़ी-थोड़ी ढकती चली जाए तो समझ लेना चाहिए कि इस मृदा में जैविक कार्बन की स्थिती अच्छी है। खेतों में जैविक कार्बन की निर्मिति में देशी गाय के गोबर का योगदान सबसे अधिक होता है।

आज का युग फसलों में रासायनिक उर्वरक देने का युग है। रासायनिक उर्वरक के बिना खेती की कल्पना भी नहीं की जा रही है। यहां हमें यह बात अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि खेत में रासायनिक उर्वरक तभी काम कर सकते है जब उन्हें जैविक कार्बन का सहयोग मिलता है। जिस दिन मृदा में जैविक कार्बन खत्म हो जाएंगें, उस दिन रासायनिक उर्वरक भी काम नहीं कर पाएंगें।      

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28-08-2022, 05:35 pm

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खेतों में रात को बल्ब जलाने का महत्व

अक्सर कृषि वैज्ञानिक खेतों में रात 8 से 11 बजे तक बल्ब जलाने की सिफारिश करते है। इसका कारण है कि फसलों को हानि पहुॅंचाने वाले अधिकतर कीट इसी समय बाहर आते है। बल्ब की रोशनी में ये हानिकारक कीट उचित प्रकार से सक्रिय नहीं हो पाते है। 0.1 लक्स के प्रकाश (चन्द्रमा के प्रकाश जितनी रोशनी) में भी मादा कीट को अंडे देने में कठिनाई होती है। अनुसंधान बताते है कि ज्यादातर मादा कीट अमावस्या के समय में ही अंडे देती है। रात को 11 बजे के बाद बल्ब बुझा देना चाहिए क्योंकी 11 बजे के बाद फसलों के मित्र कीट बाहर आते है। 

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23-05-2022, 12:49 pm

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बोरॉन की मात्रा के अनुसार सिंचाई जल का वर्गीकरण

बी. 1 - इस तरह के जल में बोरॉन की मात्रा 3 पी.पी.एम. से कम होती है। यह सभी प्रकार की मृदाओं के लिए सामान्य सिंचाई के लिए उपयुक्त जल है। 

बी. 2 - इस तरह के जल में बोरॉन की मात्रा 3-4 पी.पी.एम. होती है। इसे अल्पतर बोरॉन सिंचाई जल माना जाता है जो चिकनी क्ले और मध्यम संरचना वाली मृदाओं के लिए उपयुक्त होता है।

बी. 3 - इस तरह के जल में बोरॉन की मात्रा 4-5 पी.पी.एम. होती है। इसे मध्यम बोरॉन सिंचाई जल माना जाता है जिसका उपयोग भारी मृदाओं में किया जा सकता है। 

बी. 4 - इस तरह के जल में बोरॉन की मात्रा 5-10 पी.पी.एम. होती है। इसे बोरॉन पानी माना जाता है जिसका उपयोग भारी मृदाओं में कुछ सावधानियों के साथ किया जा सकता है।

बी. 5 - इस तरह के जल में बोरॉन की मात्रा 10 पी.पी.एम. से अधिक होती है। इसे उच्च बोरॉन पानी माना जाता है और यह सिंचाई के लिए बिल्कूल भी उपयुक्त नहीं है।

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07-05-2022, 03:02 pm

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मई 2022 के प्रमुख कृषि कार्य

कपास की संकर किस्मों की बुवाई करें व सिफारिश अनुसार उर्वरक देवें।

ग्रीष्मकालीन जुताई करें जिससे मिट्टी में पाए जाने वाले हानिकारक कीट, रोगाणु व सूत्र कृमी तेज धुप से नष्ट हो जाये।

पपीते, हजारा व गेलार्डिया की नर्सरी तैयार करें। उन्नत किस्मों का प्रयोग करें।

ग्रीष्मकालीन सब्जियों एवं छोटे फलदार पौधों की सिंचाई पर विशेष ध्यान देवे।
इस माह में बेर की फसल में कटाई-छटाई कर देनी चाहिए। इसमें 20 कलिका रखकर गत वर्ष की द्वितीयक शाखाओं को काट दें।

जायद कुल की कददूवर्गीय सब्जियों में फूल एवं फल गिरने की समस्या होने पर इन्हें नियमित एवं हल्की सिंचाई करें तथा वृद्धी नियामक प्लेनोफिक्स का 0.25 मिली प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें।

फूलगोभी की अगेती किस्मों जैसे अर्ली पटना या अर्ली कुवारी की नर्सरी में बुवाई करें। इसके लिए 600-750 ग्राम बीज प्रति हैक्टेर पर्याप्त हैं।

मूली की पूसा चेतकी, प्याज की ऐन 53 की बुवाई 12 किग्रा प्रति हैक्टर की दर से करें।

धान की नर्सरी लगाने के लिये खेत तैयार करें।

नये फलोद्यान के लिए खेत की तैयारी इस माह में प्रारम्भ कर देवें। फलदार पौधों की आवश्यकतानुसार सिंचाई करें तथा लू से बचाये।

पशुओं में नांद (मेन्जर) आवश्यक रूप से बनायें।

संकर नस्ल के पशुओं को चिचड़ी से बचाने के लिए उन्हें ब्लुटोक्स का घोल बनाकर पिलाये। छोटी उम्र के बच्चों को पेट के कीड़े मारने की दवा देते रहें।

पानी की कुण्डी साफ रखें। पशुओं को दिन में 4 बार एवं रात्रि में पानी पिलाने का इंतजाम करें।

इन महीनों में अधिक तापक्रम होने की सम्भावना रहती है अतः पशुओं में जल व लवण की कमी, भूख कम होना एवं कम उत्पादन अधिक तापक्रम के प्रमुख प्रभाव है अतः पशुओं को अत्यधिक धूप एवं लू से बचाने के उपाय करें तथा छाया में बाँधें।

सौर ऊर्जा के उपयोग हेतु सौर वृक्ष लगायें एवं सोलर वाटर पम्प लगायें।

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10-03-2022, 01:05 pm

Krishi Paridrishya,

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फसलों में उथली जड़ों की गहराई व सिंचाई

फसलों में उथली जड़ों की गहराई (30-45 से.मी.) : क्रुसिफर्स (बंद गोभी, फूल गोभी), अजवाइन, प्याज, अनानास, आलू, पालक, चुकन्दर, गाजर, ककड़ी आदि। 
 

उथली जड़ों वाली फसलों में कितनी गहराई तक सिंचाई करें :

बलुई मृदा : 15 मि.मी. अनुमानित

दोमट मृदा : 20 मि.मी. अनुमानित

चिकनी मृदा : 30 मि.मी. अनुमानित

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23-12-2021, 06:31 pm

Krishi Paridrishya,

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कृषि में इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT) टेक्नोलोजी का प्रयोग-समय की मांग

इंटरनेट ऑफ थिंग्स अत्याधुनिक सेंसर तकनीकों को पांरपरिक उद्योगों से जोड़ता है तथा कृषि से लेकर जल उपचार व सिंचाई तक में बहुत ही सहायक है। हमारे देश के किसान बहुत की कठिन श्रम करने के लिये मजबूर है लेकिन हम यह कह सकते है इंटरनेट ऑफ थिंग्स टेक्नोलॉजी के कारण अल्लाहदीन का चिराग किसानों के हाथ लग गया है। सरकार की सहायता से यदि इस टेक्नोलॉजी का विस्तार खेतों तक होता है तो हमारे अन्नदाताओं की कायापलट हो सकती है, जैसे ड्रोन से बीजाई करना,  कीटनाशको का छिड़काव करना व क्रॉप मॉनिटरिंग आदि कार्यो के लिये किसान को पूरे खेत में घूमने की आवश्यकता नहीं पड़ती। पूरे खेत में सिंचाई करनी हो तो किसान एक जगह बैठे-बैठे अपने स्मार्ट फोन या रिमोट कंट्रोल की सहायता से कर सकता है।
किसान अपने खेत में सेंसर लगाकर मिट्टी में नमी व पोषक तत्वों की स्थिती के बारे में अपने मोबाइल फोन पर जान सकते है। सेंसर की सहायता से खेत में कितनी नमी है, जाना जा सकता है। यदि पानी निश्चित सीमा से कम है तो यह सेंसर अपने आप पंप चलाकर पानी की आपूर्ति कर देगा और जैसे ही पानी निश्चित सीमा तक पहुंच जाएगा, यह सेंसर अपने आप पंप को बंद भी कर देगा। 
 

Dr. S R Maloo

02-12-2021, 12:27 pm

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Professor of Genetic and Plant Breeding

सुपर फूड- ब्रोकली

गोभी जैसे आकार का दिखने वाली स‍ब्‍जी ब्रोकली सुपर फूड कैटेगरी है| एक कप ब्रोकली खाने पर शरीर को दिन भर की जरूरत जितना कैल्शियम, फाइबर, पोटैशियम, विटामिन सी, विटामिन के, विटामिन ए, रिबोफ्लेविन, फॉलेट, विटामिन ई, विटामिन बी6 की आपूर्ति हो सकती है| इसके अलावा यह कैंसर, कोलेस्‍ट्रॉल, बोन की बीमारियों, इम्‍यूनिटी, वेट गेन जैसी समस्‍याओं को दूर रखने में काफी मदद करता है| इसे सलाद के रूप में भाप में पकाकर व बेक कर खाया जा सकता है |

Dr. S R Maloo

02-12-2021, 12:24 pm

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नीमास्त्र : एक जैविक किटनाशक

नीमास्त्र नीम से बनाया गया एक जैविक कीटनाशक है जिसे रस चूसने वाले कीट एवं छोटी सूंडी / इल्ली के नियंत्रण हेतु उपयोग में लिया जाता है।

आवश्यक सामग्री (एक एकड़ के लिए)   :-

  1. देशी गाय का गौमूत्र – 5 लीटर
  2. नीम के हरे पत्ते – 5 किलोग्राम
  3. नीम के फल – 5 किलोग्राम
  4. पानी – 100 लीटर
  5. देशी गाय का गोबर – 1 किलोग्राम

नीमास्त्र का प्रयोग कैसे करें :-

सर्वप्रथम प्लास्टिक के बर्तन में 5 किलोग्राम नीम की पत्तियों की चटनी डालें।

5 किलोग्राम नीम के फल (पीस व कूट कर) लें ।

5 लीटर गौमूत्र व 1 किलो देशी गाय का गोबर डालें ।

48 घंटे के लिए ढककर रख दे एवं दिन में तीन बार इसे हिलाए ।

48 घंटे के बाद इस मिश्रण को कपड़े से छान ले और फसल पर छिड़काव करें ।

नीमास्त्र का छिड़काव कैसे करें :-

तैयार नीमास्त्र को 100 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करें ।

इसका उपयोग छः माह तक किया जा सकता हैं ।

Dr. S R Maloo

02-12-2021, 12:22 pm

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सोलर रूफटॉप सब्सिडी योजना (Solar Rooftop Subsidy Yojana)

सोलर रूफटॉप सब्सिडी योजना देश में सौर ऊर्जा ( Solar Energy ) के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार की एक पहल है। केंद्र सरकार सोलर रूफटॉप योजना ( Solar Rooftop Yojana ) के माध्यम से देश में अक्षय ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित करती है, उपभोक्ताओं को सोलर पैनल ( Solar Panel ) इंस्टॉलेशन पर सब्सिडी प्रदान करती है।

अपने घर, कार्यालय व कारखाने की छत पर सोलर पैनल ( Solar Panel ) लगाकर बिजली की लागत को 30 से 50 प्रतिशत तक कम कर सकते हैं । सोलर रूफटॉप से ​​25 साल तक बिजली मिलेगी और इस  सोलर रूफटॉप योजना को लगाने का खर्च 5-6 साल में चुकाया जा सकता है ।

1kw सौर ऊर्जा ( Solar Energy ) के लिए 10 वर्ग मीटर जगह की आवश्यकता होती है। 3 किलोवाट तक के सोलर रूफटॉप प्लांट पर 40 प्रतिशत और 3 किलोवाट के बाद 10 किलोवाट तक 20 प्रतिशत की सब्सिडी केंद्र सरकार द्वारा दी जाएगी।

Dr. S R Maloo

02-12-2021, 12:19 pm

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दिसम्बर माह  के प्रमुख कृषि कार्य

गेहूँ की पिछेती किस्में राज. 3765, राज. 3777, एच. आई 8498, लोक-1, राज. 4238 की बुवाई इस माह के प्रथम पखवाड़े तक करें। गेहूँ की बीज दर 25% बढा देवें।

गेहूँ में खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के 30-35 दिन बाद 500 ग्राम 2-4 डी. एस्टर या एस्टर  या 750 ग्राम 2-4 डी. अमाइन साल्ट सक्रीय तत्व निंदानाशी रसायन प्रति हैक्टर की दर से 500-700 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

सरसों में मोयला कीट नियंत्रण हेतु डाईमिथोएट 875 मिलीलीटर प्रति हैक्टर का छिड़काव करें।

मटर में पहली सिंचाई 4-5 सप्ताह बाद 12-15 दिन के अन्तराल से करें व निराई-गुड़ाई करें। इसमें फली छेदक लट का प्रकोप दिखने पर एसीफेट 75 एस.पी. 1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें।

बैंगन की पौध को छोटी पत्ती रोग से बचाने के लिये इसकी जड़ों को टेट्रासाइक्लिन 100 मि. ग्रा. एक लीटर पानी के घोल में 15 मिनट डुबोकर पौध की रोपाई करें।

पत्ता गोभी एवं फूल गोभी में आरा मक्खी, पत्ती भक्षक लटे, दीमक एवं गोभी की तितली का प्रकोप दिखने पर मैलाथियॅान 50 एस.सी. एक मिली प्रति लीटर पानी की दर से छिडकाव करें।

अंगूर के नए गड्ढो की भराई करे तथा प्रत्येक गड्ढे में 10 किलो कम्पोस्ट, 100 ग्राम डी.ए.पी. और 75 ग्राम सल्फेट ऑफ़ पोटाश डालें तथा उस पर धरातल से 30-40 मी. पोलीथिन चढ़ा दें।

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22-11-2021, 12:52 pm

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सोजत की मेंहदी को जी.आई. टैग मिलने से राजस्थान गर्वान्वित हुआ

राजस्थान में पाली जिले का सोजत कस्बा मेंहदी उत्पादन के लिये पूरे देश में विख्यात है। केवल राजस्थान में ही नहीं बल्कि देश-विदेश में भी महिलाओं द्वारा मेंहदी रचाना सांस्कृतिक पहलु माना जाता है। वहीं दूसरी ओर मेंहदी उगाना और उसका व्यवसाय करना सोजत का कृषि व औद्योगिक पहलु बन गया है। सोजत की मेंहदी को बेहद राचणी मेंहदी माना जाता है। यहां की मेंहदी में लोसन कंटेंट दुनिया के अन्य जगहों के मेंहदी उत्पाद से सर्वाधिक है। इसी गुणवता के चलते जियोग्राफिक्ल इंडिकेशन ऑफ गुडस, रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत सोजत की मेंहदी को जी.आई टैग मिला है, जिसमें जिला उद्योग संघ व जिला प्रसाशन ने महती भूमिका निभाई है। राजस्थान का यह 16 वां उत्पाद है जिसे जी.आई. टैग मिला है।

जी.आई टैग मिलने से सोजत की मेंहदी का ब्रांड और मजबूत हो जाएगा तथा किसानों को फसल का बेहतर मूल्य मिल सकेगा। सोजत सहित आस-पास के क्षेत्र में करीब 40 हेक्टेयर क्षेत्र में मेंहदी की खेती की जाती है। इस क्षेत्र में करीब 10 हजार किसान व श्रमिक मेंहदी की खेती करते है। देखा जाए तो इस अंचल की खुशहाली ही मेंहदी उत्पादन पर निर्भर है। सोजत क्षेत्र में प्रतिवर्ष 250 सूक्ष्म व लघु उद्योगों द्वारा लगभग 35 हजार टन मेंहदी पावडर का उत्पादन होता है। सोजत की मेंहदी का स्वदेशी उपयोग व निर्यात का कारोबार लगभग 1 हजार करोड रूपये होने का अनुमान है।  

Dr. S R Maloo

10-11-2021, 04:17 pm

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छत पर गमलों या ग्रो बैग में इस मौसम में कैसे उगाएं सेहतमंद ब्रोकली ?

बहुत से लोग इन दिनों ब्रोकली को अपने खान-पान में शामिल कर रहे हैं क्योंकि इसे स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है। बाजार में ब्रोकली की बढ़ती मांग के कारण कई किसान भी इसकी खेती कर रहे हैं। कैबेज फैमिली से संबंध रखने वाली ब्रोकली फाइबर, मिनरल्स और एंटीऑक्सीडेंट्स का अच्छा स्रोत है। इसलिए आप इसे कई तरह से अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं। इसे आप सूप, सलाद और सब्जी की तरह खाने में इस्तेमाल कर सकते हैं। 

सबसे अच्छी बात यह है कि आप ब्रोकली को घर में ही उगा सकते हैं, वह भी जैविक तरीकों से। वह अपने परिवार के लिए सभी मौसमी सब्जियां उगाते हैं। जब तापमान कम होने लगे मतलब कि 15 से 30 डिग्री के बीच हो तो आप अपने बगीचे में ब्रोकली लगा सकते हैं। यह ज्यादातर सर्दियों के मौसम में उगायी और खायी जाती है। 

 बीजों के अलावा, पौध तैयार करने के लिए आपको छोटे साइज का छह इंच का गमला चाहिए। एक छोटे गमले के अलावा, आपको अन्य सभी बड़े गमले (10 से 12 इंच के) लेने होंगे। एक गमले में एक ही ब्रोकली का पौधा आप लगा सकते हैं। इसलिए जितने पौधे आप लगाना चाहते हैं, उतने ही गमले ले लें। पॉटिंग मिक्स तैयार करने के लिए आप कोकोपीट, रेत, खाद, वर्मीकंपोस्ट और मिट्टी की जरूरत होगी। 

इस तरह से करें पौधे तैयार 

सबसे पहले 50% कोकोपीट में 25% रेत और 25% वर्मीकम्पोस्ट मिला लें। 

इस पॉटिंग मिक्स को छोटे गमले में भरें। 

इस गमले में ड्रेनेज सिस्टम अच्छा होना चाहिए ताकि पानी गमले में ठहरे नहीं। 

गमले में पॉटिंग मिक्स भरने के बाद, इसमें पानी डालें ताकि यह गीला हो जाए। 

अब इस गमले में बराबर दूरी पर ब्रोकली के कुछ बीज लगा दें और ऊपर से एक परत पॉटिंग मिक्स की डालें। 

अब ऊपर से स्प्रेयर से पानी दें। 

लगभग एक हफ्ते में बीज अंकुरित हो जायेंगे और पौधे बढ़ने लगेंगे। नियमित रूप से पौधों की देखभाल करते रहें और पानी जरूरत के हिसाब से ही डालें। 20 से 25 दिनों में आपके पौधे इतने बड़े हो जाते हैं कि आप इन्हें ट्रांसप्लांट कर सकते हैं।

पौधों को ऐसे  ट्रांसप्लांट करें  :

जितने पौधे हैं उतने ही बड़े गमले ले लीजिये। सभी गमलों में अच्छा ड्रेनेज सिस्टम होना चाहिए। 

इसमें आप 40% मिट्टी, 40% खाद और 20% रेत मिलाकर पॉटिंग मिक्स भर लीजिए। 

अब एक-एक करके सभी ब्रोकली के पौधों को बड़े गमलों में लगा दीजिये। 

ध्यान रहे कि किसी भी पौधे की जड़ें ट्रांसप्लांट करते समय खराब न हों। 

पौधों को लगाने के बाद गमलों में पानी दीजिये। 

पौधों को ट्रांसप्लांट करने के बाद लगभग पांच-छह दिनों तक गमलों को सेमी-शेड (जहां कम धूप आती हो) एरिया में रखिये। छह दिनों बाद आप सभी गमलों को ऐसी जगह पर रखें, जहां दिन में छह से आठ घंटे की अच्छी धूप आती हो क्योंकि ब्रोकली को बढ़ने के लिए अच्छी धूप की जरूरत होती है। 

इस तरह से करें देखभाल 

पानी हमेशा जरूरत के हिसाब से दें। बहुत ज्यादा पानी देने से पौधे खराब हो सकते हैं। 

पौधों को लगाने के लगभग एक महीने बाद से आप इन्हें खाद देना शुरू कर सकते हैं। 

हमेशा एक संतुलित खाद दें जिसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम संतुनित मात्रा में हो।

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10-11-2021, 04:15 pm

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गुलकन्द एक पौष्टिक आहार

गुलकन्द एक तरह का मुरब्बा होता है जो गुलाब की पंखुडियों से बनाया जाता हैं। गुलाब की ताजी पंखुडियों और शक्कर को बराबर अनुपात (1:1) में मिलाकर बनाया जाने वाला यह उत्पाद स्वास्थ्य के लिये बहुत उपयोगी है। यह शरीर के अंगो को ठंडक प्रदान करता है। इसमें पोषक तत्वों के साथ-साथ एंटीऑक्सीडेंटस भी पाए जाते है जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर थकान को कम करते हैं। यह एक अच्छा एंटीबैकटीरियल है, जो त्वचा संबधित समस्याओं में बहुत फायदेमंद है। यह त्वचा को डिहाइड्रेट रखता है। खाना खाने के बाद गुलकन्द को खाने से यह खाना पचाने में मदद करता है और पाचन संम्बधित समस्याओं को दूर करता है। यह एक अच्छा माउथफ्रेशनर भी है। सिर्फ एक चम्मच गुलकन्द सुबह और शाम खाने से न केवल दिमाग को तरावट मिलेगी, बल्कि दिमाग शान्त भी रहेगा और गुस्सा भी नहीं आएगा।

Step 1: गुलाब की ताजी (पंखुडियों) को इक्ट्ठा करें।

Step 2: गुलाब की पंखुडियों का वजन करें और उतनी ही मात्रा में शक्कर लें।

Step 3:  गुलाब की पंखुडियों को स्वच्छ पानी से धो लें।

Step 4: एक साफ जार लें। उसमें गुलाब की पंखुडियों और शक्कर को परत (लेयर) में रखें और उसे साफ कपडे से  ढ़क कर धूप में रखे।

Step 5: रोज मर्तबान को धूप में रखें व उसमें गुलाब की पंखुडियों एवं शक्कर की और परतें भरे।

Step 6: अब इसमें मेवे, ड्राई फ्रूट, इलायची, केसर, दालचीनी स्वादनुसार मिलाये।

Step 7:  गुलाब का यह गुलकन्द लगभग बीस से तीस दिन में तैयार हो जाता है।

दिए गये चित्र में बनाने की विधि देखें |

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09-11-2021, 02:26 pm

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सफेद और काले लहसुन में क्या अंतर है? कौन-सा है ज़्यादा फायदेमंद ?

लहसुन का उपयोग सर्दियों से इसके औषधीय गुणों के लिए किया जाता रहा है, जो कई बीमारियों से लड़ने में मदद करता है। यह सक्रिय संघटक, एलिसिन की उपस्थिति के कारण होता है, जो इसकी रोगाणु मारने की क्षमता के लिए जिम्मेदार है। लहसुन में मौजूद कार्बनिक सल्फर यौगिक एलिसिन लहसुन को उसकी तीखी गंध देता है और आपके आहार को स्वस्थ बनाता है।

हाल ही में, लहसुन की एक प्राचीन किस्म ने दुनिया भर के घरेलू रसोइयों और रसोइयों के व्यंजनों और पेंट्री में अपना स्थान बनाना शुरू कर दिया है। लहसुन के इस विकल्प को काला लहसुन कहा जाता है। यह व्यंजनों में एक अतिरिक्त स्वाद जोड़ता है जो कोई अन्य जड़ी-बूटी नहीं कर सकती।

काला लहसुन क्या है? (What is Black Garlic?)

सफेद लहसुन या काला लहसुन जैसा कुछ नहीं है बल्कि यह सफेद लहसुन स्वरूपित या पुराने सफेद लहसुन का एक नया रूप है. इसकी सुगंध सफेद लहसुन की तरह तेज नहीं होती।

काले लहसुन और सफेद लहसुन के बीच अंतर

ताजा कच्चे लहसुन को 60 से 90 दिनों तक उच्च तापमान पर किण्वित करके काला लहसुन तैयार किया जाता है। जिसके कारण काला लहसुन, नियमित लहसुन के विपरीत, अब मीठे और खट्टे स्वाद के साथ बनावट में मोमी या चिपचिपा होता है। काला लहसुन अपने असामान्य स्वाद और बनावट के कारण हाल ही में सबसे अधिक प्रचारित उत्पादों में से एक है। काला लहसुन एशियाई खाना पकाने में प्रमुख सामग्रियों में से एक है, खासकर जापान और दक्षिण कोरिया में।

सेहत के लिए है फायदेमंद (Health Benefits of Black Garlic)

सफेद लहसुन में एलिसिन नामक पोषक तत्व होता है, जो काले लहसुन में भी प्रचुर मात्रा में होता है। यह ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाने के साथ-साथ कोलेस्ट्रोल और दिल से जुड़ी बीमारियों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। काला लहसुन शरीर की कोशिकाओं को नियंत्रित कर रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है। इसमें एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-वायरल गुण होते हैं। इतना ही नहीं, यह ब्लड शुगर लेवल को बैलेंस करने में हमारी मदद करता है।

इसके अलावा, लहसुन में गर्म शक्ति और तीक्ष्ण गुण होते हैं, यह कफ और वात को संतुलित करता है, पित्त को बढ़ाता है। लहसुन में कार्मिनेटिव, कामोद्दीपक और रेचक गुण होते हैं, यह दिल और बालों के लिए एक टॉनिक है। वहीं, सफेद धब्बे, त्वचा रोग, बवासीर, मधुमेह, खांसी, दमा, राइनाइटिस और आंतों के परजीवी के इलाज के लिए लहसुन का उपयोग दवा के रूप में किया जाता है। सर्दी-जुकाम होने पर एक चुटकी हल्दी, काली मिर्च को पानी में लहसुन के पेस्ट के साथ मिलाकर पीने से आराम मिलता है। साइटिक दर्द और हाई बीपी में लहसुन के साथ दूध उबालकर सेवन करने की सलाह दी जाती है।

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09-11-2021, 02:22 pm

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अमरुद, नीम्बू व आवंला की बागवानी पर 50 प्रतिशत सब्सिडी

किसानों की आय बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार अपने-अपने स्तर पर प्रयास कर रही हैं। इसके तहत किसानों को सब्सिडी मुहैया कराई जाती है ताकि किसान परंपरागत खेती के साथ ही बागवानी फसलों की ओर ध्यान दे सके। इसके पीछे सरकार का उद्देश्य किसान को परंपरागत फसलों से होने वाले नुकसान से किसानों को बचाना है। बता दें कि भारत में अधिकांश किसान परंपरागत फसल जैसे- धान, गेहूं, जौ, चना आदि की खेती करते हैं। कई बार इन फसलों में नुकसान भी हो जाता है जिससे किसान की मेहनत बेकार चली जाती है। इस हानि की भरपाई के लिए बागवानी फसलों को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि किसान को कम जोखिम में अधिक आमदनी हो सके। ऐसे में हरियाणा सरकार की ओर से राज्य के किसानों को बागवानी फसलों के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिए सरकार की ओर से बाग लगाने के लिए सब्सिडी का लाभ किसानों को प्रदान किया जा रहा है। 

Dr. S R Maloo

09-11-2021, 02:17 pm

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भारत में रिकॉर्ड 331 मिलियन टन बागवानी फसलों के उत्पादन का अनुमान

मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने विभिन्न बागवानी फसलों के क्षेत्र व उत्पादन का वर्ष 2020-21 का तीसरा अग्रिम उत्पादन अनुमान जारी कर दिया है। केंद्रीय कृषि मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि सरकार की किसान हितैषी नीतियों, किसानों की अथक मेहनत व वैज्ञानिकों के अनुसंधान के कारण वर्ष 2020-21 में बागवानी उत्पादन रिकॉर्ड 331.05 मिलियन टन होने का अनुमान है, जिसमें 2019-20 की तुलना में 10.6 मिलियन टन (3.3 प्रतिशत) की वृद्धि परिलक्षित हो रही है।

बागवानी फसलों के क्षेत्र व उत्पादन के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, वर्ष 2020-21 में फलों का उत्पादन 103 मिलियन टन होने का अनुमान है, जबकि वर्ष 2019-20 में 102.1 मिलियन टन का उत्पादन हुआ था। सब्जियों के उत्पादन में पिछले वर्ष के 188.3 मिलियन टन की तुलना में 197.2 मिलियन टन यानी 4.8 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है। प्याज का उत्पादन 26.8 मिलियन टन, आलू का उत्पादन रिकॉर्ड 54.2 मिलियन टन होने का अनुमान है। टमाटर का उत्पादन वर्ष 2019-20 में प्राप्त 20.6 मिलियन टन की तुलना में 21.1 मिलियन टन होने का अनुमान है। मसालों का उत्पादन 5.3 प्रतिशत बढक़र वर्ष 2020-21 में 10.7 मिलियन टन हो गया है।

देश में कितना है कुल बागवानी क्षेत्र और कितने उत्पादन का अनुमान-

कुल बागवानी         2019-20 (अंतिम)       2020-21

क्षेत्रफल
(मिलियन हेक्टेयर में)       26.48                 27.59

अनुमानित उत्पादन         320.47               331.05 
(मिलियन टन में)

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09-11-2021, 02:16 pm

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आलू की प्रमुख 10 उन्नत किस्में और उनकी उपज

आलू एक ऐसी सब्जी है, जिसका सेवन हर एक मौसम में किया जाता है. आलू को ख़ास प्रकार की सब्जियों में गिना जाता है. वहीं,  आप आलू की सब्जी किसी भी सब्जी के साथ बनाकर खा सकते हैं. आलू की खेती मुख्य रूप से भारत के उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा एवं असम आदि राज्यों में की जाती है. वहीं बात करें विश्व की तो आलू के उत्पादन में भारत तीसरे स्थान पर आता है.

बता दें कि केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान ने आलू की 10 उन्नत किस्में विकसित किया है जोकि अधिक पैदावार देती हैं. ऐसे में आइये आज हम आपको आलू की उन 10 उन्नत किस्मों के बारे में बताते हैं, जिनसे आपको अधिक उपज के साथ-साथ अधिक मुनाफ भी मिलेगा-

कुफरी थार- 3 (Kufri Thar – 3) : आलू की यह किस्म की खेती भारत के हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ राज्य में की जाती है. आलू की इस किस्म से 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार होती है. आलू की यह किस्म की खेती पहाड़ों एवं गंगा तट के किनारे पाए जाने वाले मैदानी क्षेत्र में अच्छी होती है.

कुफरी गंगा (Kufri Ganga) : आलू की इस किस्म से 350 – 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार होती है. आलू की यह किस्म 80– 90 दिन में पककर तैयार हो जाती है. वहीं आलू की यह किस्म अन्य किस्मों के मुकाबले अच्छा पैदावार देती है.

कुफरी मोहन (Kufri Mohan) : आलू की इस किस्म से 350 – 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार होती है. इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस किस्म पर पाले का प्रभाव नही पड़ता है.

कुफरी नीलकंठ (Kufri Neelkanth) : आलू की इस किस्म से 350 – 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार होती है. इस किस्म की खासियत यह है कि इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं जो हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है. इस किस्म की खेती पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ राज्य में की जाती है.

कुफरी पुखराज (Kufri Pukhraj) : आलू की यह किस्म सबसे लोकप्रिय किस्मों से एक है. भारत में इस किस्म की खेती सबसे ज्यादा गुजरात राज्य में की जाती है. इस किस्म से किसान 140-160 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार प्राप्त कर सकते हैं. यह किस्म 90 – 100 दिन में तैयार हो जाती है.

कुफरी संगम (Kufri Sangam) : आलू की यह किस्म उत्तर प्रदेश , राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब राज्यों में की जाती है. इस किस्म की खासियत यह है कि यह बहुत पौष्टिक होने के साथ – साथ स्वादिष्ट भी होती है. आलू की यह किस्म लगभग 100 दिनों में तैयार हो जाती है.

कुफरी ललित (Kufri Lalit) : आलू की इस किस्म से 300 – 350 क्विंटल पैदावार होती है. यह किस्म अन्य किस्मों के मुकाबले अधिक पैदावार देती है. जिससे किसानों को अधिक लाभ होता है.

कुफरी लिमा (Kufri Lima) : आलू की इस किस्म से 300 – 350 क्विंटल पैदावार होती है. इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि मौसम के ज्यादा या कम होने से प्रभावित नही होती.

कुफरी चिप्सोना-4 (Kufri Chipsona-4)

Dr. S R Maloo

08-11-2021, 04:27 pm

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Professor of Genetic and Plant Breeding

धान के भंडारण में रख रखाव एवं सावधानियाँ

राजस्थान में धान की खेती मुख्यत कोटा, बूंदी, बारा, श्रीगंगानर एवं बांसवाड़ा जिलों में की जाती है। यह खरीफ की फसल है। प्राय यह देखा गया है कि अनाज के भंडारण के दौरान कीड़ों से लगभग 12-20 % नुकसान होता है। धान के भंडारण के दौरान अगर बीजों में 12% से अधिक नमी है तो कीड़ों के लगने की संभावना होती है।  अतः भंडारण से पूर्व अनेक बातो का ध्यान रखना आवश्यक है ।

धान के भंडारण के दौरान मुख्यत निम्न कीड़ें लगते है –

 1.धान का घून (राईस विविल: Sitophilus oryzae )

 2.लघु धान्य भेदक (लेसर ग्रेन बोरर: Rhyzopertha dominica)   

 3. खपरा बीटल (Trogoderma granarium

इन्हें नियंत्रित करने के लिए विशेष सावधानियाँ रखनी चाहिये:

  • बीज में नमी 12% से कम होनी चाहिए ।
  • भंडारण के प्रयोग होने वाले कमरे, गोदाम या पात्र की दरारो को गीली मिट्टी या सीमेंट से भर दे ।
  • यदि भंडारण गोदाम में कर रहे है तो उसे अच्छी तरह साफ करने के पश्चात मेलाथियान (0.2%) का  छिड़काव करना चाहिए ।
  • बीज रखने हेतु नई  बोरियो का प्रयोग करे।
  • यदि बोरियाँ पुरानी है तो उन्हें गर्म पानी में 50 डिग्री सेंटीग्रेड पर 15 मिनट तक भिगो कर तेज धूप में सुखा दे उसके बाद इनमें बीज भरे ।
  • यदि भंडारण गोदाम में कर रहे है तो कभी भी नए बीज को पुराने बीज के साथ नहीं रखे । भंडारण करने से पहले जांच लेना चाहिए कि बीज में कीड़े लगे हुए है या नहीं यदि लगे हुए हो तो उसे भंडार ग्रह में रखने से पूर्व उसे एल्युमिनियम फास्फाइड से प्रधुमित के लेना चाहिए।
  • भंडार गृह को 30 दिन में एक बार  अवश्य देखना चाहिए ।
  • बीज में कीट की उपस्थिति, फर्श व दीवारों पर जीवित कीट दिखाई देने पर आवश्यकता अनुसार कीटनाशी का छिड़काव करना चाहिए । यदि कीट का प्रकोप शुरुवाती है तो 40 मिली लीटर डी. डी.वी.पी. प्रति लीटर पानी के हिसाब से मिलाकर बोरियो के उपर एवं अन्य स्थान पर हर जगह छिड़काव कर दे ।
  • कीटनाशी का छिड़काव हमेशा वायुरोधी गोदाम में ही करना चाहिए ।
  • छिड़कते समय कीटनाशी को खुले हाथो से स्पर्श नहीं करे।
  • कीटनाशी का छिड़काव मुंह पर मास्क बांध कर ही करना चाहिए।

 

Dr. S R Maloo

08-11-2021, 04:26 pm

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प्याज भंडारण पर राजस्थान के किसानों को 50 फीसदी अनुदान

प्याज जैसी कच्ची फसल को नुकसान से बचाने, बे मौसम में अधिक मुनाफा कमाने और किसानों की आय बढाने के लिए उद्यान विभाग बहुउ्देशीय प्याज भंडार गृह निर्माण पर किसानों को अनुदान उपलब्ध करवा रहा है । इस योजना  के तहत 25 एमटी क्षमता के प्याज भंडार गृह निर्माण पर किसानों को कुल लागत का 50 फीसदी अनुदान दिया जाता है। योजना का लाभ पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर दिया जाएगा। इसके लिए किसान को किसान साथी पोर्टल आवेदन करना होगा। प्याज भंडारण पर इकाई लागत का 50 प्रतिशत अथवा अधिकतम 87500 रूपये तक अनुदान देय है। आवेदक कृषक के पास कृषि योग्य भूमि, भूस्वामित्व की पासबुक की प्रतिलिपि एवं सिंचाई का स्त्रोत होना आवश्यक है

आवश्यक दस्तावेज :- आधार कार्ड, जन आधार कार्ड, जमाबंदी की नक़ल (छ माह से अधिक पुराणी ना हो), बिजली का बिल, भूस्वामित्व का प्रमाण पत्र ।   

Dr. S R Maloo

08-11-2021, 04:23 pm

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क्या आप जानते हैं ?

सतावर एक बहुवर्षीय औषधीय गुणों से भरपूर शाकिय फसल है  जिसकी कंदिल जड़े मधुर, बलवर्धक, दूध बढ़ाने वाली वीर्य वर्धक तथा अतिसार को दूर करती हैं । ये मेधाकारक, जठराग्निवर्धक, पृष्टिदायक, स्निग्ध, नेत्रों के लिए हितकारी, पित रक्त तथा शोध दूर करने वाली होती है । इसमें सतवरिन नामक रसायन पाया जाता है। जिसका उपयोग महिलओं के टॉनिक, रक्त अल्पता, पाचन तथा मानसिक तनाव से मुक्ति हेतु दवा बनाने में किया जाता है। इसकी सब्जी प्रचलन में कम है लेकिन इसके निर्यात से पर्याप्त विदेशी मुद्रा अर्जित कर सकते है। भारत में सतावर की बड़े – बड़े होटलों एवं रेस्टोरेंट में बहुत मांग है । इसके खाने वाले भाग को ‘कोमल प्ररोह’ या ‘स्पीयर’ कहते है। इसका उपयोग सब्जी, सूप एवं विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाने मे किया जाता हैं।  

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08-11-2021, 04:19 pm

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गुणकारी आंवला

आंवला विटामिन सी का सस्ता एवं उत्तम स्रोत है जिसका अधिक तापमान में भी ह्रास नहीं होता है इसमें उपस्थित एंटीऑक्सीडेंट हमारे शरीर को हानिकारक तत्वों से सुरक्षा प्रदान करते हैं। यह रक्तचाप एवं कोलेस्ट्रोल को भी नियंत्रित करता है । इसके तजा फल नवम्बर से फरवरी तक उपलब्ध होते है।     

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08-11-2021, 04:17 pm

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Agriculture Business Ideas

सूखे फूल का व्यवसाय (Dried flower business)

उर्वरक वितरण व्यवसाय (Fertilizer distribution business)

ऑर्गेनिक फार्म ग्रीन हाउस (Organic Farm Green House)

पॉल्ट्री फार्मिंग (Poultry farming)

मशरूम की खेती (Mushroom farming)

हाइड्रोपोनिक रिटेल स्टोर बिजनेस (Hydroponic Retail Store Business)

सूरजमुखी की खेती का व्यवसाय (Sunflower farming)

  • फलों का रस उत्पादन
  • पशुधन चारा उत्पादन
  • मूंगफली का प्रसंस्करण
  • मछली हैचरी
  • मसाला प्रसंस्करण
  • सोयाबीन प्रसंस्करण
  • सब्जी की खेती
  • रजनीगंधा की खेती
  • ई-शॉपिंग पोर्टल
  • कैक्टस की व्यवस्था
  • दूध उत्पादन
  • औषधीय जड़ी बूटी की खेती
  • मक्का की खेती

 

Dr. S R Maloo

08-11-2021, 04:17 pm

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आलू की बंपर पैदावार

आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है।  मुख्यतः आलू रबी सीजन की फसल है।  लेकिन कुछ राज्यों में इसे रबी और खरीफ दोनों में लगाया जाता है।  किसानों के लिए इसकी खेती करना काफी लाभदायक होता है । इसे ग्रो बेग में भी छत पर लगाया जा सकता है ।  

आलू की फसल के लिए खेत तैयार करने से पहले मृदा उपचार करना बेहद आवश्यक होता है।  मृदा उपचार करने से मृदा कीट, रोगाणु और भूमि जनित बिमारियों से रोकथाम करने में मदद मिलती है।  इसके लिए 40 से 50 किलो गोबर की पकी खाद लेकर उसमें 2 किलो मेट्राजियम ऐनआइसोफिलि मिला लें और इसे प्रति एकड़ भूमि में मिला दें।  इसके बाद खेत की जुताई करें।

आलू की बुवाई अक्टूबर से मध्य जनवरी तक की जाती है जो अच्छी पैदावार के लिए उत्तम समय होता है।

अन्य फसलों की तरह आलू की फसल की भी समय-समय पर निराई गुड़ाई करना चाहिए. इसमें किसी भी तरह को खरपतवार नहीं होना चाहिए ताकि आपकी उपज प्रभावित न हो।

आलू की खुदाई (Potato Digging)

फसल जब पूरी तरह से पक जाए और कंद के छिलके ठोस पड़ जाए तभी आलू की खुदाई करना चाहिए। आलू की अच्छी किस्मों की बुवाई करने पर प्रति हेक्टेयर आलू की उपज 300 से 350 क्विंटल की होती है। कुफरी चिपसोना, कुफरी सिंदुरी, कुफरी बादशाह आदि आलू की उत्तम किस्में है । 

Dr. S R Maloo

08-11-2021, 04:14 pm

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माइक्रोग्रीन्स की खेती

माइक्रोग्रीन एक प्रकार की पौधे की शुरुआती पत्तियों को कहते हैं।  जैसे अगर आप मूली, सरसों, मूंग या कुछ और चीजों के बीज बो दें तो उनमें जो शुरुआती 2 पत्तियां आती है, वही माइक्रोग्रीन कहलाती हैं।  जैसे ही ये 2 पत्तियां आती हैं, वैसे ही जमीन या सतह से थोड़ा ऊपर से इसे काट लिया जाता है।  माइक्रोग्रीन में पहली 2 पत्तियां और साथ ही उसका तना शामिल होता है।

अपने खान पान में  सिर्फ 50 ग्राम माइक्रोग्रीन का सेवन करने से शरीर में पोष्टिक तत्वों की सारी कमी दूर हो जाती है ।  इनमें फल और सब्जियां के मुताबिक ज्यादा पोषण पाए जाते हैं।  सामान्य तौर पर आप मूली, शलजम, सरसों, मूंग, चना, मटर, मेथी, बेसिल, गेंहू, मक्का आदि के माइक्रोग्रीन खा सकते हैं।  इनसे मिलने वाले पोषण एवं विटामिन्स से चुस्त दुरुस्त रह सकते हैं।

माइक्रोग्रीन की खेती करना बहुत ही आसान है। इसकी खेती सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे कोई भी और कहीं से भी शुरू कर सकते है। माइक्रोग्रीन की खेती आप किसी भी गमले या गमले या घर बगिया अथवा अपनी छत पर भी कर सकते है ।

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08-11-2021, 04:14 pm

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पीएम किसान सम्मान निधि योजना

पीएम किसान सम्मान निधि योजना की 10वीं किस्त 15 दिसंबर 2021 तक किसानों के खाते में दी जाने की तैयारी है.आपको बता दें कि यह सुविधा सिर्फ उन्हीं किसानों को मिलेगी, जिन्होंने 30 सितंबर से पहले रजिस्ट्रेशन कराया है। पीएम किसान योजना के तहत अब तक केंद्र सरकार द्वारा भारत के लगभग  11.37 करोड़ किसानों के खातों में 1.58 लाख करोड़ रुपये भेजी जा चुकी है। जिसमें सरकार किसानों के खाते में 6,000 रुपये सालाना के हिसाब से प्रदान करती है। 

अपने पीएम किसान लाभ की स्थिति की जांच करने के लिए आपको पीएम किसान की आधिकारिक वेबसाइट https://pmkisan.gov.in  पर लॉग इन करना होगा।

Dr. S R Maloo

30-10-2021, 12:43 pm

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क्या सुना आपने ? काला टमाटर

लाल टमाटर की तरह देश की मंडियों में जल्दी ही काले टमाटर भी पहुँचने वाले हैं | पौष्टिक गुणों से भरपूर काला टमाटर डायबिटीज और हार्ट के मरीजों की यह पहली पसंद बन सकता है | कैंसर से बचाव में भी यह कारगर हो सकता है | इसमें मौजूद एन्थोसाइनिन शरीर में बैड कोलैस्ट्रोल को कम करता है | इससे हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है | ओस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में इसे इंडिगो रोज नाम मिला है |  ये बाहर से बैंगन की तरह स्याह और काला दिखता है| काटने पर अन्दर का हिस्सा लाल होता है | ये ज्यादा खट्टा या मीठा नहीं होता | खाने में नमकीन-सा टेस्ट आता है | इसे लाल टमाटर की तरह ही खेतों में नर्सरी लगाकर उगाया जा सकता हैं |    

Dr. S R Maloo

30-10-2021, 12:42 pm

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नवम्बर 2021 के प्रमुख कृषि कार्य

 

  • गेहूँ, जौ एवं रबी मक्का की बुवाई हेतु गेहूँ की उन्नत किस्मों का प्रयोग करें।
  • गेहूँ व जो की फसल को दीमक के प्रकोप से बचने हेतु बीज को प्रीप्रोनिल 5 एस.सि. 6 मिलीलीटर या क्लोथिएनिडीन 50 डबल्यू डिजी 1.5ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें।
  • धनिया जीरा, मैथी एवं इसबगोल की बुवाई का भी उचित समय हैं।, आर.सी.आर. 20, आर.सी.आर. 41, आर.सी.आर. 435, आर.सी.आर. 436 धनिया कि उन्नत किस्में हैं। आर.एम. टी-1, आर.एम. टी-143, आर.एम. टी-305, पूसा अर्ली बंच मैथी की तथा आर.एस.-1, आर.जेड. – 209, आर.जेड-223, जी.सी. 4 एवं आर जेड – 19 जीरे की उन्नत किस्में हैं।
  • बुवाई से पूर्व जीरे के बीज को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम या ट्राईकोडर्मा 6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करें। बुवाई के तुरंत बाद फसल को हल्की सिंचाई देवें।
  • सीमित सिंचाई स्थिति में अलसी फसल की बुवाई 1-15 नवम्बर तक करने पर अधिक उपज ली जा सकती हैं।
  • मिर्च, टमाटर एवं बैंगन की फसल को झुलसा रोग से बचने हेतु मैन्कोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिडकॅाव करें।
  • आम के थालों की सफाई करें व बगीचों में निराई-गुड़ाई व सिंचाई करें।
  • फूलवार फसलों / पोधों की नर्सरी तैयार करें ।
  • चारे की सही समय पर खरीद व संग्रहण पर पूरा ध्यान दें ।
  • हरी घास व चारे की उपलब्धता बढ़ने पर पशु आहार में हरे चारे की मात्रा नियंत्रित रखें व सूखे चारे की मात्रा बढ़ाकर दें, क्योंकि हरे चारे की को अधिक मात्रा में खाने से पशुओं में हरे रंग की दस्त अथवा एसिडो़सिस की समस्या हो सकती है ।
  • पशुओं का बिछावन सुखा होना चाहिए ।
  • पशुओं को लवण-मिश्रण निर्धारित मात्रा में दानें या बाँटे में मिलाकर देवें ।
  • बहुवर्षीय घासों की कटाई करें । इसके बाद ये सुषुप्तावस्था में चली जाती है जिससे अगली कटाई तापमान बढ़ने पर फरवरी-मार्च में ही प्राप्त होती है ।

 

 

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30-10-2021, 12:41 pm

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अलसी बीज के फायदे, औषधीय गुण और औद्योगिक उपयोग

अलसी एक रबी मौसम की फसल हैं | इसका वानस्पतिक नाम लिनम यूसीटेटीसीमम है| इसके फूल नीले, सफेद व बैंगनी रंग के होते हैं जबकि इसके बीज भूरे या सुनहरे रंग के चिकने होते हैं|

अलसी की फसल को कम सिंचाई की आवश्यकता होती हैं | नीलम, प्रताप अलसी आदि इसकी प्रमुक किस्में हैं |

अलसी की खेती मुख्यतः तेल व रेशे निकालने के लिये किया जाता है. अलसी के बीज में 33-47% तक खाद्य तेल पाया जाता है|

अलसी के ओषधीय गुण:-

अलसी हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह की संभावना को बहुत कम करता है| इसमें 20% आवश्यक अमिनो एसिड युक्त अच्छे प्रोटीन होते हैं. ओमेगा-3 फैट्टी एसिड, जो कि एक अच्छी वसा के रुप में हृदय की स्वास्थय के लिए महत्वर्पूण है| लिगनेन प्रोटीन जो कि पादप ऐस्ट्रोजेन व एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर है| फाइबर भी प्रचूर मात्रा में पाये जाते हैं| कब्ज में यदि अलसी का सेवन किया जाय तो ईसबगोल की अपेक्षा ज्यादा स्वास्थयप्रद है|

इसके अतिरिक्त इसमें 30-40% तेल, विटामिन बी, सेलेनियम, कैल्शियम, मैग्नेशियम, जिंक, पोटेशियम, लोहा, लाइकोपीन आदि प्रचूर मात्रा में पाई जाती है, इसके अतिरिक्त इसमें ओमेगा-3, एल्फा-लिनोलेनिक एसिड पाई जाती है जो पृथ्वी पर सबसे बड़ा वानस्पतिक स्त्रोत है|

नये रिसर्च के अनुसार आोमेगा -3 रक्तचाप को कम अथवा नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. अलसी हमारे शरीर में अच्छे कोलेस्ट्राल की मात्रा को बढ़ाता है और ट्राइग्लीसराइट्स व खराब कोलेस्ट्राल (एल. डी. एल.) की मात्रा को कम करती है. अलसी में रक्त को पतला करने का गुण भी पाया जाता है जो दिल की धमनियों में थक्के बनने से रोकती है. अलसी के ओमेगा-3 से भरपूर आहार धमनियों को सख्त होने से रोकने में मदद करते हैं, और सफेद रक्त कोशिकाओं को रक्त वहिकाओं की आंतरिक परत से चिपके रहने से धमनियों में वसा के जमाव को भी रोकता है. ओमेगा-3 हृदय की प्राकृतिक लय को बनाए रखने में भी भूमिका निभाता है, यह अनियमित दिल की धड़कन और हृदयघात के इलाज में उपयोगी है|

अलसी का औद्योगिक उपयोग:-

अलसी के तने से रेशा को संसाधित किया जा रहा है, जिससे लुगदी व पेपर उद्योग में उपयोग किया जा रहा है, साथ ही पार्टिकल र्बोड, इंसुलेशन र्बोड, प्लास्टिक पालन्टपाट इन्सुलेटर, कार डोर पैनल, जलाऊ ईंधन, आदि के निर्माण में रेशे का उपयोग किया जा रहा है.

Dr. S R Maloo

30-10-2021, 12:39 pm

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सफेद ही नहीं कई रंग के होते हैं चावल, जानें इनके फायदे

आमतौर पर सफ़ेद चावल (Rice) ही खाए जाते हैं| ब्राउन राइज़ के बारे में अपने कभी सुन लिया होगा या इसको टेस्ट कर लिया होगा| लेकिन क्या कभी आपने लाल और काले चावल (Black Rice) टेस्ट किये हैं? क्या आप जानते हैं कि चावल केवल एक नहीं बल्कि चार रंगों के होते हैं ?

काला चावल

काले चावल अपने नाम की तरह काले रंग के ही होते हैं| ये एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं साथ ही इनमें प्रोटीन, फाइबर और विटामिन ई भी काफी मात्रा में पाया जाता है| जिस तरह से सफ़ेद चावल कई किस्म में आता है| उसी तरह से काले चावल भी कई वैराइटी में मिलते हैं और सभी में काफी मात्रा में एंटी-ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं| काले चावल को खाने से ब्लड शुगर लेवल और वजन को कम करने में मदद मिलती है|

लाल चावल

लाल चावल ब्राउन राइज से थोड़े अलग यानी लाल रंग के होते हैं| लेकिन इनमें फाइबर और आयरन की मात्रा काफी पायी जाती है| इसको खाने से बार-बार भूख का अहसास नहीं होता है| साथ ही इसमें ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने की खासियत भी होती है| वजन कम करने में भी ये चावल खास भूमिका निभाते हैं|

भूरा चावल

भूरा चावल जिसको आम भाषा में ब्राउन राइस बोला जाता है| इसका सेवन तो आपके कभी न कभी किया ही होगा| लेकिन इसके फायदों के बारे में भी आपको बता देते हैं| ब्राउन राइस सफेद चावल की तुलना में काफी पौष्टिक होते हैं| इनमें फाइबर और प्रोटीन की मात्रा भी काफी पायी जाती है लेकिन कैलोरी सफ़ेद चावल के जैसी ही होती है| इसके सेवन से भी आपको भूख जल्दी नहीं लगती हैं|

सफेद चावल

सफेद चावल के बारे में तो आप जानते ही हैं और लगभग रोजाना ही इसका सेवन करते भी हैं| इसमें भी प्रोटीन, एंटी-ऑक्सिडेंट और अन्य पोषक तत्व पाए जाते हैं लेकिन बाकी चावल की अपेक्षा कुछ कम मात्रा में होते हैं| लेकिन इसमें कैल्शियम और फोलेट की मात्रा काफी अच्छी होती है|

 

Dr. S R Maloo

28-10-2021, 01:08 pm

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क्या आप जायफल और जावित्री के बारे में जानते हैं ?

हर घर की रसोई में जायफल और जावित्री का प्रयोग मसलों की तरह किया जाता है । जायफल (जमाइरिस्टिका फ्रेगरेंस) से ही जायफल और जावित्री नामक मसाले बनते है । देश में इनका प्रयोग मिठाइयों में खुशबू एवं जायेका बढ़ाने में किया जाता हैं |

जायफल के शुष्क बीज का दाना तथा उसके चारों ओर लाल रंग की लिपटी शुष्क जालीदार जावित्री होती है । यह मौलूकस दी (इंडोनेशिया) मूल का पौधा है । इंडोनेशिया विश्व को 50% जायफल एवं जावित्री का निर्यात करता है । भारत में मुख्यतः यह केरल के त्रिशूर, एरनाकुलम और कोत्व्यम तथा तमिलनाडु के कन्याकुमारी और तिरुनेलवेली जिलों में इसका उत्पादन होता है । इसके तेल का प्रयोग दवा बनाने में होता है । यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है ।

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28-10-2021, 12:57 pm

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गेंदा लगाये घर बगिया महकाएं |

अफ्रीकन गेंदा : टेजेटिस इरेक्टा  

किस्में - पूसा नारंगी गेंदा, पूसा बसंती गेंदा, पूसा बहार, अफ्रीकन जायंट येलो, अफ्रीकन जायंट ऑरेंज

फ्रेच गेंदा : टेजेटीस पेटुला

किस्में – पूसा अर्पिता, पूसा दीप, रस्टी रेड पिटाईट ऑरेंज, पिटाईट येल्लो, हिसार जाफरी – 2  

    इसका प्रर्वधन बीज एवं कलम द्वारा किया जा सकता है ।
    बीज दर – 300 – 450 ग्राम बीज / हैक्टेयर
    वर्ष मे तीन बार लगाया जा सकता है

बुआई का समय (सर्दी)- सितम्बर–अक्टूबर, पौध रोपण समय-अक्टूबर – नवम्बर

बुआई का समय (गर्मी)- जनवरी – फरवरी, पौध रोपण समय- फरवरी – मार्च

बुआई का समय (वर्षा)- जून – जुलाई , पौध रोपण समय- जुलाई – अगस्त

अफ्रीकन गेंदे की दूरी 40 x 40 सेमी एवं फ्रेंच की 20 x 20 सेमी रखें ।

खाद : 300 क्विंटल / हैक्टेयर

उर्वरक : 120 : 80 : 80  नाइट्रोजन : फास्फोरस : पोटेशीयम किलो / हैक्टेयर

खरपतवार नियंत्रण : पहली निराई गुड़ाई 25 – 30 दिन बाद व दूसरी एक महीने बाद

अफ्रीकन गेंदे में रोपाई के 35 – 40 दिन बाद पिचिंग करें ।

गेंदे की बुवाई के 125 – 130 दिनों बाद पुष्प प्रारंभ हो जाते है।

उपज : अफ्रीकन – 200 – 300 क्विंटल / हैक्टेयर

          फेंच – 180 – 200 क्विंटल / हैक्टेयर

Dr. S R Maloo

28-10-2021, 12:45 pm

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टमाटर के विभिन्न उत्पाद

जब जब टमाटर का अधिक उत्पादन हो रहा हो और बाजार भाव पूरा नहीं मिल रहा हो तो टमाटर का निम्न तरह से उपयोग किया जा सकता हैं |  टमाटर की प्रोसेसिंग/ अन्य उत्पाद बनाने के लिये फलों को पूरी तरह पकने के बाद ही तोड़ना चाहिये जिससे बनाये जा रहे उत्पाद की खुशबू, स्वाद व रंग अच्छा रहे।

टमाटर सॉस

सामग्री : टमाटर - 1.5 कि.ग्रा., लहसुन - 10 ग्राम, चीनी - 50-70 ग्राम, नमक - 10-12 ग्राम, लाल मिर्च (पीसी) - 5-10 ग्राम, गर्म मसाला - 15-20 ग्राम, अदरक - 30 ग्राम, ग्लेशियल एसिटिक एसिड - 2.5 ग्राम (12 छोटी चम्मच), प्याज - 50 ग्राम, सोडियम बेन्जोएट - 1 ग्राम  

सॉस बनाने की विधि :

  • लाल पके हुए टमाटर लेकर, धोकर, छोटे टुकड़ों में काट लें | इसमें अदरक, प्याज, छिली हुई लहसुन डालकर पीस लें |
  • कटे हुए टमाटर, प्याज, अदरक, लहसुन आदि को गलने तक पकाएँ | फिर इन्हें छलनी में से छान लें |
  • छने हुए पदार्थ को बर्तन में डालकर उबालें |
  • एक छोटे बर्तन में गरम मसाला व लाल मिर्च थोड़े से पानी में उबालकर मलमल के कपड़ें से छानें |
  • इन छने हुए मसलों को पकते हुए सॉस में डालें |
  • थोडा गाढ़ा होने पर चीनी डालें और गाढ़ा होने पर नमक डाल कर नीचे उतारें |
  • सॉस का तैयार होना प्लेट टेस्ट द्वारा जाचें | ठंडा होने पर  ग्लेशियल एसिटिक एसिड मिला लें |
  • लम्बे समय तक रखने हेतु एक कि.ग्रा. सॉस में 1 ग्राम के हिसाब से सोडियम बेन्जोएट डालें अन्यथा फ्रिज में रखकर शीघ्र उपयोग में ले सकते हैं |
  • सॉस को साफ बोतलें में भर कर बंद कर दें |

टमाटर सूप

सामग्री : टमाटर का रस - 3 लीटर, काली मिर्च - 0.5 ग्राम, बारीक कटी हुई प्याज - 50 ग्राम, पिसी हुई सोंठ - 0.5 ग्राम, दाल चीनी - 75 ग्राम, मक्खन - 50 ग्राम.

Dr. S R Maloo

25-10-2021, 11:18 am

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भारत की मृदाएँ

संलग्न नक़्शे में भारत की निम्न मृदाएँ क्षेत्र दर्शायें गये हैं | देश के 15 से भी अधिक जलवायु क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार की मिट्टियाँ/मृदा पाई जाती हैं | सामान्यतया इन्हें मुख्य रूप से 6 भागों में विभक्त किया जा सकता हैं जैसा की नक़्शे में दर्शाया गया हैं |

Dr. S R Maloo

25-10-2021, 11:00 am

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क्या आप मशरूम के बारे में जानते है ?

मशरूम एक फफूंद है जिसे अति स्वादिष्ट एवं पौष्टिक भोज्य होने के कारण इसे सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है । इसे शाकाहारी मीट भी कहते है । इसकी मुख्य प्रचलित किस्में है बटन, पैडीस्ट्रा एवं ढींगरी मशरूम । इससे  पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, पोटेशियम, लोह, फोस्फोरस, कार्बोहाइड्रेट, तथा खनिज लवण जैसे कैल्शियम, विटामिन, रेशे पाए जाते है । साथ ही नियासिन पेंटाथिन तथा फोलिक अम्ल एवं आवश्यक विटामिन बी, डी, सी भी पाए जाते है । मशरूम ओषधीय गुणों से भरपूर है जिसे प्रतिरोधी क्षमता बढती है । इसका उत्पादन कम खर्च में छोटी जगह पर भी आसानी से किया जा सकता है ।  

Dr. S R Maloo

25-10-2021, 10:54 am

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पशु धन की देखभाल एवं रखरखाव

अक्टूम्बर से दिसम्बर माह में विशेष ध्यान देने योग्य बातें

  • इस माह से सर्दी का मौसम शुरू हो जाता है, अत: पशुओं को खुले में नहीं बांधे।
  • सर्दी के मोसम में अधिकतर भैंस मद में आती है। अत: भैंस को मद में आने पर समय पर ग्याभिन करवाए।
  • मुँहपका – खुरपका रोग, गलघोंटू, ठप्पा रोग, फड़किया रोग आदि के टीके यदि अभी भी नहीं लगवाये है तो समय रहते लगवा लें।
  • परजीवीनाशक दवा देने का समय भी उपयुक्त है। परजीवीनाशक दवा को हर बार बदलकर उपयोग में ले।
  • चारे की सही समय पर खरीद व संग्रहण पर पूरा ध्यान दें।
  • हरी घास व चारे की उपलब्धता बढ़ने पर पशु अहारा में हरे चारे की मात्र नियंत्रित ही रखे व सूखे चारे की मात्र बढ़ाकर दे क्योंकि हरे चारे को अधिक मात्रा में खाने से पशुओ में हरे रंग की दस्त अथवा एसिड़ोसिस की समस्या हो सकती है।
  • पशुओं का बिछावन सुखा होना चाहिए।
  • पशुओं को लवण-मिश्रण निर्धारित मात्रा में दाने या बाँटे में मिलकर देवें।
  • बहुवर्षीय घासों की कटाई करें। इसके बाद ये सुषुप्तावस्था में चली जाती है जिससे अगली कटाई तापमान बढ़ने पर फरवरी- मार्च में ही प्राप्त होती है।
  • थनैला रोग से बचाने के लिए पूरा दूध निकालें और दोहन के बाद थनों को कीटाणु नाशक घोल से धो लेवें।

Dr. S R Maloo

23-10-2021, 12:16 pm

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क्या आप जानते है ? तारबंदी योजना पर राजस्थान सरकार दे रही है 50% तक अनुदान

खेती करने वाले किसानों के लिए एक अच्छी खबर सामने आ रही है | दरअसल, आवारा पशूओं के कारण  फसल को काफी नुकसान पहुँचता है, जिससे किसानों को बहुत हानि होती है | अतः  तारबंदी योजना पर राजस्थान सरकार  ने 50%  तक अनुदान देने का प्रावधान किया है जिसका किसान भाईयों को पूरा-पूरा लाभ उठाना चाहिये और अपनी फसल को सुरक्षित कर अधिक आय प्राप्त करना चाहिये |

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23-10-2021, 12:01 pm

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वर्मी कम्पोस्ट बनाने पर किसानों को मिलेगी 50 प्रतिशत तक सब्सिडी

फसलों में रसायनिक खादों का प्रयोग कम करने के लिए किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। जैविक खेती की खास बात ये हैं कि इसमें प्राकृतिक रूप से तैयार खाद का प्रयोग किया जाता है जिससे फसल की लागत में कमी आती है और उत्पादन भी बेहतर होता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी जैविक उत्पाद अच्छे माने जाते हैं। जैविक तरीके से तैयार किए गए उत्पादों की बाजार में भी अधिक मांग रहती है। इतना ही नहीं जैविक खेती के लिए सरकार से मदद भी मिलती है।

जैविक खेती में जिस खाद का प्रयोग किया जाता है उसे वर्मी कम्पोस्ट के नाम से जाना जाता है। इसके प्रयोग से फसल स्वस्थ पैदावार प्राप्त की जा सकती है। वर्मी  कम्पोस्ट इकाई की स्थापना के लिए सरकार से अनुदान दिया जाता है। ये अनुदान अलग-अलग राज्यों में वहां के नियमानुसार दिया जाता है। अभी मध्यप्रदेश में किसानों को वर्मी कम्पोस्ट इकाई की स्थापना के लिए अनुदान दिया जा रहा है।

वर्मी बेड कम्पोस्ट इकाई उद्यानिकी विभाग मध्य प्रदेश ने राज्य के किसानों के लिए वर्मी कम्पोस्ट इकाई स्थापना के लिए लक्ष्य जारी किए हैं। इस योजना के तहत जारी किए गए लक्ष्य रीवा, सिंगरौली, सागर, दमोह, टीकमगढ़ एवं होशंगाबाद जिलों के लिए है। 

Dr. S R Maloo

23-10-2021, 12:00 pm

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आंवला की बागवानी के लिए मिलेगी 1,50,000 रुपए की सहायता

आवला एक बहुत ही गुणकारी अमृत फल है जिसमे विटामिन C की मात्रा अत्यधिक होती है | इसके बहुत सारे उत्पाद बनाये जाते हैं जैसे शरबत, कैंडी, मुरब्बा, अचार प्रमुख है | इसकी खेती आसानी से कम उपजाऊ एवं कम पानी के क्षेत्रों में भी आसानी से की जा सकती हैं |

हरियाणा सरकार की ओर से जिन फसलों पर अनुदान दिया जा रहा है उनमें अमरूद, नीबू आंवला, चीकू, आम का बगीचा लगाने पर अनुदान दिया जा रहा है। नए बाग लगाने पर किसानों को प्रति हेक्टेयर 50 प्रतिशत तक अनुदान देने की शुरुआत की है। इसके तहत एक किसान अधिकतम 10 एकड़ तक के बाग के लिए अनुदान का लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

Dr. S R Maloo

22-10-2021, 02:08 pm

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भारत के कृषि जलवायु क्षेत्र

संलग्न नक़्शे में भारत के निम्न जलवायु क्षेत्र दर्शाये गये हैं |

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22-10-2021, 01:42 pm

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ग्रीन-सुरक्षित-सुंदर-समृद्ध दीपावली

हमारे देश में दिवाली का त्यौहार सदियों से जगमगाते दीपों और रोशनी के साथ मनाया जाता है | यह सुख, समृद्दी व खुशियों का त्यौहार है | इस अवसर पर घरों में साफ-सफाई की जाती है और उन्हें सजाया जाता है | इस दौरान मिट्टी की मोटी चादर वातावरण में छा जाती है | आजकल दीपों के स्थान पर भिन्न-भिन्न लाइटिंग ने ले ली है | तेज ध्वनि वाले पटाखे भी फोड़े जाते है | जो ध्वनि व वायु प्रदुषण बढ़ाते है जो सभी जीव-जंतुओं, पक्षियों एवं मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है | विगत दो वर्षो में कोरोना महामारी ने देश में ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में जो तांडव किया है जिससे मानव स्वास्थ्य एवं आर्थिक हानि मुख्य रूप से हुई है |

अतः हमें इस वर्ष पूर्ण सुरक्षित व ग्रीन दिवाली मनाने का संकल्प लेना होगा | इसके लिए हमें चाहिये की संयुक्त परिवार/मित्रगण/पड़ोसी सभी मिलकर एक स्थान पर दीपावली मिलन का आयोजन करें | एल.ई.डी लाइट्स का प्रयोग कर उर्जा बचाएं | उसी स्थान को अच्छे फूल पत्तो के गमलों से सजाये, सामूहिक रंगोली बनाये एवं इकोफ्रेंडली पटाखे सिमित स्तर पर चलाकर धुँआ व ध्वनी प्रदुषण कम करें | अगर सामूहिक रूप से भोज का आयोजन हो तो झूठा नहीं छोडें | कोविड गाइड लाइन्स का पालन करना न भूलें, यह अत्यंत आवश्यक हैं |

 पारिवारिक स्तर पर अपने घर आंगन को फूल-पत्तिदार पौधों जैसे- विभिन्न  क्रोटोन, स्नेक प्लांट्स, मनी प्लांट, पेंडीलेन्थस, सिंगोनियम, अगेव, स्प्रीया, कोलियस, ड्रेसिना आदि पौधों से सजाएँ ये सभी पौधे भरपूर मात्रा में ऑक्सीजन भी देते है | घर के मुख्य द्वार को आशापाल के पत्तें एवं गेंदा के फूलों की माला बनाकर सुसज्जित करें | गेंदा, गेलार्डिया, चांदनी, गुलदाऊदी, गुलाब, गुड़हल के  आदि फूलों व पत्तों से रंगोली बनाकर सुंदर, स्वस्थ कम खर्चीली दीपावली का आंनद लें व समृद्ध, स्वस्थ एवं स्वच्छ भारत का निर्माण करें |

Dr. S R Maloo

21-10-2021, 11:43 am

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विभिन्न फसलों की अधिक उत्पादन देने वाली नई किस्में जारी

गेहूं की अधिक उत्पादन देने वाली नई किस्में

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, राज्य और केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि विज्ञान केंद्रों में विकसित गेहूं की अधिक उत्पादन देने वाली छह किस्में जारी की गई जो इस प्रकार से हैं-डी.बी.डब्ल्यू-332, डी.बी.डब्ल्यू-327, एच.आई.-1636, एच.यू.डब्ल्यू-838, एम.पी. (जे.डब्ल्यू) 135 और  एच.आई.-8123

गेहूं की इन किस्मों की विशेषता ये हैं कि ये किस्में रोग प्रतिरोधक किस्में है। इसके अलावा इसमें प्रोटीन, आयरन और जिंक से भरपूर मात्रा पाई जाती है जो स्वास्थ्य के लिहाज से भी अच्छी है।

धान की नई किस्में

पूसा बासमती-1979, पूसा बासमती-1985, पूसा बासमती-1886, पूसा बासमती-1847, पूसा बासमती- 1885, डी.आर.आर. धान-58, डी.आर.आर. धान-59 और डी.आर.आर.धान-60

धान की नई किस्में रोग-प्रतिरोधी हैं। इनमें से धान की पूसा बासमती 1886, पूसा बासमती 1847 और पूसा बासमती 1885 किस्में बैक्टीरियल ब्लाइट रोग प्रतिरोधी हैं। बता दें कि धान में लगने वाला बैक्टीरियल ब्लाइट रोग से ग्रस्त पौधों की पत्तियां पीली पडऩे लग जाती हैं तथा सूखने लगती हैं। जिससे पौधों का विकास रुक जाता है तथा बालियां नहीं निकल पाती हैं। पौधे झुलस जाते हैं। 

मक्का की नई किस्में

1.  पूसा एच.क्यू.पी.एम-1 इम्प्रूव्ड (ए.पी.क्यू.एच-1)
2.  पूसा बायोफोर्टीफाइड मक्का हाईब्रिड1 (ए.पी.एच-1)
3.  पूसा एच.एम 4 मेल स्टेराइल बेबीकार्न (ए.बी.एस.एच. 4-1)

मक्का की ये तीनों किस्में अच्छी पैदावार देने वाली किस्में हैं। इसी के साथ ये किस्में रोग प्रतिरोधी होने के साथ ही अच्छी गुणवत्ता वाली किस्में बताई जा रही हैं।  

चना की नई किस्में

 पूसा चना 4005 और  चना आई.पी.सी.एम.बी  19-3 (समृद्धि)

चने की यह दोनों ही किस्में सूखा सहिष्णु वाली किस्में हैं। यानि सूखा ग्रस्त इलाकों के में भी इसे उगाया जा सकता है। इसमें से पूसा चना 4005 किस्म सूखा सहिष्णु होने के साथ ही उच्च उपज रोग प्रतिरोध क्षमता वाली किस्म बताई गई है।

सोयाबीन की नई किस्में

 एन.आर.सी. 138,  के.बी.व्ही.एस.1 (करूने) और  एन.आर.सी. 142

सोयाबीन की ये किस्में अधिक पैदावार देने वाली किस्में हैं। इनमें से सोयाबीन एनआरसी 138 किस्म कम समय में तैयार होने वाली बताई गई है। ये किस्म यांत्रिक कटाई के लिए उपयुक्त बताई जा रही है। 

बाजारा की नई किस्में

 पी.बी 1877 और  एच.एच.बी. 67 इम्प्रूव्ड 2

बाजरा की इन दो नई किस्में रोग प्रतिरोधी होने के साथ ही अधिक उपज देने वाली किस्म बताई जा रही है। इसमें से बाजरा की संकर एचएचबी 67 किस्में प्रति बूंद अधिक फसलकी अवधारणा पर विकसित की गई है।

ज्वार की नई किस्में

 जैसररसीला-सी.एस.वी. 49 एस.एस (एस.पी.वी. 2600)

Dr. S R Maloo

19-10-2021, 02:11 pm

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Professor of Genetic and Plant Breeding

प्रमुख मूल फसलें

प्रमुख मूल फसलें

Dr. S R Maloo

19-10-2021, 02:01 pm

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उत्तम बीज-भरपूर पैदावार

बीज एक प्रमुख कृषि आदान है। अच्छी फसल लेने के लिये उत्तम बीज का बोना अति आवश्यक है। उन्नत बीज के प्रयोग से फसल की पैदावार 15-20% अधिक प्राप्त होती है अतः सही किस्म के उन्नत बीज लगाकर आर्थिक लाभ बढ़ाया जा सकता है। किसान उन्नत किस्मों के अच्छे बीज के अभाव में अच्छी पैदावार प्राप्त नहीं कर सकता, चाहे वह अन्य सभी कृषि प्रक्रियाओं (सिंचाई, खाद तथा उर्वरक, कीटनाशक, पौध रोगनाशक आदि) का समुचित प्रयोग क्यों न कर लेवें। अतः किसी भी फसल के अधिक उत्पादन एंव गुणवत्ता के लिये उसका उन्न्त शुद्ध बीज सर्वोपरि महत्त्व रखता है। 

उन्न्त व शुद्ध बीज का सही अर्थ यही है कि बीज भौतिक तथा आनुवंशिक रुप से शुद्ध तथा मानक अंकुरण क्षमता का होना चाहिए। इनका स्तर प्रत्येक फसल के लिये निर्धारित है। 
आनुवंशिक शुद्धता के कारण ही उस बीज से उत्पन्न समस्त पौधौं में वांछित समरुपता, गुणों की समानता और पैदावार क्षमता आदि पाई जाती हैं। 

उत्तम बीज से लाभः

उत्तम बीज अच्छी खेती का आधार है। किसान उत्तम बीज का प्रयोग कर अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकता है। अधिक पैदावार के अतिरिक्त उत्तम बीज के प्रयोग से निम्नलिखित लाभ है -
1  बीजोें का अकुंरण अच्छा तथा समान रुप से होता है। 
2   पौधे स्वस्थ निकलते है।
3  पौधों में रोग की संभावनाए कम रहती है।
4  प्रमाणित बीज में अवांछित खरपतवारों के बीजों का मिश्रण नहीं होता है इस कारण खेत में खरपतवार कम निकलते है।
5   प्रमाणित बीज में अन्य फसलों एंव अन्य किस्मों के बीजों का मिश्रण नहीं होता है, अतः प्रमाणित बीज बोने से पैदावार अधिक और लाभ ज्यादा होता है।

 उन्नत किस्मों के शुद्ध बीज चार श्रेणियों में आते हैं-

1. नाभिक बीज : यह प्रजनक द्वारा उत्पादित उन्नत किस्म का वह प्रारम्भिक स्त्रोत बीज है जिसे विशेष निगरानी में प्रतिवर्ष निरंतरता बनाए रखने के लिये मुख्य स्त्रोत के रुप में तैयार किया जाता है ।

2. प्रजनक बीज : नाभिक बीज से उत्पादित बीज को प्रजनक बीज कहते है । इसे प्रजनक द्वारा ही उत्पादित किया जाता है तथा खेत और प्रयोगशाला में निरीक्षण एवं जाॅच-पड़ताल कर पारित किया जाता है। इसके लिए गोल्डन-यलो टेग दिया जाता है।  

3. आधार बीज : प्रजनक बीज से उत्पादित बीज को आधार बीज कहते है। इसे बीज निगम संस्थाओं के प्रक्षेत्रो पर पृथक्करण दूरी एवं अन्य सावधानियों से उगाया जाता है। इसका पंजीकरण बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा बीज अधिनियम के अंतर्गत होता है। फसल के आनुवंशिक गुणों और लक्षणो के आधार पर शुद्विकरण, अवांछित पौधों को निकालना एंव प्रसंस्करण की तकनीकी विधियों का पालन करते हुए लेबल लगाए जाते हैं। इसे भौतिक शुद्वता, आनुवंशिक शुद्वता और न्यूनतम अंकुरण क्षमता के पारित होने पर प्रमाण पत्र अथवा सफेद लेबल दिया जाता है। 

4 प्रमाणित बीज : आधार बीज को बहुगुणित करने पर उत्पादित बीज प्रमाणित बीज कहलाता है। इसे आधार बीज से पंजीकृत कृषकों के प्रक्षेत्रों पर सभी सावधानियों एंव बीज नियमों का पालन करते हुए उत्पन्न किया जाता है। प्रमाणित बीज ही बाद में कृषकों को खेती करने लिए दिया जाता है। इस बीज को भी शुद्वता, अंकुरण क्षमता तथा आनुवंशिक शुद्वता की जाँच  के बाद ही प्रमाणित बीज नीले रंग का लेबल दिया जाता है। यह कार्य बीज प्रमाणीकरण संस्था करती हैं। 

किसी भी फसल की सफलता बीज के कुशल और सजग चुनाव पर निर्भर करता है। अतः बीज के चुनाव में निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना चाहिए-
1. बीज की भौतिक शुद्वताः  बीजों में किसी दूसरी फसल, किस्म एंव खरपतवारों के बीजोें का मिश्रण नहीं होना चाहिए। उसमें कंकड़ पत्थर, धूल, मिट्टी, भूसा डंठल आदि नहीं होने चाहिए। 

2. बीज की अंकुरण क्षमताः  बीज का मूल्यांकन उसके अंकुरण प्रतिशत पर निर्भर करता है। प्रत्येक फसल के लिये अकुंरण प्रतिशतता का निम्न स्तर बीज परीक्षण संस्था द्वारा निश्चित किया जाता है। अंकुरण प्रतिशतता ही बुवाई के लिये बीज दर निर्धारित करती है।

3. बीज की जीवन क्षमताः बीज को कीटों द्वारा नुकसान पहुँचने, अधिक नमी तथा ताप पर बीजों का भण्डारण या अन्य भण्डारण दोषों से उनकी जीवन क्षमता समाप्त हो जाती है। बीज के भ्रूण को क्षति पहुँचाने पर उसकी जीवन क्षमता नष्ट हो जाती है।

4  बीज पूरी तरह पका होः  सामान्य परिपक्व बीज चमकीला,साफ तथा भरा हुआ होता है और अपरिपक्व बीज सिकुडे हुए, छोटे तथा बदरंग होते है। बीज पुराना होने के कारण अथवा परिपक्वता में कमी होने के कारण कम अंकुरण व कम जीवन क्षमता वाले हो जाते है। 

5. बीजोें का रोगाणु एंव कीटाणु रहित होनाः -बुवाई के लिये बीजों का रोगाणु व कीटाणु रहित होना आवश्यक है। बीज द्वारा फैलने वाले रोगों के रोगाणु बीजों पर आक्रमण कर उन्हे बुवाई के लिए अनुपयुक्त कर देते है। भन्डारण के दौरान भी बीजों पर विभिन्न कीटों का प्रकोप रहता है, जिससे वह बुवाई के लिए अयोग्य हो जाते हैं। अतः बीजों को रोग व कीटाणु रहित रखने के लिए भौतिक अथवा रासायनिक विधि द्वारा उपचारित किया जाता है।

6. बीज प्रसुप्तिः  कुछ फसलों के बीज पूरी तरह परिपक्व होते हुए एंव अंकुरित होने के लिए सभी आवश्यक तथा अनूकुल परिस्थितियाँ प्रदान करने पर भी अंकुरित नही हो पाते है। अतः ऐसे बीजों का चुनाव नहीं करना चाहिए जो प्रसुप्तावस्था मे हो। अधिकांश फसलोें के बीज कुछ समय तक भण्डारण करने के पश्चात इस अवस्था से बाहर निकल आते है। अगर बीज प्रसुप्तावस्था में हो तो विभिन्न उपचारों ( प्रकाश, तापमान, रसायन) द्वारा प्रसुप्ति तोड देनी चाहिए । 

उत्तम गुणों से युक्त शुद्ध एवं पनप सकने की क्षमता रखने वाले ऐसे बीज जिनमें नमी और अंकुरण क्षमता उपयुक्त स्तर की होती है, इसके माध्यम से परम्परागत बीजों की तुलना में 15-20% अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। किसान खेती की नई-नई वैज्ञानिक विधियाँ तथा अधिक उपज देने वाली किस्मों को अपनाकर खेती को एक लाभप्रद व्यवसाय बना सकता है।

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18-10-2021, 04:00 pm

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रायपुर (छत्तीसगढ़) में जैवविविधता संग्रहालय (बैंक) का उद्घाटन, 30 हजार से अधिक किस्मों का प्रदर्शन

रायपुर (छत्तीसगढ़) में जैवविविधता संग्रहालय (बैंक) का उद्घाटन, 30 हजार से अधिक किस्मों का प्रदर्शन 

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की आर.एल. रिछारिया प्रयोगशाला में धान की 24 हजार 750 पारंपरिक प्रजातियों एवं अन्य फसलों की 6 हजार 125 प्रजातियों के जनन द्रव्य संग्रहण हेतु निर्मित जैवविविधता संग्रहालय का विरात सप्ताह में उद्घाटन किया गया है।

इस दौरान इस संग्रहालय में धान एवं अन्य फसलों की 30 हजार 875 प्रजातियों को भौतिक रूप से प्रदर्शन किया गया है तथा उनके विशिष्ट गुण एवं विस्तृत जानकारियां डिजीटल रूप में प्रदर्शित की गई है। संग्रहालय में  तिंवरा की 1009, अलसी की 2000 किस्मों का प्रदर्शन भी किया गया है। इसके अलावा किसान भाइयों की लगभग 500 से अधिक प्रजातियों का पंजीयन भारत सरकार में कराया गया है। इन प्रजातियों का उपयोग नयी प्रजातियों के विकास के लिए होगा।                                 

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ द्वारा विशिष्ट गुणों वाली फसलों की नई किस्में जारी

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ द्वारा की ओर से विशिष्ट गुणों वाली धान सहित अन्य फसलों की बेहतर उत्पादन देने वाली आठ नई किस्मों को जारी किया गया है। इन किस्मों में धान की बौनी विष्णुभोग, बौनी सोनागाठी, छत्तीसगढ़ धान-1919, छत्तीसगढ़ तेजस्वी धान जारी की गई है। इसके अलावा विश्वविद्यालय की ओर से मक्के की सी.जी. अगेती संकर मक्का, सोयाबीन की छत्तीसगढ़ सोयाबीन-1115, करायत की सी.जी. करायत-1 तथा गूसबेरी की सी.जी. केप गूसबेरी-1 प्रजातियां शामिल हैं। 

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18-10-2021, 03:59 pm

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विभिन्न फसलों की अधिक उत्पादन देने वाली नई किस्में जारी

28 सितम्बर 2021 को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, राज्य और केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि विज्ञान केंद्रों में विकसित 35 नई फसल किस्में जारी की थी। इनमें चना की सूखा-सहिष्णु किस्म, विल्ट और बांझपन मोज़ेक प्रतिरोधी अरहर, सोयाबीन की जल्दी पकने वाली किस्म, चावल की रोग प्रतिरोधी किस्में और गेहूं की जैव-फोर्टिफाइड किस्में, बाजरा, मक्का और चना सहित दलहनी फसलों की किस्में शामिल की गई |

 

गेहूं की अधिक उत्पादन देने वाली नई किस्में

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, राज्य और केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि विज्ञान केंद्रों में विकसित गेहूं की अधिक उत्पादन देने वाली छह किस्में जारी की गई जो इस प्रकार से हैं-डीबीडब्ल्यू 332, डीबीडब्ल्यू 327, एचआई 1636, एचयूडब्ल्यू 838, एमपी(जेडब्ल्यू) 135 और  एचआई 8123

Dr. S R Maloo

18-10-2021, 03:53 pm

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किसानों को मुफ्त में बांटे जायेंगे उन्नत बीज, बढ़ेगा उत्पादन

देश भर में 8,20,600 बीज मिनी किट का होगा वितरित

खबरों के अनुसार केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा एक विशेष कार्यक्रम के तहत देश के 15 प्रमुख उत्पादक राज्यों के 343 चिह्नित जिलों में निशुल्क  8,20,600 बीज मिनी किट वितरित किए जाएंगे। इस कार्यक्रम से बीज प्रतिस्थापन दर में वृद्धि होकर उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ सकेगी, जिससे किसानों की आय में वृद्धि होगी। 

देश के इन राज्यों के किसानों को भी मिलेगा फ्री बीज वितरण योजना का लाभ

फ्री बीज मिनी किट वितरण कार्यक्रम के तहत सभी प्रमुख दलहन और तिलहन उत्पादक राज्यों को शामिल किया गया है। इसके तहत मध्यप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, जम्मू एवं कश्मीर, झारखंड, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, असम, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा के विभिन्न जिलों को शामिल किया गया है। इस कार्यक्रम के लिए 1066.78 लाख रु.आवंटित किए गए है। मध्यप्रदेश के मुरैना व श्योपुर, गुजरात के बनासकांठा, हरियाणा के हिसार, राजस्थान के भरतपुर और उत्तर प्रदेश के एटा तथा वाराणसी जिलों को इस वर्ष के दौरान पायलट प्रोजेक्ट के तहत हाइब्रिड बीज मिनीकिट के वितरण के लिए चुना गया है। 5 राज्यों के इन 7 जिलों में कुल 1615 क्विंटल बीज से 1,20,000 बीज मिनी किट तैयार करके वितरण किया जाएगा। हर जिले को 15 हजार से 20 हजार बीज मिनी किट दिए जाएंगे। 

किसानों को मिलेगा फ्री बीज किट कार्यक्रम का लाभ

देश को दलहन और तिलहन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए केंद्र सरकार की ओर से फ्री बीज वितरण किट प्रोग्राम संचालित किया जा रहा है। इसके तहत मध्यप्रदेश के  किसानों को फ्री में दलहन और तिलहन के हाइब्रिड बीज वितरित किए जा रहे हैं। फ्री बीज मिनी किट वितरण की शुरूआत मध्य प्रदेश के मुरैना व श्योपुर जिले से हुई जहां लगभग दो करोड़ रुपए मूल्य के सरसों बीज मिनी किट वितरण किया गया | केंद्रीय कृषि मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने इसकी शुरुआत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम)-ऑयलसीड व ऑयलपाम योजना के तहत प्रारंभ किया की|

 देश के प्रमुख सरसों उत्पादक राज्यों के लिए सूक्ष्म स्तरीय योजना के बाद इस वर्ष रेपसीड व सरसों कार्यक्रम के बीज मिनी किट वितरण कार्यान्वित करने की मंजूरी दी गई है। 

  

सरसों की इन किस्मों के बीजों का भी होगा वितरण

बीज किट वितरण के नियमित कार्यक्रम के अलावा सरसों की तीन टीएल हाइब्रिड उच्च उपज देने वाली किस्मों के बीज मिनीकिट का भी वितरण किया जाएगा। इसके तहत सरसों की चयनित किस्में जेके-6502, चैंपियन व डॉन का वितरण होगा। उन्नत किस्म की तुलना में अधिक उपज देने के कारण हाइब्रिड/संकर बीज  का चयन किया जाता है। 

दलहन-तिलहन को लेकर क्या है सरकार की प्राथमिकताएं

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मध्यप्रदेश में बीज वितरण कार्यक्रम के दौरान कहा कि दलहन-तिलहन का उत्पादन व उत्पादकता बढ़ाकर इसमें देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मिशन मोड पर काम किया जा रहा है। इसी क्रम में 11 हजार करोड़ रुपए के खर्च से आयल पाम का राष्ट्रीय मिशन भी प्रारंभ किया गया है। कृषि मंत्री ने कहा कि किसानों को भी विभिन्न योजनाओं द्वारा अपनी खेती लागत घटाने का प्रयास करना चाहिए तथा खेती में पानी की बचत करने व वैकल्पिक खाद भी उपयोग करने का आग्रह किया।

Dr. S R Maloo

18-10-2021, 03:51 pm

A Renowned Scientist ,

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Professor of Genetic and Plant Breeding

World Food Day (विश्व खाद्य दिवस) 2021: जानें क्यों मनाया जाता है?

विश्व खाद्य दिवस 2021:

 हर साल 16 अक्टूबर को वर्ल्ड फूड डे (विश्व खाद्य दिवस) मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य वैश्विक भूख से निपटना और दुनिया भर में भूख मिटाने का प्रयास करना है। साथ ही लोगों को जागरुक करना है। विश्व खाद्य दिवस 1981 में पहली बार मनाया गया था। तब से यह हर साल 150 देशों में मनाया जा रहा है। इस दिवस को मनाने का श्रेय फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (Food and Agriculture Organization) के सदस्य देशों को जाता है। खाद्य और कृषि संगठन ने अपने 20वें महासम्मेलन में फूड डे मनाने का प्रस्ताव रखा गया था। जिसके बाद से यह दिवस पहली बार 1981 में मनाया गया।

भूख से मर रहे लाखों लोग आप सभी जानते हैं कि दुनियाभर में लाखों लोग इसलिए मर जाते हैं क्योंकि उन्हें समय से खाना नहीं मिलता है। वहीं दूसरी ओर ऐसे है, जिन्हें समय पर खाना मिलता है वो लोग खाना छोड़कर चल देते हैं। इसलिए केवल उतना ही लें जितना आप खा सकें। बेवजह खाने की बर्बादी न करें। भोजन हर व्यक्ति का मौलिक और बुनियादी अधिकार है।

इस दिन कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, ताकि लोग भूख पीड़ित व्यक्तियों की मदद करने के लिए प्रेरित हो और भूख से किसी की जा न जाएं।

विश्व खाद्य दिवस 2021 की थीम :

यह है : Our Actions Are Our Future- Better Production, Better Nutrition, a better Environment and a Better life है। यानी हमारे एक्शन ही हमारा भविष्य है। बेहतर उत्पादन, बेहतर पोषण, बेहतर वातावरण और बेहतर जीवन"। यह थीम फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन की ओर से दिया गया है।

Dr. S R Maloo

12-10-2021, 03:19 pm

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Professor of Genetic and Plant Breeding

अदरक द्वारा रोग उपचार

अदरक द्वारा रोग उपचार 

अपस्मार, जलोदर, गला बैठना, जुकाम, वमन, हैजा, ज्वर, बहुमूत्र, अपच, कान का दर्द, दांत का दर्द, सन्निपात ज्वर, निमोनिया, अम्लपित्त , नेत्रों का धुंधलापन, अजीर्ण, षरीर का ठंडा पड़ना, सायटिका, मंदाग्नि, सिरदर्द, नाभि हटना, आधासीसी दर्द आदि व्याधियों में लाभकारी है।

Dr. S R Maloo

12-10-2021, 02:57 pm

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Professor of Genetic and Plant Breeding

Remaining Important Dates in Agriculture - 2021

15 October (15 अक्टूबर)                                        

World women farmers Day

(विश्व महिला कृषक दिवस)

16 October (16 अक्टूबर)                                         

World Food Day

(विश्व खाद्य दिवस)

26 November (26 नवम्बर)                                  

 National Milk Day

(राष्ट्रीय दुग्ध दिवस)

3 December (3 दिसंबर)                                           

Agricultural Education Day

(कृषि शिक्षा दिवस)            

5 December (5 दिसंबर)                                            

World Soil Day

(विश्व मृदा दिवस)

23-29 December  (23-29 दिसंबर)                           

Kisan Diwas(Jai kisan Jai Vigyan Week)

(किसान दिवस (जय किसान जय विज्ञान सप्ताह)

Dr. S R Maloo

11-10-2021, 03:58 pm

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Professor of Genetic and Plant Breeding

एक ही पौधे पर बैंगन और टमाटर

एक ही पौधे पर बैंगन और टमाटर 

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी के वैज्ञानिकों ने ग्राफ्टिंग द्वारा बैंगन और टमाटर की खेती एक ही पौधे पर संभव बना दी है। इसको ब्रिमैटो नाम दिया है । बुवाई के 60 से 70 दिन बाद पौधे से टमाटर और बैंगन दोनों के फल आने लगे । इस तकनीक द्वारा शहरी क्षेत्रों में सब्जी उत्पादन को बढावा मिलेगा ।

Dr. S R Maloo

11-10-2021, 03:47 pm

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कृषि में केचुएँ का योगदान

कृषि में केचुएँ का योगदान 

Dr. S R Maloo

11-10-2021, 03:46 pm

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Professor of Genetic and Plant Breeding

Agri. Maps of Important Crops

Agri. Maps of Important Crops

Dr. S R Maloo

11-10-2021, 03:40 pm

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Professor of Genetic and Plant Breeding

गुणकारी कद्दू (काशी फल)

कहने-सुनने में भले ही 'कद्दू' शब्द का प्रयोग व्यंग्यात्मक रूप में किया जाता हो, लेकिन 'व्यंजनात्मक' रूप में इसका प्रयोग बहुत लाभकारी होता है। स्वाद के लिए भी और सेहत के लिए भी। प्रकृति ने अपनी इस 'बड़ी' देन में कई तरह के औषधीय गुण समेटे हैं। इसका सेवन स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। इस सब्जी में 'पेट' से लेकर 'दिल' तक की कई बीमारियों के इलाज की क्षमता है। जहां यह हृदयरोगियों के लिए बहुत लाभदायक होती है, वहीं कोलेस्ट्रॉल को कम करने में भी सहायक होती है।

कद्दू हमारे घर में बनाई जाने वाली आम सब्जी है लेकिन हम फिर भी इसे अपनी फेवरेट सब्जी के रूप में उल्लेख नहीं करते। यह बहुत ही स्वास्थ्य वर्धक सब्जी है जिसे हम नजरअंदाज कर देते हैं। भारत में कद्दू की कई प्रजातियां पाई जाती हैं जिन्हें उनके आकार-प्रकार और गूदे के आधार पर मुख्य रूप से सीताफल, चपन कद्दू और विलायती कद्दू के वर्गों में बांटा जाता है। हमारे यहां विवाह जैसे मांगलिक अवसरों पर कद्दू की सब्जी और हलवा आदि बनाना-खाना शुभ माना जाता है। उपवास के दिनों में फलाहार के रूप में भी इससे बने विशेष पकवानों का सेवन किया जाता है। लोगों में यह भी गलत धारणा है कि कद्दू मीठा होता है इसलिये इसे मधुमेह रोगी नहीं खा सकते। यह बात बिल्कुल गलत है। शरीर के इन्सुलिन लेवल को बढाना कद्दू का काम होता है 

कद्दू में मुख्य रूप से बीटा केरोटीन पाया जाता है, जिससे विटामिन ए मिलता है। पीले और संतरी कद्दू में केरोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत ज्यादा होती है। बीटा केरोटीन एंटीऑक्सीडेंट होता है जो शरीर में फ्री रैडिकल से निपटने में मदद करता है। कद्दू ठंडक पहुंचाने वाला होता है। इसे डंठल की ओर से काटकर तलवों पर रगड़ने से शरीर की गर्मी खत्म होती है। कद्दू लंबे समय के बुखार में भी असरकारी होता है। इससे बदन की हरारत या उसका आभास दूर होता है।

कद्दू का रस भी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। यह मूत्रवर्धक होता है और पेट संबंधी गड़बड़ियों में भी लाभकारी रहताहै। यह खून में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने में सहायक होता है और अग्नयाशय को भी सक्रिय करता है। इसी वजह से चिकित्सक मधुमेह के रोगियों को कद्दू के सेवन की सलाह देते हैं।

कद्दू के बीज भी बहुत गुणकारी होते हैं। कद्दू व इसके बीज विटामिन सी और ई, आयरन, कैलशियम मैग्नीशियम, फॉसफोरस, पोटैशियम, जिंक, प्रोटीन और फाइबर आदि के भी अच्छे स्रोत होते हैं। यह बलवर्धक, रक्त एवं पेट साफ करता है, पित्त व वायु विकार दूर करता है और मस्तिष्क के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है। प्रयोगों में पाया गया है कि कद्दू के छिलके में भी एंटीबैक्टीरिया तत्व होता है जो संक्रमण फैलाने वाले जीवाणुओं से रक्षा करता है। शायद इन्हीं खूबियों की वजह से कद्दू को प्राचीन काल से ही गुणों की खान माना जाता रहा है।

इसलिये आइये जानते हैं कद्दू के स्वास्थ्य लाभ के बारे में।
कद्दू खाने के स्वास्थ्य लाभ कद्दू के स्वास्थ्य लाभ-
1. एंटीऑक्सीडेंट से भरा- कद्दू में मुख्य रूप से बीटा केरोटीन पाया जाता है, जिससे विटामिन ए मिलता है। पीले और संतरी कद्दू में केरोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत ज्यादा होती है। बीटा केरोटीन एंटीऑक्सीडेंट होता है जो शरीर में फ्री रैडिकल से निपटने में मदद करता है। 

2. ठंडक पहुंचाए- कद्दू ठंडक पहुंचाने वाला होता है। इसे डंठल की ओर से काटकर तलवों पर रगड़ने से शरीर की गर्मी खत्म होती है। कद्दू लंबे समय के बुखार में भी असरकारी होता है। इससे बदन की हरारत या उसका आभास दूर होता है।

3. मन को शांति पहुंचाए- कद्दू में कुछ ऐसे मिनरल्स होते हैं जो दिमाग की नसों को आराम पहुंचाते हैं। अगर आपको रिलैक्स होना है तो आप कद्दू खा सकते हैं।

4. हृदयरोगियों के लिये- आहार विशेषज्ञों का कहना है कि कद्दू हृदयरोगियों के लिए अत्यंत लाभदायक है। यह कोलेस्ट्राल कम करता है, ठंडक पहुंचाने वाला और मूत्रवर्धक होता है।

5. मधुमेह रोगियों के लिये- कद्दू रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करता है और अग्न्याशय को सक्रिय करता है। इसी कारण चिकित्सक मधुमेह रोगियों को कद्दू खाने की सलाह देते हैं। इसका रस भी स्वास्थ्यवर्धक माना गया है।

6. आयरन से भरपूर्ण- कई महिलाओं में आयरन की कमी हो जाती है जिससे उन्हें एनीमिया हो जाता है। तो ऐसे में कद्दू सस्ता भी पड़ता है और पौष्टिक भी होता है। कद्दू के बीज भी आयरन, जिंक, पोटेशियम और मैग्नीशियम के अच्छे स्रोत हैं। 

7. फाइबर- इसमे खूब रेशा यानी की फाइबर होता है जिससे पेट हमेशा साफ रहता है।

Dr. S R Maloo

11-10-2021, 03:35 pm

A Renowned Scientist ,

Rajasthan, India

shivratan.maloo@yahoo.com

Professor of Genetic and Plant Breeding

अक्टूबर 2021 के प्रमुख कृषि कार्य

अक्टूबर 2021 के प्रमुख कृषि कार्य

  • तिलहन व दलहनी फसलों में 250 किलो जिप्सम प्रति हेक्टेयर भूमि की तैयारी के समय डालें ।
  • चने की उन्नत किस्मों की 30 सेमी. की दूरी पर कतारों में बुवाई करें । बुवाई पूर्व बीजों को राईजोबियम एवं कार्बेण्डाजिम-2 ग्राम प्रति किलो से उपचारित करें।
  • मटर (बटला) फसल की बुवाई सिफारिस अनुसार उर्वरक एवं 1 ग्राम अमोनियम मोलिब्डेट प्रति किग्रा बीज+राइजोबियम, पी.एस.बी व पी.जी.पी.आर. कल्चर से उपचारित करें।
  • सरसों के अंकुरण के 7-10 दिन में पेंटेड बग व आरा मक्खी का प्रकोप दिखाई देता हैं। इसकी रोकथाम हेतु क्युनालफॅास 1.5% या मिथाइल पैराथियान 2% चूर्ण 20-25 किलो प्रति हैक्टर की दर से भुरकाव करें।
  • मसूर की उन्नत किस्में डी.पि.एल.-62, आई.पी.एल.-81, जे.एल.-3, आई.पी.एल-316 की बुवाई करें। बीजो को बुवाई से पहले राइजोबियम पीबीएस कल्चर से उपचारित करें।
  • लहसुन की उन्नत किस्में एग्रीफाउंड पार्वती, एग्रीफाउंड सफेद, यमुना सफेद-2, जी-4, जी-323 की बुवाई करें। रबी प्याज की नर्सरी तैयार करें ।
  • पपीते की फसल में पर्ण कुंचन एवं मोजेक रोग की रोकथाम हेतु रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ फेकें तथा इसके प्रसार को रोकने के लिए डाईमिथोएट 30 ई.सी. या मिथाइल डीमेटॅान 25 ई.सी. एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
  • टमाटर की फसल में फल छेदक लट के नियंत्रण हेतु एसिफेट 75, एस.पी.2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से 15 दिन के अन्तराल से छिड़काव करें।
  • निम्बुवर्गीय पौधों में चुसक कीटों के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड 1 मिलीलीटर प्रति 3 लीटर पानी की दर से घोल का छिड़काव करें।
  • हरे चारे के लिये रिजका, बरसीम व जई की उन्नत किस्मों की बुवाई करें ।
  • गुलाब के पौधों की कटाई-छॅटाई करें। आँवला, सोयाबीन आदि का प्रसंस्करण करें।
  • पशुओं को खुलें में नहीं बांधे। भैंस को मद में आने पर समय पर ग्याभिन करवाएं
  • थनेला रोग से बचाने के लिये पूरा दूध निकालें तथा थनों को कीटाणु नाशक गोल से धोवें ।

 

KRISHILINE

02-10-2021, 05:22 pm

Krishi Paridrishya,

Rajasthan , India

krishiline@krishiline.com

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कृषि प्रधान देश भारत आयातक से निर्यातक की ओर

प्राचीन भारत विश्व के मानचित्र पर सदैव कृषि महाशक्ति के रूप में विराजमान रहा है। यदि भारत विश्वगुरू के सम्मान से सुशोभित रहा है तो इसका श्रेय यहां पर की जाने वाली ऋषि कृषि को ही जाता है। कालांतर में कृषि क्षेत्र में गिरावट देखने के बाद भारत के वैज्ञानिक और किसान एक बार फिर कृषि को महाशक्ति के रूप में स्थापित करने में जुट गये है।

किसानों और वैज्ञानिकों की कृषि उपलब्धियों ने देश को खाद्य उत्पादों की एक श्रृंखला में आयातक से निर्यातक बना दिया है। वर्तमान में भारत दूध, दालों, मसालें, चाय, काजू, और जूट का विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक देश है जबकि गेहूॅं, चावल, फल, सब्जियां, गन्ना, कपास और तिलहन के उत्पादन में दूसरा स्थान है। भारत न केवल कृषि क्षेत्र में उपलब्धियों की ऊंचाइयों को छू रहा है बल्कि विश्व के लगभग 4 प्रतिशत जल स्त्रोत और 2.4 प्रतिशत भूमि संसाधन होने के बावजूद विश्व की लगभग 18 प्रतिशत जनसंख्या को खाद्य सुरक्षा भी उपलब्ध करा रहा है जो अपनी तरह का अकेला वैश्विक कीर्तिमान है।
 

Dr. Shiv Ratan Maloo

03-09-2021, 11:16 am

A Renowned Scientist ,

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Professor of Genetic and Plant Breeding

सितम्बर माह के प्रमुख कृषि कार्य

मूंगफली में अंतिम सिंचाई करें, खड़ी फसल में दीमक की रोकथाम के लिये 4 ली क्लोरपायरीफॅास 20 ई.सी. प्रति हैक्टर सिंचाई के साथ देवें।

बारानी तारामीरा, तोरिया एवं सरसों की बुवाई करें। तारामीरा की उन्नत किस्में आर.टी.एस.ए. तथा आ.टी.एम. 2002 (नरेंद्र तारा), सरसों की बायो 902 (पूसा जय किसान), लक्ष्मी, वसुंधरा, स्वर्ण ज्योति एवं पूसा बोल्ड आदि का प्रयोग करें।

तिल में छाछ्या रोग नियंत्रण हेतु प्रति हैक्टर 20 किलो गंधक चूर्ण का भुरकाव अथवा 200 ग्राम बाविस्टिन का 15 दिन के अन्तर में छिडकाव करें  

मुंग, मोठ, चँवले की फसल में चित्ती रोग के लक्षण दिखाई देने पर स्ट्रेप्टोसाईंक्लिन 1 ग्राम एवं 20 ग्राम ब्लाईटोक्स का 10 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें।

खरीफ की विभिन्न बारानी फसलों में फड़का एवं हॅाक मोथ के नियंत्रण हेतु मिथाइल पैराथियॅान 2 % चूर्ण का 25 किलो प्रति हैक्टर की दर से भुरकाव करें।

बाजरे में अरगट रोग की रोकथाम के लिये 2.5 किलो जाईनेब या 2 किलो मेन्कोजेब प्रति हैक्टर की दर से 3 दिन के अन्तराल में 2 से 3 बार छिड़काव करें।

पत्ता गोभी व फूल गोभी की पौध नर्सरी में तैयार करें।

आँवले की उन्नत किस्में चक्कैया , आनंद-2, एन.ए. 6 व एन.ए. 7 का प्रयोग करें ।

पपीते की फसल में पर्ण कुंचन एवं मोजेक रोग की रोकथाम हेतु रोगग्रस्त पौधें को उखाड़कर नष्ट कर देवें तथा नीम्बू की फसल में केंकर रोगग्रस्त टहनियों को काट देवें आम में माथा बंधन (मॉल फोरमेशन) प्रभावित टहनियों को काट देवें ।   

बैंगन की पौध तैयार करें।

पानी बचत हेतु ड्रिप सिंचाई का उपयोग करें । कॅुओ पर सोलर पंप लगवावे।

पशुओं के नवजात बच्चों के रहने की जगह पर नमक या खनिज लवण की ईंट रखें।

वातावरणीय तापमान में उतार – चढाव से पशुओं को बचाएं तथा रोग ग्रस्त पशुओं को अलग स्थान पर रखें।

R K Jain

14-08-2021, 04:51 pm

Farms are the best sources for foundation of human civilization,

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Director-KRISHILINE

कृषि ऋण को बढ़ाने का लक्ष्य

ग्रामीण अर्थव्यवस्था और किसानों की आर्थिक स्थिती को मजबूत बनाने के लिए वितमंत्री श्रीमंत्री निर्मला सीतारमण ने कृषि ऋण लक्ष्य को बढ़ाकर 16.5 लाख करोड़ रूपये किया है। कृषि ऋण में किसान क्रेडिट कार्ड सबसे लोकप्रिय ऋण है। किसानों की आर्थिक क्षमता बढ़ाने में यह संजीवनी का काम कर रहा है।

वर्तमान में 11.5 करोड़ किसान प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का फायदा उठा रहें है, लेकिन इनमें से सिर्फ 6.5 करोड़ किसानों के पास किसान क्रेडिट कार्ड ऋण की सुविधा है। बचे हुए 5 करोड़ किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड ऋण दी जा सकती है और जो किसान इस ऋण को पाने के पात्र नहीं है, उन्हें स्वयंसहायता समूह (एस.एच.जी.) की तर्ज पर बैकों से जोड़कर किसानों को आर्थिक रूप सबल बनाया जा सकता है।

Dr. Shiv Ratan Maloo

02-08-2021, 01:10 pm

A Renowned Scientist ,

Rajasthan, India

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Professor of Genetic and Plant Breeding

अगस्त माह के प्रमुख कृषि कार्य

मक्का में तना छेदक कीट के नियंत्रण हेतु कार्बोफ्यूरान 3% के कण 5-7.5 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से पौंधो के पाटों में डाले तथा फड़का एवं सैन्य कीट नियंत्रण हेतु मिथाइल पेराथियान 2% चूर्ण 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से भुरकें।

सोयाबीन में गर्डल बीटल नियंत्रण हेतु ट्रायएजोफॅास 800 मिलीलीटर को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से छिडकें। समय समय पर खरपतवार नियंत्रण करें ।

कुष्माकुण्ड कुल की सब्जियों में फूल व फल गिरने की समस्या आती हैं। अत: इन फसलों में नियमित एवं हल्की सिंचाई करें तथा वृद्धी नियामक प्लेनोफिक्स का 0.25 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से छिडकाव करें।

बाजरा एवं ज्वार में फड़के का आक्रमण होने पर मिथाइल पैराथियॅान 2% चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से प्रात: या सांय भुरकाव करें।

मूंगफली में निराई-गुड़ाई करें तथा झुमका किस्म के पौधो की जड़ों पर मिटटी चढ़ाये।

किसान मित्र कीट ट्राईकोग्रामा, क्राईसोपर्ला आदि का प्रयोग कर समेकित कीट प्रबंधन करें।

अनार एवं नीम्बू में तितली के प्रकोप को क्यूनालफॉस ई.सी 15 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें।

गुलदाउदी , मोगरा व चमेली की कलमों को  लगाने का यह उत्तम समय हैं।

गाय आदि गर्मी में न आ रही हो तो उसकी जांच करायें।

भेड़ – बकरी में पी.पी.आर. तथा इटी वेक्सिन के टिके प्रतिवर्ष एक बार अवश्य लगवाएं।

KRISHILINE

25-06-2021, 12:04 pm

Krishi Paridrishya,

Rajasthan , India

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कड़कनाथ मुर्गी पालन

कड़कनाथ पालन अधिक आय का सृजन करने वाली कुक्कुट पालन की तकनीक है। कड़कनाथ एकमात्र भारतीय नस्ल की मुर्गी है जिसे जी.आई टैग प्राप्त है जिसका मुख्य आवास मध्यप्रदेश का झाबुआ जिला है। इसकी विशेषता यह है कि इसका मांस का रंग काला होता है तथा यह लगभग 25 प्रतिशत प्रोटिन से भरपुर है एवं इसके कई औषधीय गुण है। इसके मांस में कोर्नोसिन शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट भी पाया जाता है तथा वसा की मात्रा बहुत कम होती है। यह नस्ल साल भर में औसतन 80-90 अंडे देती है तथा इसके चिकन का बाजार मूल्य भी अधिक है। कड़कनाथ मुर्गी नस्ल देश के 20 राज्यों के 177 जिलों में फैल चुकी है तथा इसका निर्यात एशियाई देशों में भी किया जा रहा है। कड़कनाथ मुर्गा दुनिया में उपलब्ध दुर्लभ पक्षियों में से एक है जो रसोई के कचरे पर भी जीवित रह सकता है।

कड़कनाथ मुर्गे की प्रजाति के तीन रूप होते है- 1. जेड ब्लेक कड़कनाथ : इसके पंख पूरी तरह से काले होते है, 2. पेंसिल्ड कड़कनाथ- इस मुर्गे का आकार व पंख पेंसिल की तरह होता है, 3. गोल्डन कड़कनाथ- इस मुर्गे के पंख पर गोल्डन रंग के छींटे होते है। कड़कनाथ मुर्गा पालन करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि प्रत्येक नस्ल के लिए एक अलग शेड बनाना चाहिये, कभी भी एक शेड में दो कड़कनाथ नस्ल के मुर्गे नहीं रखने चाहिये तथा दो शेड पास-पास नहीं बनाने चाहिए।

KRISHILINE

20-06-2021, 01:52 pm

Krishi Paridrishya,

Rajasthan , India

krishiline@krishiline.com

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किसानों की आय दोगुनी करने के मॉडल

किसानों की आय दोगुनी करने में विभिन्न कृषि तकनीकों का समावेश जरूरी है क्योंकी केवल उत्पादन बढ़ाने से किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसके लिये यह भी आवश्यक है कि उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ आदानों पर होने वाले खर्च में भी कमी हो। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुये ऐसी तकनीक या प्रणाली को अपनाना होगा जिसमें एक प्रणाली का उत्पाद दूसरी प्रणाली के लिये आदान का काम करें एवं एक दूसरे के पूरक हो। एकीकृत या सम्नवित कृषि प्रणाली किसानों की आय दोगुना करने में सक्ष्म है, उदाहरण के तौर पर निम्नलिखित मॉडल प्रस्तुत किये जा रहें है-

भूमिहीन किसानों के लिये : मधुमक्खी पालन, मशरूम उत्पादन, बकरी पालन, बैकयार्ड मुर्गीपालन

लघु व सीमांत किसानों के लिये (वर्षा आधारित स्थिती 2-4 एकड़) : धान-गेहूॅं + सब्जी उत्पादन + चारा उत्पादन + दुग्ध उत्पादन + बकरी पालन + मुर्गीपालन + नाडेप/ वर्मीकम्पोस्ट + खेतों की मेड़ पर फल व फूलों की खेती

लघु व सीमांत किसानों के लिये (सिंचित अवस्था में 2-4 एकड़) : फसल उत्पादन + सब्जी उत्पादन + एजोला उत्पादन + मुर्गीपालन + मछलीपालन या फसल उत्पादन + सब्जी उत्पादन + बकरीपालन + मुर्गीपालन + मछलीपालन + वर्मी कम्पोस्ट + एजोला उत्पादन + खेतों की मेड़ पर फल व फूल उत्पादन

बड़े किसानों के लिये (4 एकड़ से अधिक) : सघन फसल उत्पादन + सब्जी उत्पादन + दुग्ध उत्पादन + बैकयार्ड मुर्गीपालन (कड़कनाथ मुर्गी पालन) या सघन फसल उत्पादन + दुग्ध उत्पादन + मधुमक्खी पालन + मशरूम उत्पादन

तालाब आधारित कृषि पालन : मछलीपालन + बतखपालन, मछलीपालन + मुर्गीपालन, मछलीपालन + फसल उत्पादन, मछली पालन + दुग्ध उत्पादन + फसल उत्पादन 

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19-06-2021, 08:41 pm

Krishi Paridrishya,

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साल 2019-20 में रीकॉर्ड फसल उत्पादन

भारत में वर्ष 2019-20 के दौरान 27.26 करोड टन अनाज, 2.30 करोड टन दालें, 3.35 करोड टन तिलहन, 35.81 करोड टन गन्ना, 3.60 करोड बेल कपास, 99.2 लाख करोड बेल जूट और 32.04 करोड टन फल व सब्जी का उत्पादन होने का अनुमान है।  

भारत अब खाद्यान्न, मसालों और दूध आदि के सबसे बड़े उत्पादक देशों में शामिल हो गया है। कृषि का बेहतर और टिकाऊ मॉडल इस बात पर निर्भर करता है कि हमारे किसान कृषि तकनीक से जुड़े शोध और विकास के क्षेत्र में हुई प्रगति के बारे में कितने जागरूक है।   

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01-06-2021, 01:39 pm

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कृषि मृदाओं में जैविक कार्बन की उपयोगिता

ऊपजाउ मृदाओं में जैविक कार्बन की उपस्थिती को सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है। जिन मृदाओं में जैविक कार्बन की उपस्थिती 0.75 प्रतिशत पायी जाती है वे मृदाएं अधिक ऊपजाउ मानी जाती है। जब ट्रेक्टर या हल से खेत की जुताई करने पर मृदा की लाइनों में निशान वैसा का वैसा रह जाता है तो समझ लेना चाहिये कि इस मृदा में जैविक कार्बन की कमी है। लेकिन जब ट्रेक्टर या हल से खेत की जुताई करने पर मृदा की लाइनें थोड़ी-थोड़ी ढकती चली जाती है तो समझ लेना चाहिये कि इस मृदा में जैविक कार्बन की स्थिती अच्छी है। जिन मृदाओं में जैविक कार्बन जितना अच्छा होता है वे मृदाएं उतनी ही ज्यादा जीवंत मानी जाती है। जैविक कार्बन की उपस्थिती से ही मृदाओं में सूक्ष्मजीवि, केचुएं आदि पनपते है।

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27-05-2021, 08:51 am

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आर्मी वॉर्म (सैनिक कीट) का नियंत्रण

वर्षा आरम्भ होते ही इस कीट का प्रकोप शुरू हो जाता है। फसल कीट नियंत्रण विशेषज्ञों के अनुसार सैनिक कीट के नियंत्रण के लिये सूर्यास्त के समय या तुरंत बाद में फसल पर कीटनाशियों का छिड़काव करना लाभप्रद होता है।

R K Jain

22-05-2021, 11:20 am

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बागवानी और मसाला फसलों में ऊंचाईयों का छूता भारत देश

हाल ही के वर्षो में अनेक राज्यों में बागवानी फसलें आर्थिक विकास का सूत्रधार बन गई है और देश के कृषि जी.डी.पी. में बागवानी का योगदान 30.4 प्रतिशत तक पहुॅंच गया है। वैश्विक स्तर पर भारत फलों और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। आम, केला, पपीता और अनार उत्पादन में हम शिखर पर है। अपनी प्राचीन पंरपरा को पुनर्जीवित करते हुये हमारा देश मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश बन गया है। यह सब भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और राज्य स्तरीय कृषि विश्वविद्यालयों के संबंधित प्रयासों का ही प्रतिफल है। 

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20-04-2021, 11:58 am

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दूषित जल एवं उचित सिंचाई प्रबंधन

जल में घुलनशील लवण का होना : वाष्पोतसर्जन के बाद हानिकारक लवणों के सतह पर आने से पौधों की वृद्धि दर कम हो जाती है। ऐसे हालात में भूमि की सतह से लवणों को खुरचना चाहिए।

पानी में क्षार व सोडियम का अधिक होना : जल की मृदा में प्रवेशता कम हो जाती है, मृदा में हल्के गड़ढ़ों में क्षार इक्ट्ठा होने लगता है, पौधों में जड़ों की वृद्धि रूक जाती है। निवारण के लिये ढेंचें की हरी खाद उगाएं, वर्षा से पहले जिप्सम डालें, जैविक खाद का अधिक उपयोग करें।

जल में लवणों के अतिरिक्त हानिकारक तत्व जैसे भारी तत्व एवं बोरॉन आदि होना : मृदा जॉंच में तत्वों की उपलब्ध मात्रा अधिक आयेगी, पौधे की सम्पूर्ण वृद्धि रूक जाती है एवं उपज में भारी गिरावट आती है। निवारण के लिए प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करें, जैविक खाद का अधिक प्रयोग करें।

R K Jain

18-04-2021, 08:51 am

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भारत का कृषि निर्यात

2019 में 39 बिलियन डॉलर (लगभग 273,000 करोड रूपयें) के वार्षिक कृषि निर्यात के साथ भारत विश्व में आठवें स्थान पर रहा। यूरोप 181 बिलियन डॉलर मूल्य के कृषि निर्यात के साथ पहले नम्बर पर है। यदि भारत के गांवों में इन्फ्रास्टक्चर सुविधाओं के साथ-साथ कृषि विस्तार सेवाओं पर ध्यान केन्द्रित किया जाए और किसानों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने का हर संभव प्रयास किया जाए तो कृषि वस्तुओं के निर्यात के मामले में भारत को विश्व के शीर्ष 5 निर्यातकों में नाम दर्ज कराने में देर नहीं लगेगी।

देश के कृषि वैज्ञानिकों के साथ-साथ केन्द्र और राज्यों की कृषि विस्तार ऐंजिसिंयो को यह जिम्मेदारी लेनी होगी कि हम देश के कृषि निर्यात को 10 लाख करोड रूपये तक पहुॅंचाकर ही दम लेगें। इसके साथ-साथ आम आदमी को भी कृषि की तरफ ध्यान देना होगा, वे दुनिया में कहीं भी जायें तो गर्व से कह सके कि हम कृषि प्रधान भारत देश के नागरिक है।   

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17-04-2021, 10:25 am

Krishi Paridrishya,

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पूसा बासमति-1121

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा प्रजनित पूसा बासमति-1121 विश्व की सबसे बड़ी लंबे दानें वाली धान की किस्म है। इस किस्म की विश्व में सर्वाधिक मांग है। साल 2003 में इसका व्यापारीक उत्पादन शुरू हुआ। साल 2013 तक अनेक राज्यों में इस किस्म ने अपना धान की खेती में लगभग अपना एकाधिकार स्थापित कर लिया। धान की पंरपरागत किस्में जिनका उत्पादन 9-10 क्विं प्रति एकड़ आता था, वहीं पूसा बासमति-1121 का उत्पादन प्रति एकड़ 19-20 क्विं आने लगा। इस किस्म के निर्यात से साल 2009 में 27,597 करोड़ रूपये की वदेशी मृद्रा अर्जित की गई। 

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16-04-2021, 11:26 am

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गेहूं की फसल में सूक्षम तत्त्वों का प्रयोग कैसे करें

सामान्यतः एक हेक्टेयर में गेहूं की फसल द्वारा 200-250 ग्रा. बोरॉन, 250-300 ग्रा. कॉपर, 400-600 ग्रा. जस्ता, 15-35 ग्रा. मोलिब्डेनम, 2000-3500 ग्रा. लोहा व 375-425 ग्रा. मैंगनीज का शोषण कर लिया जाता है जिसकी आपूर्ति पर्णीय छिड़काव विधि द्वारा लाभप्रद मानी जाती है क्योंकी इन उर्वरकों को मृदा में मिलाने से सम्पूर्ण मात्रा का उपयोग नहीं हो पाता है एवं बीजों के साथ मिलाकर उपयोग करने से इन तत्त्वों की अधिक सान्द्रता के कारण कभी-कभी बीजों के जमाव में बाधा पड़ जाती है।

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15-04-2021, 04:46 pm

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हाइड्रोपोनिक तकनीक (जलीय कृषि)

हाइड्रोपोनिक तकनीक (जलीय कृषि) की विशेषता यह है कि इसमें मिट्टी के बिना और पानी के सीमित इस्तेमाल से सब्जियां और फल पैदा किए जाते है। इसमें न तो अनावश्यक खरपतवार उगते है और न ही इन पौधो पर कीड़े लगने का डर रहता है। यह तकनीक पत्ते वाली सब्जियों के लिए अधिक उपयुक्त है। वर्तमान में खेतों में प्रति बीघा 10 से 12 हजार स्ट्राबेरी के पौधे लगाए जाते है। इस तकनीक का उपयोग कर प्रति बीघा 30 से 70 हजार पौधे लगाए जा सकते है तथा उत्पादन को कई गुना बढाया जा सकता है। 

परंपरागत तकनीक से पौधे उगाने की अपेक्षा इस विधि में कई लाभ है। विपरीत जलवायु परिस्थितियों में भी यह विधि कारगर है। जहां जमीन की कमी है, मिट्टी उपजाउ नहीं है, वहां भी उपज ली जा सकती है। एक अनुमान के अनुसार 5 से 8 इंच ऊंचाई वाले पौधे के लिए प्रति वर्ष 1 रू से भी कम खर्च आता है। इसकी मदद से कहीं पर भी पौधे उगाये जा सकते है एवं 20 प्रतिशत पानी ही बागवानी के लिए पर्याप्त है। घरों एवं बड़ी इमारतो में यह विधि काम में ली जा रही है। इस प्रकार की फसलों में कीटनाशकों का इस्तेमाल शुन्य के बराबर होता है। इस विधि में उगाई गई फसलें और पौधे आधे समय में तैयार हो जाते है। जमीन में उगाए जाने वाले पौधो की अपेक्षा इस तकनीक में कम स्थान की आवश्यकता होती है। इस तरह यह जमीन और सिंचाई प्रणाली के अतिरिक्त दबाव से छुटकारा दिलाने में सहायक है।

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14-04-2021, 04:22 pm

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वर्मी कम्पोस्ट बनाते समय ध्यान रखने योगय कुछ महत्वपूर्ण बातें

सूर्य की तेज धूप व गर्म हवा से खाद को बचाने तथा मुर्गियों व पक्षियों से केचुओं का बचाने के लिए छप्पर के चारों ओर जूट के पर्दे लगा देने चाहिए। यदि ऐसा संभव न हो तो अवशेष पदार्थो के ढेर को गीली बोरी से ढककर आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव भी कर सकते है।

वर्मीकम्पोस्ट की आर्द्रता व गीलापन बनाए रखने के लिए दिन में एक बार ऊपर से पानी का छिड़काव करना आवश्यक है। अधिक गर्मी में दिन में दो बार भी पानी का छिड़काव करना पड़ सकता है।

कम्पोस्ट के ढेर का तापमान नहीं बढ़ना चाहिए अन्यथा खाद की गुणवत्ता में कमी आ जाती है और केचुओं के मरने की संभावना भी रहती है। अतः वर्मीकम्पोस्ट के ढेर के तापमान का नियंत्रित रखने के लिए 10वें दिन, 20वें दिन तथा 30वें दिन बिछौने से ऊपर की परत, जिसमें अवशेष पदार्थ व गोबर मिला हो, को अच्छी तरह हिला देना चाहिए ताकि ढेर से हिट निकल सके। 

एक महिने बाद खाद तैयार होनी शुरू हो जाती है, अतः 35 वें दिन पानी का छिड़काव बंद कर देना चाहिए जिससे सारे केचुएं नीचे बने बिछौने की ओर जा सके। 

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13-04-2021, 01:40 pm

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भारत का मछली व्यव्साय

1.34 करोड टन उत्पादन के साथ भारत का मात्स्यिकी क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। घरेलू मांग पूरी करने के साथ ही मछली निर्यात से देश को 7 बिलियन डॉलर (49,000 करोड़ रूपये) की विदेशी मुद्रा भी प्राप्त हुई है। 

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29-03-2021, 09:52 am

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सी.ओ. 0238 (करन-4) गन्ने की सर्वाधिक उपज देने वाली प्रजाति

एक उच्‍च उपजशील और उच्‍च शर्करा मात्रा वाली किस्‍म है जिसे Co LK 8102 x Co 775  के क्रॉस से उत्‍पन्‍न किया गया है। इस किस्‍म का विकास गन्‍ना प्रजनन संस्‍थान, क्षेत्रीय केन्‍द्र, करनाल में किया गया। इस किस्म से 81 टन प्रति हेक्टेयर उपज ली गई है। इस किस्‍म में उच्‍च गन्‍ना उपज और बेहतर जूस गुणवत्‍ता दोनों गुण सम्मिलित हैं, यह किस्‍म कहीं तेज गति से खेत में फैलती है और इसलिए किसानों और चीनी उद्योग दोनों द्वारा इसे पसंद किया जा रहा है।

उत्तर भारत में किसान गन्ने के आधे से ज्यादा क्षेत्र में यह किस्म लगाकर अच्छा मुनाफा कमा रहें है। अतः वर्तमान परिदृश्‍य में, इस किस्‍म की खेती से चीनी मिलों को होने वाले नुकसान में कमी लाने में कुछ हद सहायता मिली है। वर्ष 2014-15 के दौरान Co 0238 की खेती करने से अकेले उत्‍तर प्रदेश राज्‍य के किसानों और चीनी मिलों को 137.5 करोड़ रूपये का अतिरिक्‍त लाभ हुआ है।

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13-04-2021, 01:39 pm

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दलहन उत्पादन में देश आत्म निर्भरता की ओर

विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं शाकाहारी स्वास्थ संगठन के अनुसार शाकाहारी स्वस्थ मनुष्य में प्रोटीन की पूर्ति के लिए 80-100 ग्राम दाल प्रति व्यक्ति प्रतिदिन की आवश्यकता होती है। लेकिन वर्तमान में यह उपलब्धता मात्र 38 ग्राम दाल ही प्रति व्यक्ति प्रतिदिन ही है जिसे पूरा करने हेतु दलहनों का आयात करना पड़ता है। विश्व के दलहन उत्पादन में भारत की भागीदारी लगभग 25 प्रतिशत है तथा विश्व का सबसे अधिक दलहन उत्पादक देश है। वर्ष 2015-16 में दलहनो का उत्पादन 1.7 करोड टन प्राप्त हुआ था तथा वर्तमान में यह उत्पादन लगभग 2.4 करोड टन है, जो मांग से अभी भी कम है।   

भारत के किसानों ने गेहूॅं, चावल तो इतना पैदा किया कि सारे गोदाम भर गये लेकिन दलहन उत्पादन में हम आज भी पीछे है। केन्द्रीय कृषि मंत्री मान्नीय श्री नरेन्द्र सिंह तोमर दलहन उत्पादन में देश को आत्मनिर्भर बनाने के इस राष्ट्रीय प्राथमिकता में रखा है और दलहन की खेती को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रहें है।      

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25-03-2021, 02:15 pm

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सोलर वाटर पंप

विशलेषकों के अनुसार अगर भारत के खेतों में चलने वाले 10 लाख डीजल पंपों के बजाय सोलर पंप लगा दिए जाए तो खेती की उत्पादकता 30 हजार करोड़ रूपये बढ़ जाने का अनुमान है। बेशक सोलर पंप सामान्य पंप के मुकाबले महंगे होते है लेकिन इन पंपों पर मिलने वाली सब्सिडी व डीजल की जो बचत होगी, उससे सोलर पंप बहुत आराम से लग जाएंगें।
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में जहॉं अक्सर बिजली की समस्या रहती है या आधी रात को बिजली की आपूर्ति होती है, वहां सोलर वाटर पंप बहुत अधिक फायदेमंद हो सकते है। ग्रामीण क्षेत्रों में डीजल इंजन के मेंटिनेस पर अधिक खर्च आता है और साथ ही प्रदूषण भी अधिक होता है। सोलर पंप में ज्यादा मेंटिनेंस की जरूरत नहीं पड़ती है। पानी की गहराई के आधार पर दो प्रकार के सोलर पंप इस्तेमाल किये जाते है :

1. सरफेश सोलर वाटर पंप- यह आकार में छोटा होता है। जमीन से 15 मीटर तक की गहराई से पानी पानी निकालना हो या जमीन पर संग्रहीत पानी को ऊंची टंकी में भरना हो तो इस पंप का इस्तेमाल किया जाता है।

2. सोलर सबमर्सिबल पंप : जहां पानी भूमि से 15 मीटर से ज्यादा गहराई में हो, वहां पर पानी निकालने के लिये सबमर्सिबल पंप का इस्तेमाल किया जाता है।
संचालन के आधार पर कई प्रकार के पंप होते है : 
1. सोलर पंप VFD ड्राइव : इस प्रकार के सोलर सिस्टम से आप पहले से लगे किसी डीजल पंप को सोलर पंप बना सकते है। 
2. हाइब्रिड सोलर PV. पंप : इस सोलर सिस्टम को तीन प्रकार से इस्तेमाल किया जा सकता है, 1. सोलर पैनल से, 2. ग्रिड से, 3. सोलर बैट्री से। इस तरह दिन में सोलर पैनल से पंप चलाया जा सकता है और रात में ग्रिड या बैट्री से।     

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24-03-2021, 11:39 am

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 गोबर की उपलब्धता के आधार पर बायोगैस संयंत्र की क्षमता का निर्धारण

 

संयंत्र का आकार     प्रतिदिन गोबर की            आवश्यक  

 (घन मी.)              आवश्यकता (कि.ग्रा.)         पशु
    2                             50                              4-5
    3                             75                              6-8
    4                            100                             9-11
    6                            150                            15-16


एक गाय प्रतिदिन लगभग 10 कि.ग्रा. गोबर, एक भेंस प्रतिदिन 15 कि.ग्रा. गोबर, एक बैल प्रतिदिन 12 कि.ग्रा. गोबर, एक बछड़ा प्रतिदिन 5 कि.ग्रा. गोबर देता है।  केवल 2 घनमीटर के बायोगैस संयंत्र से ही 5-7 लोगों का प्रतिदिन का खान-पान तैयार हो जाता है। बड़ी क्षमता वाले बायोगैस संयंत्र से न केवल खेत में काम करने वाले लोगों का खाना बन सकता है बल्कि छोटी-बड़ी मोटरें भी चलायी जा सकती है। यदि भारत की 60 प्रतिशत जनसंख्या गैस व बिजली में आत्मनिर्भर हो जाती है तो यह एक बहुत बड़ी उपलब्ण्धी होगी। 

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23-03-2021, 03:26 pm

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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद

देश के कृषि अनुसंधान को बढ़ावा देने के उदेश्य से 16 जुलाई 1929 को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की स्थापना की गई थी। इसका 91 वर्षो का इतिहास स्वर्णिम रहा है। इसके अन्तर्गत देश भर में 102 अनुसंधान संस्थान और 71 कृषि विश्वविद्यालय काम कर रहें है और यह विश्व स्तर पर सबसे बड़ी राष्ट्रीय कृषि प्रणालियों में से एक है। 

हाल ही के वर्षो में अनेक राज्यों में बागवानी फसलें आर्थिक विकास का सूत्रधार बन गई है और देश के कृषि जी.डी.पी. में बागवानी का योगदान 30.4 प्रतिशत तक पहुॅंच गया है। वैश्विक स्तर पर भारत फलों और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। आम, केला, पपीता और अनार उत्पादन में हम शिखर पर है। अपनी प्राचीन पंरपरा को पुनर्जीवित करते हुये हमारा देश मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश बन गया है। यह सब भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और राज्य स्तरीय कृषि विश्वविद्यालयों के संबंधित प्रयासों का ही प्रतिफल है। 

R K Jain

22-03-2021, 11:05 am

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विश्व जल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

भारत में शुद्ध कृषि योग्य क्षेत्रफल 1560 लाख हेक्टेयर है जो कि विश्व का 11.2 पतिशत है। संसाधनों के हिसाब से भारत विश्व के 2.4 प्रतिशत भू-क्षेत्रफल और 4 प्रतिशत जल संसाधनों के साथ विश्व की 17 प्रतिशत मानव जनसंख्या और 15 प्रतिशत पशुओं को पालता है। इतने सीमित भू-क्षेत्र और जल संसांधन के बल पर इतनी विशाल मानव जनसंख्या और पशुओं को पालना निश्चित ही हमारे लिए एक चुनौती है। इस चुनौती का सामना करने के लिए हमें अपने परंपरागत और आधुनिक तकनीकियों में सामंजस्य स्थापित करते हुये बेहतरीन कार्यकुशलता का प्रदर्शन करना होगा।   

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21-03-2021, 09:20 am

Krishi Paridrishya,

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उर्वरक एवं आयात

पोषक तत्वों के प्रति इकाई उपयोग से अधिक फसल प्राप्त करने व किसानों को अधिक फसल प्राप्त करने के लिए खनिज उर्वरकों का विवेकपूर्ण और वैज्ञानिक उपयोग अति आवश्यक है। भारत उर्वरकों के उत्पादन हेतु 70 प्रतिशत तक आयातित कच्चे माल पर निर्भर है।

R K Jain

20-03-2021, 11:37 am

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पराली को समस्या नहीं संशाधन बनायें

राजधानी दिल्ली की हवा में प्रदूषण को लेकर राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता जाहिर की गई है और इसका प्रमुख कारण आस-पास के राज्यों में किसानों द्वारा धान की पराली को जलाना बताया गया है। भारत सरकार ने इस मुद्दे पर संज्ञान लेते हुए वर्तमान बजट में हरियाणा, पंजाब, उ.प्र. और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के प्रदूषण निवारण प्रयासों को सहायता देने की योजना प्रस्तावित है। इसके तहत फसल अवशेषों के स्वच्छ और कुशल निपटान के लिए आवश्यश्क मशीनरी पर सब्सिडी प्रदान की जाएगी।

हैप्पी सीडर एक ऐसी मशीन है जिससे धान की कटाई के बाद खेत में बचे अवशेषों को मल्च के रूप में उसी खेत में फैलाकर बगैर जुताई किए आगामी फसल की बुवाई की जा सकती है। 1.5 से 1.65 लाख रुपए की कीमत वाली इस मशीन की क्षमता .0.45 हेक्टेयर प्रति घंटा है।

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19-03-2021, 03:08 pm

Krishi Paridrishya,

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भारत में प्रति हेक्टेयर धान की पैदावर बहुत कम

भारत में धान की औसत पैदावार 3.63 टन प्रति हेक्टेयर है, इसकी तुलना में विश्व की औसत पैदावार 4.53 टन प्रति हैक्टयर है। कुछ देशों में यह पैदावार बहुत अधिक है जैसे चीन में 6.74 टन, वियतनाम में 5.75 टन, इंडोनेशिया में 5.13 टन और बांग्लादेश में 4.42 टन है। 

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18-03-2021, 11:56 am

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कृषि और वातावरण

भारत में कृषि क्षेत्र, कुल ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का 28 प्रतिशत योगदान देता है जबकि कृषि से वैश्विक औसत केवल 13.5 प्रतिशत है (आई.पी.सी.सी. 2007 के अनुसार)। गोकेन्द्रित प्राकृतिक और जैविक खेती पर गंभीरता से विचार करना समय की मांग है।

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18-03-2021, 11:28 am

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गीले गोबर से घनजीवामृत तैयार करने की विधी 

देशी गाय का ताजा गोबर हल्की धूप में सूखा लें। 7-10 दिन में जब गोबर सूख जाये तो उसमें से 100 कि.ग्रा. गोबर को छाया में पतली परत में बिछा लें। अब ढेर पर एक मुटठी मेड या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी समान मात्रा में छिड़क दें। फिर इस पर 1-2 कि.ग्रा. किसी भी दलहन का आटा एक समान छिड़क दें। अंत में 1.2 कि.ग्रा. काला गुड़ को 4-5 लीटर गोमूत्र में अच्छी तरह मिलाकर इस ढेर पर छिड़काव करें। अब इस मिश्रण को किसी दंताली की सहायता से अच्छी मिला लें तथा 4-5 दिन ऐसे ही रहने दें। 4-5 बाद घनजीवामृत तैयार हो जाता है। प्रति एकड़ 100 कि.ग्रा. घनजीवमृत एक फसल में 2-3 बार देना चाहिए। 

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18-03-2021, 11:23 am

Krishi Paridrishya,

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जीवमृत तैयार करने की विधि

किसी ठंडी जगह पर 200 लीटर पानी का ड्रम रखें और इसमें 180 लीटर पानी भर दें। इस ड्रम में 10 कि.ग्रा. देशी गाय का ताजा गोबर व 5-10 लीटर देशी गाय का गोमूत्र डालें। इसके बाद इसमें 1-2 कि.ग्रा. दलहन का आटा और 1-1.5 कि.ग्रा. काला गुड़ मिलायें। अंत में मुट्ठी भर मेड या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी भी मिला दें। अब इस मिश्रण को दिन मे 3 बार हिलाना है और 3-4 दिन तक हिलाना है। घोल को हिलाने के बाद किसी ठंडे बोरे से ड्रम को ढककर रखें। 3-5 दिन में जीवमृत बनकर तैयार हो जाता है। इस मिश्रण को एक एकड़ में सिंचाई के पानी के साथ खेत में पहुंचा दें। यह जीवामृत एक एकड़ खेत के लिए 21 दिन के लिए पर्याप्त है। श्री शुभाष पालेकर के अनुसार खेतों में पहली बार जीवमृत प्रयोग करने पर सप्ताह में 1 बार मिट्टी में जीवमृत का प्रयोग करें तथा 15 दिनों में एक बार फसल पर छिड़काव करें। इसके साथ मिट्टी में महिने में 1 बार घनजीवमृत का भी प्रयोग करें। गोबर ताजा एवं गोमूत्र जितना पुराना हो उतना अच्छा माना जाता है। मैदानी इलाको में गोबर 7 दिन तक व पहाड़ी इलाकां में 15 दिन ताजा रहता है।

प्राकृतिक खेती के जनक श्री शुभाष पालेकर के अनुसार पानी के ड्रम में जो आप देशी गाय का ताजा गोबर डालते है उसमें खेती के लिये उपयोगी लगभग सभी प्रकार के जीवाणु करोड़ो की संख्या में होते है। मुट्ठी भर मेड़ या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी डालने से जो थोडे जीवाणु बचते है वो भी आ जाते है। गोमूत्र व काला गुड़ डालने से जीवाणुओं का फरमेंटेंशन तेजी से होता है। जब जीवाणुओं की संख्या बढ़ती है तो कोशिका विभाजन होता है, अतः प्रोटिन की जरूरत पड़ती है, इसीलिये दलहन का आटा देना चाहिये। 3-5 दिन में इन लाभकारी जीवाणुओं की संख्या का हिसाब नहीं लगाया जा सकता। ये जीवाणु जब खेत में पहुॅंचते है तो मिट्टी को आश्चर्य जनक तरीके से उपजाऊ बना देते है। तेज धूप में सूक्ष्म जीवाणु मरे नहीं इसके लिए फसलों के बीच आच्छादन (Mulching) जरूर करना चाहिये।

KRISHILINE

11-03-2021, 11:55 am

Krishi Paridrishya,

Rajasthan , India

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सूखे गोबर से घनजीवामृत तैयार करने की विधी

सबसे पहले सूखे गोबर को 1.5 से 2 फीट की ऊॅंचाई तक ढेर में फैला लें। इसके बाद मोटे बांस की सहायता से इस ढेर में जगह-जगह छेद कर लें। फिर इन छेदों में ताजा जीवामृत भर दें। 7 दिन बाद किसी फावडे की सहायता से इस ढेर को अच्छी तरह मिला लें। अब एक बार फिर किसी मोटे बांस की सहायता से इस ढेर में छेद करके फिर से ताजा जीवमृत मिलाना है और 7 दिन के लिए छोड़ देना है। 7 दिन बाद किसी फावडे की सहायता इस ढेर को अच्छी तरह मिलाकर छोड दें। 21-25 दिन बाद घनजीवामृत बनकर तैयार हो जाता है। 

आप इस तैयार घनजीवामृत को 400 कि.ग्रा. प्रति एकड़ सीधे खेतों में प्रयोग कर सकते है। यदि आप इस घनजीवामृत का भंडारण करना चाहते है तो इसे ठंडी जगह पर अच्छी तरह सूखा लें ताकि इसमें बिल्कुल भी नमी न रहे। अब आप इसे थैलों में पैक करके 1 साल तक इसका स्टोर कर सकते है। स्टोर करते वक्त यह ध्यान रखना चाहिए कि इसके सम्पर्क में नमी बिल्कुल भी नहीं आनी चाहिए।

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07-03-2021, 08:57 am

Krishi Paridrishya,

Rajasthan , India

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केशव की जय-जय

राष्ट्र स्तर पर चने की बढ़ती मांग को देखते हुए कृषि वैज्ञानिक चने के उत्पाद को बढ़ाने की दिशा में सतत प्रयत्नशील है। राजस्थान के स्वामी केशवानंद कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर के अधीन कृषि अनुसंधान केन्द्र, श्रीगंगानगर के वैज्ञानिकों के सराहनीय प्रयासों के फलस्वरूप अभी तक चने की 11 किस्में विकसित की गई है जिसमें 7 किस्में गणगौर, मरूधर, त्रिवेणी, मीरा, तीज, पूर्वा एवं अवध को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर अधिसूचित कीया गया हैं तथा 4 अन्य किस्में गौरी, संगम, जी.एन.जी.-1292 एवं जी.एन.जी.-2261 (केशव) को राज्य स्तर पर अधिसूचित किया गया है। जी.एन.जी.-2261 का केशव नाम विश्वविद्यालय के स्वामी केशवानंद जी के नाम पर रखा गया है।

कृषि अनुसंधान केन्द्र, श्रीगंगानगर द्वारा नवविकसित चने की किस्मों में एक किस्म जिसका नाम केशव (जी.एन.जी.-2261) है, का परीक्षण राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उतराखंड राज्यों में भी हुआ है। ए.आर.एस. श्रीगंगानगर द्वारा नवविकसित चना किस्म केशव में खास बात है कि यह केवल दो सिंचाई में ही पककर तैयार हो जाती है तथा देर से बुवाई करने के लिए भी उपयुक्त पायी गई है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार 15 नवंबर के बाद केशव किस्म की बुवाई करने पर प्रति हेक्टेयर 22-23 क्विंटल उत्पादन लिया जा सकता है।

वैसे तो कृषि अनुसंधान केन्द्र, श्रीगंगानगर के नाम कई रिकार्ड दर्ज है लेकिन चने की किस्मों के विकास में किया गया प्रयास इसे राष्ट्रीय स्तर पर अलग पहचान दिलाता है। उच्च उत्पादकता वाली इन चनों की किस्मों से न केवल किसानों का जीवन स्तर सुधरेगा बल्कि देश भी दलहन उत्पादन में आत्म निर्भर बनेगा।

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06-03-2021, 11:22 am

Krishi Paridrishya,

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करिशमें किसानों के

बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति में 1-1 फीट की दूरी पर गन्ने की 2 लाइन लगाएं। इसके बाद 1 मीटर जगह छोड़कर फिर 1-1 फीट की दूरी पर गन्ने की 2 लाइन लगाएं एवं इसी तरह आगे बढ़ते रहें। अक्टूबर-नवबंर में बीजाई करने पर 1 मीटर की खाली जगह में लहसून, प्याज की फसल लेनी चाहिए, फरवरी-मार्च में बीजाई करने पर 1 मीटर की खाली जगह में टमाटर, मिर्च आदि की फसल लेनी चाहिए, टमाटर की इस्ट-वेस्ट, समृद्धि आदि प्रजाती गन्ने की फसल के साथ-खूब बढ़ती है। अप्रैल में बीजाई करने पर 1 मीटर की खाली जगह में मिर्च या टमाटर की फसल ले सकते है।

R K Jain

05-03-2021, 01:13 pm

Farms are the best sources for foundation of human civilization,

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मक्का - फसलों की रानी

मक्का भारतवर्ष के लगभग सभी क्षेत्रों में लगभग 9.2 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में उगाई जाती है। यह विश्व के लगभग 166 देशों में उगाई जाने वाली फसल है जो विश्व के सकल खाद्यान्न उत्पादन में एक चौथाई से ज्यादा का योगदान करती है। अमेरिका, चीन, ब्राजली एवं मैक्सिको के बाद भारत का पांचवा स्थान है। मक्का (जिया मेज एल.) को खाद्यान्न फसलों में सबसे अधिक उत्पादन क्षमता के कारण विश्व में खाद्यान्न फसलों की रानी कहा जाता है।

भारत में मक्का की औसत पैदावार 2.75 टन प्रति हेक्टेयर की तुलना में विश्व की औसत पैदावार 5.57 टन प्रति हेक्टेयर है। कुछ देशों में यह पैदावार बहुत अधिक है, जैसे अमेरिका में 10.73 टन प्रति हेक्टेयर, अर्जेंटीना में 6.6 टन, ब्राजील में 6.47 टन और चीन में 5.99 टन प्रति हेक्टेयर है।

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04-03-2021, 12:31 pm

Krishi Paridrishya,

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अरहर की फसल में जस्ते की कमी के लक्षण

अरहर की फसल में जस्ते की कमी के लक्षण लगभग बुवाई के तीन चार सप्ताह के अंदर प्रकट हो जाते हैं आरम्भ में पत्तियों के शिराओं के मध्य भाग में नारंगी पीला रंग विकसित होता हैं बाद में हरिमाहीन धब्बे पत्तियों के किनारों पर और विशेषकर नोंक पर दिखाई देते हैं। जब पत्ती का लगभग 60 प्रतिशत भाग प्रभावित हो जाता है तो पत्ती झड़ जाती हैं। नई पत्तियां आकार में छोटी रह जाती हैं।

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04-03-2021, 12:19 pm

Krishi Paridrishya,

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भारत में कृषि शिक्षा बहुत कमजोर

खेतों में प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ाने में तीन बातों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है- एक जलवायु, दूसरा किसान की शिक्षा का स्तर और तीसरा निवेश। जलवायु की दृष्टि से भारत 127 कृषि जलवायु जोन वाला क्षेत्र है। विश्व में उपलब्ध 64 प्रकार की मिट्टियों में 46 प्रकार की मिट्टिया हमारे पास उपलब्ध है। पर्याप्त वर्षा जल के अतिरिक्त 445 नदियां जिनकी लंबाई लगभग 2 लाख किलोमीटर से अधिक है। हम पानी और जैव विविधता के मामले में दुनिया के सबसे समृद्ध देश है।

लेकिन कृषि शिक्षा क्षेत्र में भारत बहुत ही पिछड़े देशो में गिना जाता है। भारत में स्नातक पाठ्यक्रमों में 12 प्रतिशत विद्यार्थी विज्ञान आधारित पाठ्यक्रमों में पंजीकरण कराते है जिसमे मात्र 0.65 प्रतिशत विद्यार्थी कृषि विज्ञान में पंजीकरण कराते है। ऐसी स्थिति में एक आम किसान की शिक्षा का स्तर कैसा होगा, आसानी से जाना जा सकता है।

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03-03-2021, 11:52 am

Krishi Paridrishya,

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जल संकट में टयूबवेल का भी योगदान


हमारे यहां 1930 में देश का पहला ट्यूबवैल खोदा गया था। इसके बाद 1951 तक सिर्फ 2500 ट्यूबवैल थे। सरकारें बिना सोचे समझे इन्ह प्रोत्साहित करती रहीं, अनुदान देती रही और 1995-96 में इनकी संख्या 40 लाख तक पहुंच गई थी। माना जा रहा है कि आज देश में इसकी संख्या 2 करोड़ से अधिक है।

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27-02-2021, 06:45 pm

Krishi Paridrishya,

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प्राकृतिक खेती

श्री कानसिंह निर्वाण, जिला-सीकर, राजस्थान हमेशा से ही जहर मुक्त खेती कर रहें है। केवल भारत के किसान ही नहीं बल्कि दूसरे देशो के किसान भी इनके यहां खेती सीखने आते है। कानसिंहजी अपने खेत का एक भी दाना बाहर बेचने नहीं जाते है। सोसाइटी के लोग गाडियां लेकर आते है और अनाज भरकर ले जाते है। देशी गाय का बहुत अच्छा अनुभव होने के कारण दूसरो राज्यों के किसान इनके यहां गाय खरीदने भी आते है।

कानिसिंहजी के यहां होम स्टे की भी सुविधा है। दूसरे देशों के किसान यहां आकर रूकते है और प्राकृतिक खेती की पद्धती इनसे सीखते है। अपने खेत के एक तिहाई भाग में बागवानी भी कर रहें है, रेगिस्तान में इस जंगल को देखकर लोग आशचर्य चकित रह जाते है। कानिसिंहजी ने आज तक सरकार से एक पैसे की सब्सिडी भी नहीं ली। उनके अनुसार किसान सिर्फ देना जानता है।

कानसिंहजी अपने खेत में रासायनिक उर्वरकों की जगह देशी से गाय से निर्मित जीवामृत का प्रयोग करते है। उनके अनुसार जिस तरह जल, नीर और पानी एक है उसी तरह गाय, जमीन और प्रकृति एक है। खेती करने से पहले किसान को गाय, जमीन और प्रकृति की भाषा सीखनी चाहिये।

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27-02-2021, 11:12 am

Krishi Paridrishya,

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गुजरात सरकार ने किसानों के लिए सौर ऊर्जा योजना शुरू की है- सूर्यशक्ति किसान योजना

गांध्ीनगर में पायलट परियोजना की घोषणा करते हुए गुजरात के मुख्यमंत्रा, श्री विजय रुपानी ने इसे किसानों को सौर ऊर्जा का उपयोग करके अपनी बिजली उत्पन्न करने और उनकी आय को दोगुनी करने में मदद करने के लिए सशत्त कदम बताया।

इस योजना के अनुसार, जिन किसानों के पास मौजूदा बिजली कनेक्शन हैं, उनको लोड आवश्यकताओं के अनुसार सौर पैनल दिए जाएंगे। राज्य और केंद्र सरकार परियोजना की लागत पर 60 प्रतिशत सब्सिडी देगी। किसान को 5 प्रतिशत लागत देनी होगी, जबकि 35 प्रतिशत उन्हें 4.5-6 प्रतिशत की ब्याज दरों पर एक किफायती ऋण के रूप में प्रदान किया जाएगा। योजना की अवधि 25 वर्ष है, जो 7 साल की अवधि और 18 वर्ष की अवधि के बीच विभाजित की गयी है। मुख्यमंत्रा ने कहा, यह देश की पहली ऐसी योजना है, जहां किसान अपनी ऊर्जा का उत्पादन करेगा और अधिशेष को राज्य बिजली उपयोगिता में बेच देगा। उन्होंने कहा कि योजना पर काम जल्द ही शुरू हो जाएगा। इसमें कृषि सौर ऊर्जा खपत के लिए अलग-अलग फीडर स्थापित करने की योजना है।